होलिकोत्सव एवं होलिका दहन की वेला
होलिकोत्सव एवं होलिका दहन की वेला

होलिकोत्सव एवं होलिका दहन की वेला  

फ्यूचर समाचार
व्यूस : 6848 | मार्च 2007

हिदुओं के चार मुख्य त्योहार रक्षा बंधन, दशहरा, दीपावली एवं होली हैं। होली का अपना विशिष्ट स्थान है। यह पर्व विश्व मानवता का प्रतीक है। इस दिन लोग धर्म, जाति, ऊंच, नीच आदि के भेदभाव को भुलाकर परस्पर एक-दूसरे के गले मिलत े ह,ंै तरह-तरह क े रगं ां े स े हाले ी खेलते हंै। रंग उत्साह, खुशहाली, प्रेम एवं स्वच्छता के प्रतीक हैं।

ज्योतिष शास्त्र में भी ग्रहों के रंगों के अनुसार ही उनके रत्न धारण किए जाते हैं जैसे बृहस्पति ग्रह का पीला रंग है, उसका रत्न पुखराज भी पीले रंग का होता है। रंगों का हमारे जीवन से घनिष्ठ संबंध है। पौराणिक कथा क े अनुसार राक्षसराज हिरण्यकशिपु बड़ा बलवान एवं प्रतापी राजा था। वह देवताओं से हमेशा वैर करता था। उसका पुत्र प्रह्लाद बड़ा देव भक्त था।

वह सर्वदा देव भक्ति में लीन रहता था लेकिन हिरण्यकशिपु को यह पसंद नहीं था वह चाहता था कि मेरा पुत्र मेरी ही तरह आचरण करे उसने प्रह्लाद को समझाने के लिए बहुत सारे यत्न किए किंतु प्रह्लाद अपनी देवभक्ति से विमुख न हुए उनकी भक्ति और आधिक दृढ़ होती गई। अंत में उसने प्रह्लाद को मारने के बहुत सारे यत्न किए, परंतु प्रह्लाद को नहीं मार सके। अंत में उसने एक षडयंत्र रचा, उसकी बहन होलिका आग से नहीं जलती थी।

अपने भाई हिरण्यकशिपु के कहने पर वह प्रह्लाद को आग से जलाने के लिए उसे अपनी गोद में रखकर आग में बैठ गई परंतु श्री हरि की कृपा से होलिका जल गई तथा प्रह्लाद बच गए। उसी दिन से होलिका दहन की परंपरा प्रारंभ हुई आज भी प्रत्येक वर्ष होलिका का दहन होता है।

ज्योतिषीय दृष्टि से होलिका दहन की वेला नारद पुराण स्मृति के अनुसार यह पर्व फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा को होता है हाेि लका दहन म ंे पद्र ाष्े ाव्यापिनी पूि ण्र् ामा ली जाती है। प्रतिपदा, चतुर्दशी, भद्रा में होलिका दहन का निषेध है।

प्रदोषव्यापिनी ग्रह्या पूर्णिमा फाल्गुनि सदा ।

निशागमे तु पूज्येत होलिका सर्वतोमुखैः।।

तस्यां भद्रामुखं त्वक्त्वा पूज्या होला निशामुखे।

इस वर्ष संवत 2063 में 3 मार्च 2007 को सूर्योदय एवं प्रदोषकाल में पूर्णिमा तिथि व्याप्त है। इस वर्ष पूर्णिमा की रात्रि को अर्थात 4 मार्च को 3 बजे से चंद्र ग्रहण प्रारंभ होगा, जिसके कारण 3 मार्च को 6 बजे सायं काल से ग्रहण का सूतक प्रारंभ होगा। सूतक में होली दहन का निषेध है। सायं काल में 3 बजकर 50 मिनट तक भद्रा तिथि। उसके बाद सायं 6 बजे से पूर्व ही होली दहन का शुभ मुहूर्त है।

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