रकी एक प्राक्रतिक चिकित्सा है। इस चिकित्सा पद्धति की खोज जापान में हुई थी। रेकी का शाब्दिक अर्थ है ‘जीवन ऊर्जा’। सर्वप्रथम जापानी वैज्ञानिक डाॅ. मिकाओ यूसूई ने इस पद्धति को लोगों के सामने लाया। रेकी सर्वव्यापक जीवन ऊर्जा पर केंद्रित है। रेकी ऊर्जा जीवन ऊर्जा की तरह ही अत्यंत प्रभावी है।
यह दैवी शक्ति की तरह होती है और इसके उपयोग से पूरी दुनिया से अलगाव की अनुभूति होती है, इसलिए इसके उपयोगकर्ता पर किसी भी समस्या का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। जो लोग नियमित रूप से रेकी का उपयोग करते हैं, वे अधिक हंसमुख व अध् िाक जिंदादिल होते हैं और उनमें अध् िाक ऊर्जा का संचार होता है। उनकी त्वचा आरै रागे प्िर तराध्े ाक क्षमता म ंे भी सुधार आ जाता है।
रेकी शरीर के विभिन्न अंगों, जैसे-सिर, छाती, पेट और पीठ पर की जा सकती है। अलग-अलग अ व स् थ् ा ा अ ा े ं म े ं हाथ को शरीर के अलग-अलग हिस्सों पर रखा जा सकता है। सर्दी- जुकाम, साइनस, आंख की तकलीफों, एलर्जी, थकावट, दमा और रक्त संचरण संबंधी समस्याओं में हाथ को सिर पर रखना लाभदायक होता है।
सिर पर हाथ रखने की स्थिति में हाथों को नाक के दोनों और इस तरह रखना चाहिए कि हथेलियों से आंखें ढक जाएं, अंगूठे नाक के पास रहें, अंगुलियां ठोडी ढक लें। सिर पर हाथ रखने की एक अन्य अवस्था के तहत हाथ इस तरह रखे जाते हैं कि हाथों को कानों पर रखा जाता है, अंगुलियां जबड़े को ढकती हुई गरदन तक पहुंचती हैं। फेफड़े और हृदय की बीमारियों, मांसपेशियों म ंे खिचं ाव, सिरदर्द आरै अन्य सबं ंि धत समस्याओं के उपचार के लिए हाथों को पीठ पर रखा जाता है।
पीठ पर हाथ कई तरीके से रखे जा सकते हैं। रेकी का एक सर्वोत्तम लाभ यह है कि व्यक्ति अपना उपचार स्वयं कर सकता है। आपके मन में यह भाव भर आना चाहिए कि मैं स्वयं अपना या किसी अन्य व्यक्ति का उपचार करना चाहता हूं, तो रेकी ऊर्जा तुरंत प्रवाहित हो उठती है और कष्टपूण स्थान पर आवश्यक मात्रा में ग्रहण की जा सकती है।
रेकी के प्रवाह से शरीर में पुराने जमे हुए शारीरिक व मानसिक आवेगों से उत्पन्न अवरोध, दुर्गुण हटने लगते हैं। जितना अभ्यास किया जाएगा, अवश्यक मापदण्डों का पालन किया जाएगा, रेकी का प्रवाह उतना ही शक्तिशाली होगा तथा उतने ही अच्छे परिणाम शीघ्र ही प्राप्त होने लगेंगे।
हां, यह बात अवश्य है कि रेकी से जन्मजात रोग दूर नहीं होते। तनाव एवं दबाव से मुक्ति प्राप्त करने के लिए रेकी से अपना उपचार करना बहतु पभ््र ाावपणर््ू ा हाते ा ह।ै इस क्रिया से शरीर में जीवन शक्ति ऊर्जा का स्तर बढ़ जाता है, जिससे भौतिक शरीर और कारण शरीर में संतुलन आ जाता है।
अपना उपचार करने से चित्त की दमित भावनाएं और ऊर्जा अवराधों के विसर्जन में सहायता मिलती है। रेकी शरीर के रासायनिक तंत्र में परिवर्तन लाने, अंगों को नवजीवन देने और अस्थि एवं मज्जा के नव-निर्माण में तो सहायक होती ही है, यह ऊर्जा मन और चित्त के स्तर पर भी संतुलन स्थापित करती है।
रेकी ऊर्जा के फलस्वरूप जो समरसता और संतुलन आता है, वह स्वयंमेव आता है और उपचारकर्ता भी किसी परिणाम, विशेष की प्राप्ति की इच्छा आकांक्षा से प्रभावित नहीं होता। प्रत्येक उपचार के परिणाम सर्वदा भिन्न-भिन्न होते हैं और उपचार कराने वाला ही इन परिण् ाामों का निर्धारक होता है।
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