इयर कैंडलिंग अर्थात कान का मोमबŸाी से उपचार, जिसका उपयोग सारे संसार में सदियों से होता रहा है। कानों के उपचार की इस विधि में प्राकृतिक वस्तुओं से बनी खोखली मोमबŸाी को कान में प्रवेश कराकर उसे जलाया जाता है। इससे कानों तथा दिमाग का ताप सक्रिय होता है। यह विधि रोगी को सुख और आराम पहुंचाती है।
कानों और कानों के जरिए दिमाग, नाक व गले के उपचार की यह विधि 2500 ई.पू. से प्रचलन में है। इसके साक्ष्य उŸारी और दक्षिणी अमेरिका, एशिया, मिस्र और यूनान में पाए गए हैं। मधुमक्खी के छŸो का मोम इसमें प्रयुक्त मोमबŸाी का मुख्य घटक है। इससे यह साफ हो जाता है कि यह प्रणाली तभी से प्रचलन में आई जब मानव ने मधुमक्खी पालन शुरू किया।
प्राकृतिक उपचार की यह एक ऐसी अद्भुत प्रणाली है जिसके द्वारा कान, नाक व गले की बीमारियों का उपचार बहुत सहजता व सफलता से हो जाता है। इसमें रोगी को किसी भी प्रकार का कोई कष्ट नहीं होता। यह उपचार बहुत कम समय में अपना प्रभाव दिखा देता है। यह प्रणाली बेहद सस्ती होने के कारण सर्वसुलभ है। एक बार के इलाज में लगभग चालीस से पचास मिनट लगते हैं।
जैसा कि ऊपर बताया गया है, मोम के बने लगभग दस इंच लंबे पतले पाइप को कान में विशेष तकनीक से लगाकर उसके बाहरी सिरे को जलाया जाता है जिसके कारण उसमें वैक्यूम बन जाता है। यह वैक्यूम कान, नाक व गले तक की बारीक से बारीक नसों पर अपना प्रभाव डालता है।
इसी वैक्यूम के रास्ते कान में जमा मैल बाहर खिंच आता है। इस छोटी सी सरल विधि से कान, नाक व गले की पुरानी से पुरानी बीमारी का इलाज संभव हो जाता है। इस इलाज में न कोई दर्द होता है और न ही इसमें कोई जोखिम है। साइनस, जुकाम, माइग्रेन, सिरदर्द, एलर्जी, फंगस जैसी समस्याओं का इलाज इस विधि से किया जाता है।
ऊंचा सुनाई देने, जो बचपन में साइनस के बिगड़ जाने के कारण होता है, का इलाज भी इससे सफलतापूर्वक हो जाता है। एक 30 वर्षीय महिला को बचपन से बहुत कम सुनाई देता था। उसे तीन-चार बार के उपचार से ही आश्चर्यजनक लाभ हुआ और उसकी श्रवण शक्ति वापस आ गई। एक अन्य महिला को ऐसा लगता था मानो कोई उसके कान में बोलता है।
जब उसके कान में विभिन्न स्वर आते थे तो वह स्वयं पर से नियंत्रण खो बैठती थी और घर में रखा जो भी सामान सामने होता था उसे फेंकना शुरू कर देती थी। जांच करने पर पता चला कि बचपन में उसका साइनस गंभीर रूप से बिगड़ गया था और कान का प्राकृतिक मोम जम गया था। फलतः तेज हवा चलने पर उसे ऐसा लगता था मानो कोई अदृश्य शक्ति कुछ बोल रही है।
इससे उसमें बेहद चिड़चिड़ापन आ जाता था और उसका व्यवहार उŸोजक हो जाता था। इयर कैंडलिंग के उपचार से उसकी समस्या दूर हो गई। एक अन्य रोगी ने अपना कान किसी चिकित्सक से साफ कराया। कान की गहराई में उस चिकित्सक के उपकरण से चोट लग गई।
इसके फलस्वरूप उसके कान से मवाद निकलता रहता था। इयर कैंडलिंग के उपचार से उसे लाभ मिला। इस उपचार में एक ही परहेज है- कम से कम चैबीस घंटे तक ठंडे पेय, आइसक्रीम व एयर कंडीशन से रोगी को दूर रहना है। उपचार के चैबीस घंटे बाद तक रोगी को अपने सिर पर पानी नहीं डालना चाहिए, वरना उपचार का प्रभाव खत्म हो जाएगा।
कनाडा के कुछ वैज्ञानिकों ने इस विधि को आधुनिक रूप में विकसित किया है। उन्होंने जंगलों में अपने प्रवास के दौरान कुछ जन जातियों को इसी प्रकार की तकनीक का प्रयोग करते देखा। उन्होंने उत्सुकतावश इसके बारे में विस्तार से पता किया।
वे लोग मोम के लगभग एक मीटर लंबे पाइप का प्रयोग कर नाक, कान व गले की समस्या का उपचार करते थे। वैज्ञानिकों ने इसे और सरल बनाने के लिए लगभग दस इंच लंबे दो पाइपों को एक एक कर दोनों कानों में लगाकर प्रयोग किया। उनके इस प्रयोग से आश्चर्यजनक रूप से सफलता मिली।
इस प्रकार कान की समस्याओं का उन्होंने एक सरल उपचार खोज लिया। प्रत्येक व्यक्ति को सामान्य रूप से छः महीने में एक बार इयर कैंडलिंग अवश्य करानी चाहिए ताकि कान की समय-समय पर सफाई होती रहे। नियमित सफाई से किसी भी प्रकार के गंभीर रोग से बचा जा सकता है।
यह उपचार सरल तो है, पर इसका प्रयोग बिना सोचे-समझे नहीं करना चाहिए। इसमें अत्यंत सावधानी की जरूरत होती है, अतः इसका प्रयोग किसी योग्य चिकित्सक के मार्गदर्शन पर ही करना चाहिए।
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