आंखों की खोई रोशनी वापस लौटाए माइक्रोसिस्टम एक्युपंक्चर माइक्रोसिस्टम एक्युपंक्चर उपचार पद्धति से उपचार कर कई लोगों की आंखों की धुंधलाती रोशनी वापस लाकर लोगों को नवजीवन देने का श्रेय डाॅ. अवनीश चोपड़ा को जाता है। मूल रूप से रेडियोलाॅजी के डा. ॅक्टर होने के बावजूद उन्होंने एक्युपंक्चर जैसी वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति का गहन अध्ययन किया और जो उपचार कहीं संभव नहीं हो पा रहा था उसे शतप्रतिशत सही कर दिखाया। आज वे देश-विदेश के कई लोगों को उनकी आंखों की लुप्त होती रोशनी लौटा चुके हैं। पेश है उनसे चित्रा फुलोरिया की एक मुलाकात...
जीव न म े ं अ ा ं ख् ा ा े ं क ी उपयोगिता कितनी है इस बात का एहसास उन लोगों से अधिक किसे होगा जो जन्मांध हैं और नेत्रहीन कहलाते हैं। लेकिन कुछ लोगों की आंखों से रोशनी धीरे-धीरे कम होती चली जाती है और वे आंखों के होते हुए भी देख नहीं पाते। यह बीमारी न तो मोतियाबिंद की है और न ही इसमें नजर का चश्मा काम करता है। हमारी आंखों में जो सफेद भाग दिखाई देता है उसके पीछे एक और परदा होता है।
वह ठीक उसी तरह काम करता है जिस तरह कैमरे में फिल्म। कैमरे की फिल्म बेकार हो जाने पर फोटो नहीं आती, उसी प्रकार आंखों को ज्योति प्रदान करने वाला परदा जब खराब हो जाता है तो आंखों के आगे अंधकार छा जाता है। अभी तक ऐसी बीमारी का इलाज किसी चिकित्सा पद्धति से संभव नहीं था। इस असंभव कार्य को संभव कर दिखाया है डाॅ. अवनीश चोपड़ा ने।
उन्हें माइक्रोसिस्टम एक्युपंक्चर उपचार पद्धति को लाने और इसके माध्यम से उपचार कर कई लोगों की आंखों की धुंधलाती रोशनी वापस लाकर लोगों को नवजीवन देने का श्रेय जाता है। डाॅ. अवनीश चोपड़ा मूलतः पथरी रोग के विशेषज्ञ हैं। स्टोन क्लीनिक के नाम से उनका क्लीनिक प्रसिद्ध है।
अपनी इस उपचार पद्धति को छोड़कर उनका रुझान एक्युपंक्चर पद्धति की ओर कैसे हुआ यह भी एक आश्चर्यजनक घटना है। डाॅ. चोपड़ा बताते हैं कि मेरे एक 45 वर्षीय इंजीनियर मित्र को रेटनाइटिस पिगमेंटोसा हो गया और उनकी आंखों की रोशनी धीरे-धीरे जाने लगी। वह चारा ंे आरे स े निराश होकर मेरे पास आए और बोले कि मुझे दुनिया के किसी भी कोने में ले जाओ, जितना पैसा लगे लगाओ लेकिन मेरी नेत्र ज्योति वापस दिला दो।
उनकी दर्दनाक व्यथा को सुनकर मैं उन्हें क्यूबा के एक आंखों के अस्पताल में ले गया। इस अस्पताल में आंखों में ओजोन डालते हैं। उपचार की यह प्रक्रिया बहुत दर्दभरी थी। इसमें एक सप्ताह का समय लगता था और उपचार म ंे लाभ का प्िर तशत बहतु कम था। इसके बाद हम अमेरिका, जर्मनी, चीन आदि अनेक देशों में गए।
इस रोग के उपचार के लिए जर्मनी में रंग चिकित्सा और चीन में एक्युपंक्चर पद्धति का प्रयोग किया जा रहा था परंतु शतप्रतिशत लाभ किसी पद्धति में नहीं मिल पा रहा था। जब मुझे और मेरे मित्र को कहीं संतुष्टि नहीं मिली तो मेरे मित्र ने मुझे सुझाव दिया कि क्यों न हम इन सभी तकनीकों को मिलाकर एक नई तकनीक ईजाद कर।ंे इस विचार का े क्रियान्वित करने के लिए हमने कई प्रयोग किए और अलग प्रकार की सुइयां बनाईं और इसके माध्यम से रंगीन रश्मियों द्वारा शरीर में ऊर्जा पहुंचाई।
मेरे मित्र को मात्र दो दिन में साफ-साफ दिखाई देने लगा। इस प्रयोग के परिणाम से मेरी आंखें भी आश्चर्य से खुली रह गईं। इस घटना के बाद मैंने लंदन, पेरिस, अमेरिका, जर्मनी, आॅस्ट्रेलिया और चीन में जाकर विभिन्न उपचार पद्ध तियों का विधिवत प्रशिक्षण लिया और माइक्रोसिस्टम एक्युपंक्चर को पूर्णरूप से वैज्ञानिक सिद्धांतों के अनुरूप जांच परख कर व्यवहार में उतारा।
रोग के वैज्ञानिक लक्षण आंखों में धुंधलापन या कम दिखाई देने के कई कारण होते हैं। कई लोगों को यह समस्या जन्मजात होती है। कई बार यह परेशानी अचानक आ जाती है। कई बार किसी अन्य बीमारी के कारण भी ये लक्षण पैदा हो जाते हैं। इसके कई प्रकार हैं।
दृष्टि क्षय (मैक्यूलर डिजेनेरेशन)ः मैक्यूलर डिजेनेरेशन से हमारी दृष्टि के बीच धंुधलापन या धब्बा सा आ जाता है जिससे हमें कोई चीज साफ-साफ दिखाई नहीं देती और हमारे लिए पढ़ना या सुई में धागा पिरोना जैसे कार्य कठिन या फिर असंभव हो जाते हैं।
डायाबीटिक रेटिनोपैथी: मधुमेह के कारण मोतियाबिंद और ग्लूकोमा जैसी भयंकर बीमारियों की संभावना रहती है। यहां तक कि आंख के भीतर की रक्त वाहिकाएं भी खराब हो सकती हैं। आंख की इसी स्थिति को डायाबीटिक रेटिनोपैथी कहते हैं।
रेटिनाइटिस पिगमेंटोसा: रेटिनाइटिस पिगमेंटोसा से दृष्टि का धीरे-धीरे क्षय होने लगता है। आंखों का यह रोग ज्यादातर आनुवंशिक होता है, हालांकि यह जरूरी नहीं कि इसके लक्षण हर पीढ़ी में दिखाई दें। इससे श्रवण शक्ति के क्षीण होने की संभावना भी रहती है।
ग्लूकोमा: ग्लूकोमा हो जाने पर दृष्टि तंत्रिका खराब हो जाती है। यह वह तंत्रिका है जो रेटिना से किसी वस्तु की छवि ग्रहण कर मस्तिष्क को पहुंचाती है ताकि हम उसे देख सकें। कैसे होता है उपचार? मैक्यूलर डिजेनेरेशन और लूसेंटिस जैसे लक्षणों में प्रायः फोटोडायनेमिक थेरैपी से उपचार किया जाता है।
लेकिन यह पद्धति बहुत खर्चीली है, इसमें लगभग 6 से 7 लाख का खर्च आ जाता है और आंखों के अंदर सुई लगानी पड़ती है। परंतु माइक्रोसिस्टम एक्युपंक्चर पद्ध ति में आंखों का स्पर्श भी नहीं किया जाता, पैरों में रंगीन सुइयों से एक्युपंक्चर किया जाता है। एक बार प्रयोग की गई सुइयों का दोबारा प्रयोग नहीं किया जाता है। आंखों के लगभग 200 प्रमुख बिंदु पैरों में होते हैं।
उन बिंदुओं को खोला जाता है और उनके माध्यम से शरीर में ऊर्जा का संचार किया जाता है। जब तक आंखों में ऊर्जा का प्रवाह नहीं होगा, लाभ नहीं मिल पाएगा। एक उपचार की अवधि 8 से 10 दिन की होती है। एक उपचार का खर्च 30 हजार रुपए आता है। इस नेत्र रोग के उपचार में उम्र कोई बाधा नहीं है, बस शर्त यही है कि आंखों में थोड़ी बहुत ज्योति विद्यमान होनी चाहिए और दृष्टि-तंत्रिका (आॅप्टिक नर्व) सूखनी नहीं चाहिए। उपचार के साथ-साथ आंखों के व्यायाम भी जरूरी हैं।
धूम्रपान आंखों का भयंकर दुश्मन है। सिगरेट, बीड़ी का लंबे समय तक लगातार प्रयोग आंखों की ज्योति को धीरे-धीरे क्षीण करता चलता है। इसलिए जिन्हें अपने चश्मे का नंबर बढ़ने से रोकना है, उन्हें धूम्रपान तुरंत त्याग देना चाहिए। जिनकी आंखों में रोशनी बहुत कम होती है, उन्हें और उनसे अधिक उम्र के व्यक्तियों को 6 से 12 महीने के बाद दोबारा उपचार लेने की जरूरत पड़ती है।
अनुभव: डाॅ. चोपड़ा को इस पद्धति से इलाज करते हुए अभी मुश्किल से दो साल होने जा रहे हैं, लेकिन इतने कम समय में वे 300 लोगों का नेत्र उपचार कर चुके हैं। उनके क्लीनिक में रखे रजिस्टर, जिसमें मरीजों ने अपने हाथ से अनुभव लिखे हैं, इस बात के साक्षी हैं। अनुभव बताते हैं कि उनके इलाज से लाभान्वित होकर लोग उन्हें भगवान से भी बढ़कर दर्जा देते हैं। उनके मरीजों में साढ़े तीन साल के बच्चे से लेकर 80 साल के वृद्ध तक हैं। दिल्ली निवासी श्री सुरेंद्र सिंह आज से एक साल पहले अपनी 13 वर्षीय पुत्री नीलम को यहां उपचार के लिए लाए।
नीलम की दोनों आंखों में धब्बे हो गए थे, उसकी एक आंख से सामने खड़ा व्यक्ति आधा दिखता था और आधा नहीं। कई प्राइवेट अस्पतालों और आॅल इंडिया मेडिकल अस्पताल में काफी लंबे समय तक उसका उपचार किया गया मगर सुधार थोड़ा ही हुआ। श्री सिंह कहते हैं कि मैं चारों ओर से निराश होकर यह सोचकर अपनी बेटी को डाॅ. चोपड़ा के पास ले गया कि आॅल इंडिया मेडिकल में इलाज नहीं हुआ तो यहां क्या होगा? लेकिन डाॅ. चोपड़ा के उपचार से मात्र दो दिनों में ही मेरी बेटी बहुत कुछ देखने लगी। बिना आंखों का स्पर्श किए आंखों का उपचार! मैं आश्चर्यचकित रह गया। इलाज पूरा होते ही मेरी बेटी की परेशानी भी पूर्ण रूप से खत्म हो गई।
डाॅ. चोपड़ा ने मेरी बेटी की जिंदगी में नई रोशनी भर दी। आइ.आइ.टी. रुड़की के कंप्यूटर इंजीनियरिंग विभाग में प्रोफेसर डाॅअरुण् ा कुमार गुप्ता की आंखें रेटनाइटिस पिगमेंटोसा से इतनी पीड़ित हुईं कि उन्हें मेज पर रखा चश्मा, घड़ी की सुइयां आदि नहीं दिखाई देती थीं। उपचार के एक दिन बाद ही मेज पर रखा चश्मा दिखाई देने लगा।
उनकी पत्नी बताती हैं कि मेरे पति रात को घर से बाहर निकलने से घबराते थे क्योंकि उन्हें सीढ़ियां नहीं दिखाई देती थीं। डाॅ. चोपड़ा ने मेरे पति की आंखों की रोशनी लौटा दी और हमारे निराश जीवन में आशा की किरण भर दी। गोवा की टेलीविजन कलाकार सुफल प्रभु शेलकर को सामने स्क्रीन पर लिखी स्क्रिप्ट दिखाई नहीं देती थी। वह 21 सालों से इस समस्या से पीड़ित थीं।
एक दिन उन्होंने एक अंग्रेजी पत्रिका में डाॅ. चोपड़ा के बारे में पढ़ा कि वे माइक्रोसिस्टम एक्युपंक्चर से उपचार करते हैं। उन्होंने डाॅ. चोपड़ा से मिलने का समय लिया। वह अपने अनुभव में लिखती हैं कि डाॅ. चोपड़ा ने 24 सीटिंग में उनकी खोई हुई दृष्टि वापस लौटा दी। उपचार के दौरान डाॅक्टर के निर्देशानुसार उन्होंने व्यायाम और खानपान का पूरा ध्यान रखा।
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