वन में शिक्षा का महत्व हमेशा से रहा है और आज के युग में और भी बढ़ गया है। आज अशिक्षित या कम पढ़े-लिखे लोगों को अपने अधिकांश कार्यों के लिए दूसरों का सहारा लेना पड़ता है। अन्यथा कदम-कदम पर जीवन भर कठिनाइयों से जूझना पड़ता है, अस्तु। शिक्षा से न केवल व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास होता है, अपितु वह व्यक्ति को आत्मनिर्भर बनाती है।
व्यक्ति पर कैसा भी दायित्व हो - चाहे वह पारिवारिक, सामाजिक, आर्थिक, व्यावसायिक, राजनीतिक या धार्मिक दायित्व हो, उसे पूरा करने में शिक्षा उसकी सर्वाधिक सहायता करती है। अतः माता-पिता अपनी संतान को समुचित शिक्षा देना चाहते हंै। इक्कीसवीं शताब्दी के हमारे स्वतंत्र भारत की यह विडंबना है कि आज शिक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ जाने के कारण बोर्ड की उच्चतर माध्यमिक परीक्षा में कई-कई लाख छात्र उत्तीर्ण हो रहे हैं।
किंतु उनके आगे व्यावसायिक या उनके पसंद के पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए कुछ हजार सीटें ही उपलब्ध हैं। इस प्रकार बोर्ड से उच्चतर माध्यमिक परीक्षा उत्तीर्ण करते ही छात्रों को अपने मनपसंद विषय में दाखिला लेने के लिए प्रवेश परीक्षा का सामना करना होता है, जो एक प्रतियोगिता परीक्षा के समान होती है और जिसमें योग्यता क्रम के आधार पर प्रवेश मिलता है।
यह प्रवेश परीक्षा एक चक्रव्यूह के समान है, जिसमें से वही छात्र निकल पाता है, जिसके पास एकाग्रता, धैर्य एवं विश्वास हो। अन्यथा प्रतिवर्ष अनेक अभिमन्यु इस प्रवेश परीक्षा के चक्रव्यूह में फंस कर कुंठित हो जाते हैं। प्रवेश परीक्षा में असफलता के कारण किस छात्र में कितनी एकाग्रता, धैर्य एवं विश्वास होगा इसका मूल्यांकन वैदिक ज्योतिष में बड़ी गंभीरता से किया गया है।
इस शास्त्र में शिक्षा का विचार पंचम भाव से और व्यावसायिक शिक्षा का विचार दशम भाव से होता है। व्यक्ति के धैर्य का सूचक बुध, विश्वास का सूचक गुरु एवं एकाग्रता का सूचक उसका राशीश होता है। इस प्रकार शिक्षा और व्यक्ति की पसंद के विषय में प्रवेश परीक्षा का परिणाम जानने के लिए उसकी कुं. डली में पंचम भाव, पंचमेश, दशम भाव, दशमेश, बुध, गुरु एवं, राशीश - इन सातों का विचार किया जाता है।
यदि ये बलवान हों, इन पर शुभ प्रभाव हो, ये पाप प्रभाव से मुक्त हों, शुभ स्थान में स्थित हों और एक दूसरे से या शुभ ग्रहों से योग करते हों, तो शिक्षा का योग अच्छा होता है और इस योग के प्रभाववश मनपसंद या अच्छे पाठ्यक्रम में प्रवेश मिल जाता है। यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में निम्नलिखित योगों में से कोई एक योग हो, तो उसे अपने मनपसंद विषय में प्रवेश नहीं मिल पाता और यदि कदाचित प्रवेश मिल भी जाता है, तो उसकी पढ़ाई किसी न किसी कारणवश बीच में छूट जाती है।
पंचमेश अशुभ (6, 8, 12) भाव म,ंे पापी ग्रह की राशि म ंे पाप दृष्ट या युत हो। पंचमेश अपनी नीच राशि में हो और पापी ग्रहों के बीच हो। दशमेश त्रिकभाव में पापी ग्रह के साथ हो और उस पर पापी ग्रह की दृष्टि हो। पचं म एव ं दशम स्थान म ंे पापी ग्रह हों और उनके स्वामी निर्बल हों। पंचमेश या दशमेश का षष्ठेश या अष्टमेश के साथ परिवर्तन योग हो।
बुध, गुरु एवं राशीश निर्बल होकर अ श् ा ु भ् ा स्थान में हों। बुध, गुरु एवं राशीश गोचर में अशुभ हों। षष्ठेश, अष्टमेश या व्ययेश की दशा/अंतर्दशा चल रही हो। उक्त योगों, दशा एवं गोचर के प्रभाववश छात्र का पढ़ाई में मन नहीं लग पाता, उसकी स्मरण शक्ति कमजोर हो जाती है और कभी भी उसका आत्म विश्वास डंवाडोल हो जाता है।
इन स्थितियों में सुधार करने के लिए, शिक्षा तथा प्रवेश परीक्षा में सफलता के लिए श्री महासरस्वती मंत्र और उसका अनुष्ठान करना चाहिए, यह एक अचूक उपाय है।
श्री महासरस्वती मंत्र :¬ ह्रीं ऐं ह्रीं ¬ सरस्वत्यै नमः विनियोग ¬ अस्य श्रीमहासरस्वतीमन्त्रस्य कण्वऋषिः श्री सरस्वती देवता विराट छन्दः ममाभीष्ट सिद्धये जपे विनियोगः। ऋष्यादि न्यास ¬ कण्वाय ऋषये नमः शिरसि। ¬ विराट छन्दसे नमः मुखे। ¬ सरस्वतीदेवतायै नमः हृदि। ¬ ऐं बीजाय नमः गुह्ये। ¬ ह्रीं कीलकाय नमः सर्वांगे। कर न्यास ऐं अंगुष्ठाभ्यां नमः। ऐं तर्जनीभ्यां नमः। ऐं मध्यमाभ्यां नमः। ऐं अनामिकाभ्यांनमः। ऐं कनिष्ठिकाभ्यां नमः। ऐं करतलकरपृष्ठाभ्यांनमः। अंगन्यास ऐं हृदयाय नमः। ऐं शिरसे स्वाहा। ऐं शिखायै वषट्। ऐं कवचाय हुम्। ऐं नेत्रत्रयाय वौषट्। ऐं अस्त्राय फट्। मंत्रन्यास ¬ नमः, ब्रह्मरन्ध्रे। ह्रीं नमः, भ्रुवोर्मध्ये। ऐं नमः दक्षिणनेत्रे। ह्रीं नमः वामनेत्रे। सं नमः, दक्षिणकर्णे। रं नमः, वामकर्णे। खं नमः, दक्षिणनासापुटे। त्यैं नमः, वामनासापुटे। नं नमः, मुखे। मं नमः, गुह्ये। ध्यान वाणीं पूर्ण निशाकरोज्वलमुखीं कपू.र् रकुन्दप्रभां, चन्द्रार्धाड़्कितमस्तकां निजकरैः संवि. भ्रती मादरात्। वीणामक्षगुणं सुधाढ्य्ाकलशं ग्रन्थंच तुंगस्तनीं, दिव्यैराभरणादि भूषिततनुं हंसाधिरूढां भजे।।
पूर्ण चंद्र के समान देदीप्यमान मुखवाली, कपूर एवं कंुद जैसे वर्ण वाली, चंद्रकला धारण करने वाली, चारों हाथों में वीणा, अक्षसूत्र, अमृतकलश एवं पुस्तक धारण करने वाली, पीनस्तनी, दिव्य आभूषणों से सुशोभित एवं हंस पर विराजमान सरस्वती जी की वंदना करता हूं।
यंत्र पूजन विधि नित्यनियम से निवृत्त होकर आसन पर पर्वू ाि भमख्ु ा या उत्तराभिमख्ु ा बठै कर विधिवत् विनियोग, ऋष्यादिन्यास, करन्यास, अंगन्यास, मंत्रन्यास एवं ध्यान कर चैकी या पटरे पर पीला कपड़ा बिछाकर उस पर भोजपत्र पर अष्टगंध एवं चमेली की कलम से लिखे उक्त मंत्र पर पंचोपचार (रोली, चावल, फूल, धूप एवं दीप) से मां सरस्वती का पूजन कर मनोयोगपूर्वक उक्त मंत्र का जप करना चाहिए।
इसके अनुष्ठान में जप संख्या एक लाख और मतांतर से सवा लाख है। सिद्धसारस्वतंत्र के अनुसार इस मंत्र का अनुष्ठान करने से साधक में एकाग्रता, धैर्य एवं विश्वास विकसित हो जाता है।
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