वासंतिक नवरात्र व्रत
वासंतिक नवरात्र व्रत

वासंतिक नवरात्र व्रत  

फ्यूचर समाचार
व्यूस : 7045 | मार्च 2007

चैत्र, आषाढ़, आश्विन और माघ के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक के नौ दिन नवरात्र कहलाते हैं। इनमें चैत्र के नवरात्र ‘वासंतिक नवरात्र’ और आश्विन के नवरात्र ‘शारदीय नवरात्र’ कहलाते हैं। इनमें आद्याशक्ति जगत् जननी सिंह वाहिनी मां दुर्गा की विशेष आराधना की जाती है। यह नवरात्र व्रत स्त्री और पुरुष दोनों कर सकते हैं।

यदि स्वयं न कर सकें तो पति, पत्नी, पुत्र या ब्राह्मण को प्रतिनिधि बनाकर व्रत पूर्ण कराया जा सकता है। व्रत में उपवास, अयाचित (बिना मांगे प्राप्त) भोजन, नक्त (रात्रि में भोजन करना) या एकभुक्त (एक बार भोजन करना) जो बन सके, यथासामथ्र्य करें।

यदि नवरात्रों में घट-स्थापन के बाद सूतक (अशौच) हो जाए तो कोई दोष नहीं लगता, परंतु पहले हो जाए तो पूजनादि स्वयं न करें। यदि अशौच का पहले से ही अनुभव हो रहा हो, तो नांदीश्राद्ध कराना लाभकारी रहेगा।

पूजाविधि: चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से पूजन प्रारंभ होता है। ‘सम्मुखी’ प्रतिपदा शुभकारी है। अतः वही ग्रहण योग्य है। अमायुक्त प्रतिपदा में पूजन नहीं करना चाहिए। परंतु जहां प्रतिपदा तिथि का लोप हो रहा हो वहां अमायुक्त प्रतिपदा में भी शुभ समय विचार कर पूजन करना चाहिए। सर्वप्रथम प्रातःकाल स्वयं स्नानादि कृत्यों से पवित्र हो, निष्कामपरक या कामनापरक संकल्प कर गोमय से पूजा स्थान को लीपकर उस पर पवित्र मिट्टी से वेदी का निर्माण करें, फिर उसमें जौ और गेहूं बोए तथा उस पर यथाशक्ति मिट्टी, तांबे, चांदी या सोने का कलश स्थापित करें।

यदि पूर्ण विधिपूर्वक करना हो, तो पंचांग पूजन गणेशांबिका, वरुण, षोडशमातृका, सप्तघृतमातृका, नवग्रह आदि देवों का पूजन तथा पुण्याहवाचन ब्राह्मण द्वारा कराएं या स्वयं करें।

तदुपरांत मां भगवती को सिंहासनारूढ़ कर षोडशोपचार पूजन (आवाहन, आसन, पाद्य, अघ्र्य, आचमन, स्नान, स्नानांग आचमन, दुग्ध स्नान, दधि स्नान, घृत स्नान, मधु स्नान, शकरा स्नान, पंचामृत स्नान, गंधोदक स्नान, शुद्धोदक स्नान, आचमन, वस्त्र, आचमन, सौभाग्य सूत्र, चंदन, हरिद्राचूर्ण, कुंकुम, सिंदूर, काजल, दवू ार्कं रु , विल्वपत्र, आभष्ू ाण, पष्ु पमाला, नानापरिमल द्रव्य, सौभाग्यपेटिका, धूप, दीप, नैवेद्य, आचमन, ऋतुफल, तांबूल, दक्षिणा, आरती, प्रदक्षिणा, मंत्र पूष्पांजलि, नमस्कार, क्षमा याचना, अपर्ण (¬ तत्सद् ब्रह्मार्पणमस्तु। विष्ण् ावे नमः, विष्णवे नमः, विष्णवे नमः, करें।) सामथ्र्यानुसार नित्य होम, श्री दुर्गासप्तशती का संपुट या साधारण पाठ या मां भगवती के लीला चरित्रों का श्रवण या मंत्रों का विधिवत जप करें। अखंड दीपक का भी विधान है।

कुमारी पूजन: ‘कुमारी पूजन’ नवरात्र व्रत का अनिवार्य अंग है। कुमारिकाएं जगज्जननी जगदंबा का प्रत्यक्ष विग्रह हैं। सामथ्र्य हो तो नौ दिन तक नौ अन्यथा सात, पांच, तीन या एक कन्या को देवी मानकर पूजा करके भोजन कराना चाहिए।

इसमें ब्राह्मण कन्या को श्रेष्ठ माना गया है। आसन बिछाकर गणेश, वटुक तथा कुमारियों को एक पंक्ति में बैठाकर ‘¬ गं गणपतये नमः’ से गणेश जी का ‘¬ वटुकाय नमः’ से वटुक का तथा ‘¬ कुमार्यै नमः’ से कुमारियों का क्रमशः पंचोपचार पूजन करें। इसके बाद हाथ में पुष्प लेकर निम्नांकित मंत्र से कुमारियों की प्रार्थना करें-

मन्त्राक्षरमयीं लक्ष्मीं मातृणां रूपधारिणीम्।

नवदुर्गात्मिकां साक्षात् कन्यामावाह्याम्यहम्।।

जगत्पूज्ये जगद्वन्द्ये सर्वशक्तिस्वरूपिणि।

पजू ा ं गृहाण कौमारि जगन्मातर्नमाऽे स्तु त।े ।

कहीं-कहीं अष्टमी या नवमी के दिन या नित्यप्रति कड़ाही पूजा की भी परंपरा है। कड़ाही में हलवा, पूरी, पुआ आदि बनाकर उन्हें देवी जी को अर्पित किया जाता है। तत्पश्चात् चमचे और कड़ाही में मौली बांधकर ‘¬ अन्नपूर्णायै नमः’ इस नाम मंत्र से पंचोपचार पूजन करना चाहिए। पुनः कुमारी बालिकाओं को भोजन कराकर उन्हें यथाशक्ति वस्त्राभूषण, दक्षिणादि दें व ससम्मान विदा करें।

मां भगवती की विशेष कृपा प्राप्ति हेतु षोडशोपचार पूजन के बाद नियमानुसार प्रतिपदा तिथि को नैवेद्य के रूप में गाय का घृत मां को अर्पित करना चाहिए और फिर वह घृत ब्राह्मण को दे देना चाहिए। इसके फलस्वरूप मनुष्य कभी रोगी नहीं हो सकता।

द्वितीया तिथि को पूजन करके भगवती जगदंबा को चीनी का भोग लगाएं और ब्राह्मण को दे दें। ऐसा करने से मनुष्य दीर्घायु होता है।

तृतीया के दिन भगवती की पूजा में दूध की प्रधानता होनी चाहिए और पूजन के उपरांत वह दूध ब्राह्मण को दे देना उचित है। इससे सारे दुख दूर हो सकते हैं।

चतुर्थी के दिन मालपुए का नैवेद्य अर्पित किया जाए और फिर उसे योग्य ब्राह्मण को दे दिया जाए। इस अपूर्व दान से हर प्रकार का विघ्न दूर हो जाता है।

पंचमी तिथि के दिन पूजा करके भगवती को केला भोग लगाएं और वह प्रसाद ब्राह्मण को दे दें। ऐसा करने से पुरुष की बुद्धि का विकास होता है।

षष्ठी तिथि के दिन देवी के पूजन में मधु का महत्व बताया गया है। वह मधु ब्राह्मण अपने उपयोग में लें। इसके प्रभाव से साधक सुंदर रूप प्राप्त करता है।

सप्तमी तिथि के दिन भगवती की पूजा में गुड़ का नैवेद्य अर्पित करके ब्राह्मण को दे देना चाहिए। ऐसा करने से पुरुष शोकमुक्त हो सकता है।

अष्टमी तिथि के दिन भगवती को नारियल का भोग लगाना चाहिए। फिर नैवेद्य रूप वह नारियल ब्राह्मण को दे देना चाहिए। इसके फलस्वरूप उस पुरुष के पास किसी प्रकार का संताप नहीं आ सकता।

नवमी तिथि को भगवती को धान का लावा अर्पित करके ब्राह्मण को दे देना चाहिए।इस दान के प्रभाव से पुरुष इहलोक और परलोक दोनों में सुखी रह सकता है।

दशमी तिथि के दिन भगवती को काले तिल का नैवेद्य ब्राह्मण अपने काम में ले लें। ऐसा करने से यमलोक का भय भाग जाता है।

पूजन नित्यप्रति नियमानुसार करें। विसर्जन- नौ रात्रि व्यतीत होने पर दसवें दिन या पूर्णिमा तिथि को विसर्जन हेतु पूजनोपरांत निम्न प्रार्थना करें-

रूपं देहि यशो देहि भाग्यं भगवति देहिमे।

पुत्रान् देहि धनं देहि सर्वान् कामांश्च देहिमे।।

महिषघ्नि महामाये चामुण्डे मुण्डमालिनि।

आयुरारोग्यमैश्वर्यं देहि देवि नमोऽस्तुते।।

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