वह समय दूर नहीं जब अनेक बीमारियों का इलाज संगीत के द्वारा किया जाएगा। ‘संगीत चिकित्सा’ को एक कारगर नुसखे के रूप में अमल में लाया जाने लगा है। संगीत का हमारे स्वास्थ्य पर गहरा असर पड़ता है। दुनिया भर में संगीत पर अध्ययन किए जा रहे हैं, जिसके सकारात्मक परिणाम सामने आ रहे हैं।
शोध के अनुसार यह स्पष्ट हो गया है कि पसंदीदा और अनुकूल संगीत सुनकर अनेक बीमारियों का या तो समुचित निदान किया जा सकता है अथवा उनसे जीवन पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभावों को काफी हद तक रोका जा सकता है। इस चिकित्सा पद्धति के जरिये रक्तचाप में कमी आती है, दिल की धड़कन नियमित होती है, अवसाद को दूर भगाया जा सकता है और चिंता को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
इसके माध्यम से ध्यान केंद्रित करने की क्षमता का विकास होता है और सृजनशीलता में अपेक्षित वृद्धि होती है। संगीत हम सभी के जीवन का अभिन्न हिस्सा है। चाहे सुनने वाला हो या सुनाने वाला, संगीत सभी के दिल के तारों को झंकृत करता है। संत कबीर के शब्दों में ‘नाद एक ऐसा संगीत है, जो बिना डोरी के शरीर में बजता है।’
आधुनिक विज्ञान इस बात को स्वीकार करने लगा है कि संगीत हमारी नब्ज, रक्त संचार, हमारे हृदय की धड़कन, श्वास-प्रक्रिया तथा शारीरिक गतिविधियों में ऊर्जावान तरंगें पैदा करता है। हाल के वर्षों में भारत में इस चिकित्सा पद्ध ति के प्रति लोगों में उत्सुकता बढ़ी है। जिन लोगों को किसी भी तरह के आॅपरेशन के दौर से गुजरना पड़ा है, वे दर्द निवारक दवाइयों की आवश्यकता को संगीत चिकित्सा के माध्यम से कम कर सकते हैं।
संगीत चिकित्सा द्वारा उल्टी की शिकायत कम होती हैं, दर्द से निजात मिलती है, पार्किंसन बीमारी में शरीर अंगों में स्थिरता आती है। संगीत चिकित्सा का प्रयोग सिर-दर्द और सर्दी जुकाम जैसी रोजमर्रा की परेशानियों को दूर करने में भी सफलतापूर्वक किया जा सकता है। अमेरिका और यूरोप के अनेक देशों में इस चिकित्सा पद्धति का प्रयोग आर्टिज्म, पार्किंसन, अल्जाइमर, और हांटिगडन आदि बीमारियों के निदान के लिए किया जा रहा है।
भारतीय उपमहाद्वीप में संगीत चिकित्सा द्वारा मानवीय मन एवं तन की जटिलताओं को सुलझाने का इतिहास काफी पुराना है, लेकिन वर्तमान में इस पद्धति को पश्चिम के देशों में अधिक अपनाया गया है। भारत देश में संगीत की विभिन्न विधाओं द्वारा शरीर, मस्तिष्क और आत्मा तक की चिकित्सा के उल्लेख मिलते हैं।
संगीत में मानवीय मन के प्रायः समस्त पहलुओं को स्पंदित करने की अपार क्षमता है। संगीत हमारे मन के सभी पक्षों को प्रभावित करता है। दर्द, विषाद, तनाव, क्रोध, शोक, प्रेम तथा काम आदि भावों पर संगीत का गहरा प्रभाव पड़ता है। यह तथ्य भी उभरकर सामने आया है कि संगीत के प्रभाव से पिटय् टू री गं्रि थ का े उत्पे्रि रत किया जा सकता है।
मान्यता है कि संगीत चिकित्सा द्वारा शरीर की कोशिकाओं में होने वाले कंपन से बीमार व्यक्ति की चेतनावस्था में सुधारकारी परिण् ााम सामने आते हैं। मीनिया ग्रस्त रोगियों के लिए तेज संगीत सुनना लाभदायक होता है। ‘ऐनेस्थिसियोलाॅजिका स्कैंडिनाविका’ नामक पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन की एक रिपोर्ट के अनुसार कुछ स्त्रियों का आॅपरेशन किया गया।
उन्हें बेहोशी के दौरान राहत प्रदान करने वाला संगीत और समुद्री लहरों की आवाजें सुनाई गईं। ऐसे मरीजों पर परिणाम काफी उत्साहवर्धक रहे। ‘वेस्टर्न रिजर्व यूनिवर्सिटी’, क्वीलैंड में प्रोफेसर वीटर की देख-रेख में पांच सौ रोगियों पर अध्ययन किया गया। 18 से 70 वर्ष की आयु वाले मरीज को आॅपरेशन के बाद की जाने वाली चिकित्सकीय देख-रेख के अतिरिक्त संगीत चिकित्सा भी दी गई।
ये रोगी उन रोगियों के मुकाबले जल्दी स्वस्थ हुए। यही नहीं उन्होंने चलने-फिरने, लेटने-बैठने, सोने-जागने, आदि में अधिक सहजता और स्फूर्ति का अनुभव किया। संगीत चिकित्सा में उपचार का कोई निश्चित और निर्धारित नियम नहीं है। इस कार्य में संलग्न लोगों की मान्यता है कि दिन में किसी भी समय एक निश्चित स्थान पर इस चिकित्सा का प्रयोग किया जा सकता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि इस चिकित्सा में रोगी को खाली पेट नहीं रहना चाहिए। संगीत सत्रों के दौरान रोगी को वाद्य यंत्रों तथा संगीत की कुछ भावपूर्ण धुनों के साथ एकाकार होना पड़ता है। उसे अपने मनपंसद किसी भी संगीत यंत्र के साथ प्रयोग करने की सुविधा उपलब्ध कराई जाती है।
संगीत के निश्चित राग एवं छंद रोगी के बीच एक भावनात्मक सेतु का निर्माण करते हैं। रोगी को अपने स्वर को अपनी सुविधा, क्षमता और इच्छा के अनुसार प्रयोग करने की पूरी छूट होती है। रोगियों के मध्य एक ऐसा संगीतमय और भावुक माहौल निर्मित किया जाता है, जिसमें मरीज किसी भी तरह के प्रयोग के लिए स्वयं को स्वतंत्र पाता है।
मरीज द्वारा व्यक्त की जाने वाली प्रतिक्रियाएं और हाव-भाव उसके लिए आगे की पद्ध ति निश्चित करते हैं। मरीज को सामाजिकता के अनुभवों, उसके आत्मविश्वास में वृद्धि और परस्पर बातचीत की स्वतंत्रता प्रदान करते हुए उसे एक स्नेहपूर्ण वातावरण प्रदान किया जाता है। बहुत से रोगी अपने मनपसंद गीत और धुन के जरिये खुद ही स्वस्थ होने का मार्ग तलाश लेते हैं।
फ्रांस के मशहूर संगीत चिकित्सक अल्फेड टोमाटिस पचास वर्षों तक एक लाख मरीजों पर अनुसंधान के बाद इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि स्वर विकारों से ग्रस्त कोई व्यक्ति यदि छह महीने तक प्रतिदिन एक घंटे तक ‘मोजार्ट’ का संगीत सुनें, तो उसका स्वर दोष तो दूर होगा ही, उसकी अभिव्यक्ति में भी निखार आएगा।
संगीत चिकित्सा का प्रयोग प्रसव के पूर्व जन्म लेने वाले बच्चों के लिए भी किया जाता है। अमेरिकी चिकित्सक प्रो. सुसान वेबर के अनुसार संगीत में तन तथा मन दोनों को प्रभावित करने की अपार क्षमता है। मुंबई पुलिस ने भी तनाव घटाने के लिए संगीत का इस्तेमाल शुरू किया है।
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