एक्युपंक्चर चीनी चिकित्सा पद्ध ति है, जिसका चलन चीन में पिछले दो हजार वर्षों से है। इन दो हजार वर्षों में इस पद्धति का चीन में काफी विकास हुआ है और लंबे दौर से गुजरने के बाद यह समय की कसौटी पर खरी उतरी है।
आज के अति आधुनिक समय में, जबकि पश्चिमी देशों में चिकित्सा के क्षेत्र में इतना विकास हो रहा है, फिर भी उन देशों ने एक्युपंक्चर विधि को सहर्ष स्वीकारा है और बीमारी पर विजय प्राप्त करने की इसकी अद्भुत क्षमता का लोहा माना है।
एक्युपंक्चर एक सिद्धांत है, एक विचारधारा है, एक जीवन शैली है, एक पद्धति है, जिससे मनुष्य अपने शरीर का आंतरिक विकास उस स्तर पर ले जाता है, जहां उसमें रोग से लड़ने की अद्भुत क्षमता आ जाती है। मानसिक तौर पर उसे गहन शांति की प्राप्ति होती है, फलतः वह मानसिक और शारीरिक स्तर पर निर्बल से सबल हो जाता है। संपूर्ण चीन में एक्युपंक्चर चिकित्सा मुख्य राष्ट्रीय धारा के साथ जुड़ी है। स्कूल से ही बच्चों को एक्युप्रेशर के सिद्धांतों पर आधारित मालिश की शिक्षा दी जाती है।
प्राथमिक शिक्षा के स्तर से ही एक कक्षा खास तौर पर ऐसी मालिश के लिए सुरक्षित रखी जाती है, जिसमें वे एक्युप्रेशर पर आधारित मालिश का अभ्यास करते हैं। शायद इस चिकित्सा प्रणाली के कारण ही वे दीर्घायु होते हैं।
पूरे चीन में एक्युपंक्चर सिखाने के लिए बड़े-बड़े विश्वविद्यालय खुले हुए हैं और वहां स्कूली शिक्षा के बाद पांच वर्ष की पढ़ाई के उपरांत एक्युपंक्चर स्नातक की उपाधि प्रदान की जाती है। एक्युपंक्चर में स्नातकोत्तर और शोध की व्यवस्था भी है। पर यह सब चीनी भाषा में ही सिखाया जाता है।
विदेशी डाॅक्टरों के लिए विश्वविद्यालय में अलग से विशेष पाठ्यक्रम अंग्रेजी भाषा के माध्यम से चलाए जाते हैं। इन पाठ्यक्रमों में एक्युपंक्चर के बारे में बुनियादी पाठ्यक्रम से लेकर उच्चतर पाठ्यक्रमों तक की पढ़ाई कराई जाती है। चीन में जब भी कोई बीमार पड़ता है तो सर्वप्रथम वह या तो पारंपरिक चिकित्सा विभाग में जाता है, या फिर एक्युपंक्चर के माध्यम से अपना इलाज कराता है।
विश्व में सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश होने पर भी उसने अपनी पारंपरिक चिकित्सा पद्धति एवं एक्युपंक्चर का बखूबी इस्तेमाल करते हुए संपूर्ण नागरिकों की स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सफल समाधान किया है। यह इलाज बिना दवा के या बिना सर्जरी के होता है। इस पद्धति में अत्यंत बारीक सुइयां शरीर के विभिन्न भागों में लगाई जाती हैं और उन्हें आधे घंटे तक छोड़ दिया जाता है।
इन सुइयों की अद्भुत क्षमता के कारण रोग काबू में आने लगता है और बीमार ठीक होने लगता है। सुई को किस जगह लगाना है और किस दिशा में कितनी गहराई तक शरीर में प्रवेश कराना है, यह सब चिकित्सक की सूझ-बूझ पर निर्भर करता है। सामान्यतः प्रयत्न यही किया जाता है कि सुइयों का प्रयोग कम से कम किया जाए और मरीज को कम से कम बार बुलाया जाए।
इस पद्धति में प्रायः दस से बीस सुइयों का इस्तेमाल एक बार में किया जाता है और दस से बीस दिन तक रोगी को बुलाया जाता है। इस अवधि में मरीज की बीमारी काफी हद तक काबू में आ जाती है। यही परिणाम मरीज के आगे चलने वाले एक्युपंक्चर के कोर्स को निर्धारित करते हैं। यदि रोगी को काफी आराम है तो उसे कम समय के लिए लंबे अंतराल के बाद बुलाया जाता है। पर यदि ऐसा नहीं है तो उसे जल्दी बुलाना पड़ता है।
अनेक बीमारियों में उसे दोबारा बुलाया भी नहीं जाता और मरीज हमेशा के लिए ठीक हो जाता है। सुइयां चुभाते समय मरीज को दर्द का विशेष एहसास नहीं होता। मामूली सी प्रतीत होने वाली सिर दर्द की कष्टदायक समस्या बीमार व्यक्ति को शारीरिक और मानसिक तौर पर बहुत परेशान करती है। सिरदर्द चाहे किसी भी प्रकार का हो, उससे छुटकारा दिलाने में एक्युपंक्चर का योगदान महत्वपूर्ण होता है।
प्रायः पंद्रह दिनों के इलाज से मरीज को इससे पूरी तरह से मुक्ति मिल जाती है। लेकिन चिकित्सा के क्षेत्र में हर बीमार के ठीक होने का तरीका अलग-अलग होता है। कुछ मरीज एक-दो दिनों में ही ठीक हो जाते हैं पर कुछ को ठीक होने में पंद्रह दिन से भी अधिक का समय लग जाता ह।ै जिन लागे ा ंे का े सिरदर्द अक्सर परेशान करता रहता हो और इसके कारण जिनकी व्यक्तिगत और सामाजिक जिंदगी दूभर हो रही हो, उनके लिए एक्युपंक्चर एक वरदान है।
चीन से निकलकर एक्युपंक्चर इस समय पूरे विश्व में बड़ी तेजी से फैल रहा है। अनेक विकसित देशों जैसे जर्मनी, अमेरिका, इंग्लैंड, जापान, आॅस्ट्रेलिया, कनाडा आदि में इसके सैकड़ों केंद्र स्थापित हो चुके हैं जहां न केवल एक्युपंक्चर से इलाज किया जाता है, बल्कि एक्युपंक्चर की शिक्षा भी दी जाती है। पूरे विश्व में एलोपैथी के डाॅक्टर इस पद्धति के विशेष प्रशिक्षण के लिए चीन का भ्रमण करते रहते हैं और शिक्षा प्राप्त करके अपने-अपने देशों में एक्युपंक्चर से इलाज करते हैं।
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