शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंग
शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंग

शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंग  

फ्यूचर समाचार
व्यूस : 10062 | जुलाई 2007

शिव पुराण में वर्णित है कि आशुतोष भूत भावन भगवान शिव शंकर प्राणियों के कल्याणार्थ तीर्थ में लिंग रूप में वास करते हैं। जिस पुण्य स्थल में भक्तजनों ने उनकी अर्चना की उस स्थान में वे वहीं अवतरित हुए और ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा के लिए अवस्थित हो गए। यों शिवलिंग असंख्य हैं, फिर भी इनमें द्वादश ज्योतिर्लिंग सर्वप्रधान हैं।

शिव पुराण के अनुसार ये ज्योतिर्लिंग इस प्रकार हैं।

1. श्री केदारनाथ,

2. श्री सोमनाथ,

3. श्री वैद्यनाथ,

4. श्री मल्लिकार्जुन,

5. श्री भीमशंकर,

6. श्री महाकालेश्वर

7. श्री नागेश्वर

8. श्री विश्वनाथ,

9 श्री रामेश्वर

10 श्री घुश्मेश्वर

11. श्री त्र्यंबकेश्वर,

12. श्री ओंकारेश्वर

1. श्री केदारनाथ: यह ज्योतिर्लिंग पर्वतराज हिमालय के केदार नामक स्थान पर विराजमान है। यहां की प्राकृतिक छटा अत्यंत मनोरम और चित्ताकर्षक है। इस स्थान के पश्चिम भाग में मंदाकिनी नदी के तट पर केदारेश्वर महादेव मंदिर स्थित है। इनके दर्शन से धर्म और अध्यात्म की ओर बढ़ने की प्रेरणा मिलती है। इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन पूजन तथा यहां स्नान करने से भक्तों को लौकिक फलों की प्राप्ति होने के साथ-साथ अचल शिव भक्ति तथा मोक्ष की प्राप्ति भी हो जाती है।

2. श्री सोमनाथ: गुजरात प्रांत के काठियावाड़ क्षेत्र में समुद्र के किनारे यह ज्योतिर्लिंग सोमनाथ नामक विश्व प्रसिद्ध मंदिर में स्थापित है। पहले इस क्षेत्र का नाम प्रभास था। भगवान श्री कृष्ण ने जरा नामक ब्याध के बाण को यहीं निमित्त बनाकर अपनी लीला का संवरण किया था। पावन प्रभास क्षेत्र में स्थित इस सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की महिमा का वर्णन महाभारत, श्रीमद् भागवत तथा स्कंदपुराण् ाादि में विस्तार से की गई है। चंद्र का एक नाम सोम भी है। उन्होंने भगवान शिव को ही अपना नाथ मानकर यहां तपस्या की थी। इसलिए इस ज्योतिर्लिंग को सोमनाथ कहा जाता है। इसके दर्शन पूजन, आराधना से भक्तों को जन्म जन्मांतर के सारे पापों से मुक्ति मिल जाती है। वे शंकर भगवान और माता पार्वती की अक्षय कृपा का पात्र बन जाते हैं।

3. श्री वैद्यनाथ: यह ज्योतिर्लिंग बिहार (अब झारखंड) प्रांत के संथाल परगने में स्थित है। पुराण शास्त्र और लोक दोनों में इसकी बड़ी प्रसिद्धि है। यह ग्यारह अंगुल ऊंचा वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग अत्यंत कल्याणकारी है। यहां दूर-दूर से तीर्थों का जल लाकर चढ़ाने का विधान है। रोग मुक्ति के लिए भी इस ज्योतिर्लिंग की महिमा बहुत प्रसिद्ध है। पुराणों में बताया गया है कि जो व्यक्ति इस ज्योतिर्लिंग का दर्शन करता है, उसे समस्त पापों से अपने आप छुटकारा मिल जाता है। उस पर भगवान शिव की कृपा सदा बनी रहती है। दैहिक, दैविक, भौतिक कष्ट उसके पास नहीं आते।

4. श्री मल्लिकार्जुन: आंध्रपदेश में कृष्णा नदी के तट पर श्री शैल पर्वत पर यह ज्योतिर्लिंग स्थित है। इस पर्वत को दक्षिण का कैलाश पर्वत कहते हैं। महाभारत, पद्मपुराण, शिवपुराण आदि धर्म ग्रंथों में इसकी महिमा और महानता का विस्तृत वर्णन किया गया है। शिवरात्रि के पर्व पर यहां बहुत बड़ा मेला लगता है। इस ज्योतिर्लिंग और तीर्थ क्षेत्र की महिमा का विशद वर्णन पुराणों में किया गया है। इस प्रकार शिव लिंग का दर्शन, पूजन, अर्चन करने वाले भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। उनकी भगवान शंकर के चरणों में स्थिर प्रीति हो जाती है। इसके दर्शन से शारीरिक, मानसिक, दैविक , भौतिक सभी प्रकार की बाधाओं से वे मुक्ति मिलती है और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है। गौहाटी के पास ब्रह्मपुर पहाड़ी पर अवस्थित है।

5.भीमशंकर ज्योतिर्लिंग : स्थापना के विषय में पुराणों में कई प्रकार की कथाओं का उल्लेख है। यह मंदिर सहयाद्रि पर्वत पर अवस्थित है और भीमा नदी वहीं से निकलती है। इस मूर्ति से धीरे धीरे जल झरता है।

6. श्री महाकालेश्वर: मध्यप्रदेश के उज्जयिनी नगर में पवित्र नदी शिप्रा के तट पर यह परम पवित्र ज्योतिर्लिंग अवस्थित है। इसे अवन्तिपुरी भी कहते हैं। महाकवि कालिदास के समय में इस देश का बड़ा महत्व था। यह भारत की परम पवित्र सप्त पुरियों में से एक है। भगवान यहां हुंकार सहित प्रकट हुए इसलिए उनका नाम महाकाल पड़ गया। इसीलिए इस परम पवित्र ज्योतिर्लिंग को महाकालेश्वर के नाम से जाना जाता है।

7. श्री नागेश्वर: यह प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग गुजरात प्रांत में द्वारिकापुरी से लगभग 25 किमी. दूरी पर अवस्थित है। भगवान शिव के आदेश से इस ज्योतिर्लिंग का नाम नागेश्वर पड़ा। इस परम पवित्र ज्योतिर्लिंग के दर्शन की शास्त्रों में बड़ी महिमा है। कहा है कि जो श्रद्धापूर्वक इसके अवतरण और माहात्म्य की कथा सुनेगा वह सारे पापों से मुक्त हेा जाएगा और समस्त सुखों का भोग करने के बाद अंत में उसे मोक्ष तथा भगवान शंकर के परम पवित्र दिव्य धाम की प्राप्ति होगी।

8. श्री विश्वनाथ: यह ज्योतिर्लिंग उत्तर भारत की प्रसिद्ध नगरी काशी में स्थित है। इस नगरी का महाप्रलय काल में भी लोप नहीं होता है। भगवान शंकर उस समय अपनी वास भूमि इस पवित्र नगरी को त्रिशूल पर उठा लेते हैं। महाप्रलय के बाद पुनः यथास्थान रख देते हैं। इस पवित्र नगरी को सृष्टि की आदि स्थली भी कहते हैं। इस स्थान पर भगवान विष्ण् ाु ने सृष्टि कामना से तपस्या करके भगवान शिव को प्रसन्न किया था। अगस्त्य मुनि ने भी इस स्थान पर अपनी तपस्या से भगवान शंकर को प्रसन्न किया था। इसे अविमुक्त क्षेत्र कहते हैं। इस पवित्र नगरी के उत्तर में ¬कार खंड, दक्षिण में केदारखंड और मध्य में विश्वेश्वर खंड है। प्रसिद्ध विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग विश्वेश्वर खंड में अवस्थित है। इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन, पूजन और आराधना से भक्त समस्त पापों, तापों से छुटकारा पा जाता है।

9. श्री रामेश्वरम: मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री रामचंद्र ने सेतुबंध में इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना की थी। इसके विषय में रामायण में उल्लेख है कि जब भगवान श्री रामचंद्र जी लंकापुरी पर युद्ध करने के लिए जा रहे थे तब इसी स्थान पर उन्होंनंे समुद्र तट पर बालुका राशि से शिवलिंग बनाकर उसका पूजन किया था। कथा यह भी है कि इस स्थान पर पहुंचकर भगवान श्री रामचंद्र पानी पीने लगे तो आकाशवाणी हुई कि ‘मेरी पूजा किए बिना ही जल पीते हो?’ इस आकाशवाणी को सुनकर भगवान श्री राम ने बालुका से शिवलिंग बनाकर पूजा की और भगवान शंकर से रावण पर विजय का वर मांगा। उन्होंने प्रसन्नतापूर्वक यह वर भगवान श्री राम को दे दिया। लोक कल्याण् ाार्थ भगवान शिव ने ज्योतिर्लिंग के रूप में वहां निवास करने की सबकी प्रार्थना भी स्वीकार कर ली। तभी से यह ज्योतिर्लिंग यहां विराजमान है।

10. श्री घुश्मेश्वर: यह ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र प्रदेश के दौलताबाद से 20 किमी. दूर वेरुल गांव के पास अवस्थित है। पुराण में इस ज्योतिर्लिंग के विषय में उल्लेख है कि दक्षिण देश में देवगिरि पर्वत के पास सुधर्मा नामक एक तपोनिष्ठ तेजस्वी धार्मात्मा ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नी का नाम सुदेहा था। दोनों में बहुत प्रेम था। लेकिन उन्हें कोई संतान नहीं थी। ज्योतिषियों ने गणना करके बताया कि सुदेहा के गर्भ से संतानोत्पत्ति नहीं हो सकती। सुदेहा संतान की उत्पत्ति के लिए लालायित थी। उसने आग्रह कर सुधर्मा को दूसरा विवाह अपनी छोटी बहन से करने को कहा। पहले तो यह बात ब्राह्मण देवता को नहीं जंची किंतु पत्नी की जिद के आगे उन्हें झुकना ही पड़ा। वह अपनी पत्नी की छोटी बहन घुश्मा से विवाह कर उसे घर ले आए। घुश्मा सदाचारिणी और भगवान शंकर की भक्त भी थी। नित्य एक सौ एक पार्थिव शिवलिंग बनाकर निष्ठापूर्वक उनका पूजन करती थी। भगवान आशुतोष शंकर की कृपा से उसके गर्भ से एक अत्यंत सुंदर व स्वस्थ पुत्र संतान ने जन्म लिया। सुदेहा ने पुत्र को मार डाला मगर परम शिवभक्त सती धुश्मा के आराध्य शिव ने उसे पुनर्जीवित कर दिया और स्वयं घुश्मेश्वर महादेव ज्योतिर्लिंग के नाम से विख्यात हुए।

11. श्री त्र्यंबकेश्वर: यह ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र प्रांत में नासिक से पश्चिम 35 किमी. दूर अवस्थित है। महर्षि गौतम ने तथाकथित गौहत्या के पाप से बचने के लिए अपनी पत्नी के साथ भगवान शिव की आराधना की। भगवान शंकर जी ने प्रकट होकर उनसे वर मांगने को कहा। महर्षि गौतम ने उनसे कहा, ‘भगवन! मैं चाहता हूं कि आप मुझे गौहत्या के पाप से मुक्त कर दें।’ भगवान शिव ने कहा, ‘गौतम! तुम सदैव सर्वथा निष्पाप हो। गौहत्या का पाप तुम्हें छलपूर्वक लगाया गया था। छलपूर्वक ऐसा करवाने वाले तुम्हारे आश्रम के ब्राह्मणों को मैं दंड देना चाहता हूं।’ गौतम ऋषि ने कहा, ‘प्रभो! उन्हीं के माध्यम से मुझे आपका दर्शन और आशीर्वाद प्राप्त हुआ। उन्हें मेरा परम हितैषी समझ कर उन पर आप क्रोध न करें।’ ऋषियों, मुनियों और देवगण् ाों ने यहां एकत्र हो गौतम की बात का अनुमोदन करते हुए भगवान शिव से सदा वहां वास करने का निवेदन किया। भगवान शंकर जी उनकी बात मानकर वहां त्र्यंबक ज्योतिर्लिंग के नाम से स्थित हो गए। गौतम द्वारा लाई गई गंगा जी भी वहीं पास में गोदावरी नाम से प्रवाहित होने लगीं। यह ज्योतिर्लिंग समस्त पुण्यों का आधार है।

12. श्री ओंकारेश्वर: यह ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश में पवित्र नर्मदा नदी के तट पर अवस्थित है। यहां नर्मदा नदी के दो धाराओं में विभक्त होने के कारण यह स्थल त्रिभुजाकार सा हो गया है। इसे मान्धाता पर्वत या शिवपुरी कहते हैं। नर्मदा नदी की एक धारा इस पर्वत के उत्तरी पाश्र्व से और दूसरी दक्षिण् ाी पाश्र्व से होकर बहती है। दक्षिणी धारा को मुख्य धारा कहते हंै। इसी मान्धाता पर्वत पर श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थित है। यह ज्योतिर्लिंग मनुष्यकृत नहीं है। स्वयं प्रकृति ने इसका निर्माण किया है। इसके चारों पाश्र्व सदा जल भरे रहते हैं। मान्धाता पर्वत को ही भगवान शिव का स्वरूप माना जाता है। इस कारण से इसे शिवारी भी कहते हैं। भक्ति और श्रद्धापूर्वक भक्तगण इसकी नित्य परिक्रमा करते हंै।

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