कैंसर जैसे भयानक रोग के योग भी जन्मकुंडली में मिल जाते हैं। ग्रहों की स्थितियों से यह पता चल जाता है कि इस रोग की संभावना कब बनती है।
- जो ग्रह सबसे ज्यादा पापी ग्रहों से पीड़ित हो उसकी दशांतर्दशा में रोग होने की संभावना रहती है
- छठे, आठवें और बारहवें भावों के भावेशों की दशांतर्दशा में रोग होने की संभावना रहती है
- छठे, आठवें और बारहवें भावों में स्थित ग्रहों की दर्शांतर्दशा में रोग की संभावना रहती है।
- राहु और सूर्य का आपस में संबंध हो और छठे या आठवें भाव से भी संबंध हो तो इनकी दशांतर्दशा में रोग की संभावना रहती है।
- यदि राहु मकर या शनि कुंभ राशि में हो तथा शनि कमजोर और पापी ग्रहों से पीड़ित हो तो राहु या शनि की दशांतर्दशा में रोग होने की संभावना बनती है। इसके विवेचनार्थ कैंसर पीड़ित कुछ जातकों की कुंडलियों का विश्लेषण यहां प्रस्तुत है।
कुंडली सं. 1 एक कैंसर ग्रस्त महिला की कुंडली है जिसे स्तन कैंसर था। षष्ठेश शनि अष्टमेश गुरु और केतु के साथ स्वराशि में षष्ठ भाव में स्थित है। चतुर्थ भाव में सूर्य और मंगल हैं जो राहु से पूर्ण प्रभावित हैं। राहु कर्क राशिस्थ होकर द्वादश भाव में स्थित है। इसका स्वामी चंद्र बाधक भाव में है। कर्क राशि पर षष्ठेश और अष्टमेश की पूर्ण दृष्टि तथा चंद्र की बाधक भाव में स्थिति स्तन कैंसर का कारण थी। बीमारी का पता द्वादशेश राहु की महादशा में लग्नेश सूर्य की अंतर्दशा में चला।
कुंडली सं. 2 का जातक ब्लड कैंसर से पीड़ित था, लग्न में नीच राशिस्थ शुक्र, राहु और चंद्र के साथ स्थित है। शनि, जो षष्ठेश है, की पूर्ण दृष्टि इन पर है। अष्टमेश मंगल और द्वादशेश सूर्य दोनों तृतीय भावस्थ हैं। चंद्र और शुक्र की राहु के साथ युति और उन पर पड़ने वाली दृष्टि से कैंसर रोग के योग बनते हैं। राहु की महादशा में लग्नेश बुध की अंतर्दशा में बीमारी का पता चला। द्वादशेश सूर्य अस्त होकर लग्नेश और अष्टमेश के साथ तृतीय भाव में युति कर रहा है।
कुंडली सं. 3 का जातक ब्लड कैंसर से पीड़ित था। राहु से दृष्ट चंद्रमा चतुर्थ भाव में स्थित है। राहु अष्टम भाव में वृष राशिस्थ है। षष्ठेश गुरु सप्तम भावस्थ है और शनि से दृष्ट है। मंगल द्वादश भाव में स्थित है। लग्नेश शुक्र राहु और शनि से दृष्ट है। गुरु तृतीयेश और षष्ठेश होकर मारक सप्तम भाव में स्थित है। बीमारी का पता गुरु की महादशा में गुरु की अंतर्दशा में चला क्योंकि गुरु मारक भावस्थ है।
कुंडली सं. 4 का जातक ब्लड कैंसर से पीड़ित था। षष्ठेश और षष्ठ से षष्ठ यानी एकादशेश मंगल लग्नस्थ है। लग्नेश बुध अष्टमेश शनि के साथ शनि के घर में बैठा हुआ है। जातक की कुंडली में नीच राशि का सूर्य द्वादशेश शुक्र के साथ है तथा राहु से पूर्ण दृष्ट है। जातक को बीमारी का पता सूर्य की महादशा में शुक्र की अंतर्दशा में चला।
कुंडली सं. 5 की जातका थाइराइड के कैंसर से पीड़ित थी। द्वितीयेश एवं एकादशेश बुध द्वितीय भाव में स्थित होकर अष्टम भावस्थ चंद्र और शनि से दृष्ट है। यहां चंद्र द्वादशेश और शनि षष्ठेश है। बीमारी का पता मंगल की दशा में राहु की अंतर्दशा के दौरान चला परंतु लग्नेश के लग्न में स्थित होने से शुभ प्रभाव के कारण जातका का सफल आॅपरेशन हुआ और वह ठीक हो गई।
कुंडली सं. 6 का जातक लीवर कैंसर से पीड़ित था। लग्नेश बुध षष्ठ भाव में सूर्य के साथ स्थित है एवं अस्त है। पंचम भाव में नीच राशि का गुरु है। पंचमेश और षष्ठेश शनि सप्तम भावस्थ है और राहु द्वारा पूर्ण दृष्ट है। राहु पर अष्टमेश और अष्टमस्थ मंगल की पूर्ण दृष्टि है। राहु तृतीय भावस्थ है और मंगल से दृष्ट है। शुक्र षष्ठम भावस्थ है तथा सूर्य के साथ युति के कारण अस्त है। बीमारी का पता राहु की महादशा में शुक्र की अंतर्दशा में चला। कुं
सं. 7 की जातका मूत्रकृच्छ कैंसर से पीड़ित थी। उसके पंचम भाव में अष्टमेश सूर्य, षष्ठेश बुध और द्वादशेश गुरु बैठे हैं। पंचम भाव और पंचमेश शुक्र पर अष्टमेश, षष्ठेश और द्वादशेश का पूर्ण प्रभाव है। मंगल यहां बाधकेश है और शनि द्वादश भावस्थ है। अतः शनि की महादशा में मंगल की अंतर्दशा में बीमारी का पता चला।