कालसर्प योग के कई दुष्प्रभाव भी पड़ते हैं।
- विभिन्न प्रकार के मानसिक और दैहिक कष्ट झेलने पड़ते हैं।
- स्वास्थ्य प्रायः बिगड़ा रहता है।
- पैतृक संपत्ति जातक के जीवन में ही नष्ट हो जाती है या उसे नहीं मिलती।
- जातक को भाइयों का सुख नहीं मिलता। कार्य-व्यवसाय में भाई बंधु धोखा देते हैं।
- पीड़ित व्यक्ति जन्म स्थान से दूर जाकर जीविकोपार्जन करता है। भूमि-भवन का सुख नहीं मिल पाता।
- शिक्षा भरपूर होने पर भी उसका जीवन में उपयोग नहीं होता।
- व्यक्ति संतान से कष्ट पाता है। संतान निकम्मी और चरित्रहीन होती है।
- जातक आजीवन संघर्ष करता रहता है। शत्रु भय निरंतर बना रहता है।
- गृहस्थ जीवन सुखी नहीं रहता।
- भाग्य कभी साथ नहीं देता। अनिद्रा रोग हो जाता है।
- कोर्ट-कचहरी, थाने आदि के चक्कर लगाने पड़ते हैं। धन का नाश होता है। विश्वासघात का दंड भोगना पड़ता है।
- अतृप्त आत्माएं जातक को परेशान करती हंै।
- संतान के विवाह में देरी होती है।
- घर का कोई प्राणी अकाल मृत्यु को प्राप्त होता है।
- पत्नी बार-बार गर्भ क्षति के कारण दैहिक, मानसिक पीड़ा भोगती है।
- जातक धर्म-कर्म हीन होता है।
- वह विपत्ति काल में सबके काम आता है परंतु उसकी विपत्ति में उसके काम कोई नहीं आता। काल सर्प योग किन स्थितियों में कमजोर होता है
- जब गुरु केंद्र में स्थित हो।
- जब शुक्र दूसरे या बारहवें भाव में हो।
- केंद्र में मंगल मेष, वृश्चिक या मकर का होकर रुचक योग बना रहा हो।
- जब कुंडली में भद्र योग हो।
- जब कुंडली में हंस योग हो।
- जब कुंडली में मालव्य योग हो।
- जब कुंडली में शश योग हो।
Û जब कुंडली में सप्तम भाव से लग्न तक प्रत्येक भाव में कोई न कोई ग्रह स्थित होकर छत्र योग बना रहा हो।
- जब कुंडली में नौका योग हो (उदाहरण मुसोलिनी)। कालसर्प योग किन स्थितियों में अधिक प्रभावी होता है
- जब कुंडली में राहु और गुरु किसी भी भाव में स्थित होकर चांडाल योग बना रहे हों।
- जब कुंडली में सूर्य और चंद्र के साथ राहु या केतु युक्त होकर ग्रहण योग बना रहे हों।
- जब कुंडली में चंद्र के पास राहु और केतु को छोड़कर कोई भी ग्रह स्थित न हो और केमद्रुम योग बन रहा हो और केमद्रुम योग नष्ट न हुआ हो क्योंकि जब चंद्रमा से केंद्र में कोई भी शुभ ग्रह हो और चंद्र को देखता हो तो केमद्रुम योग नष्ट हो जाता है।
- जब कुंडली में शुक्र और राहु की युति होने से अभोत्वक योग बन रहा हो।
- जब कुंडली में बुध और राहु की युति होने से जड़त्व योग बन रहा हो।
- जब कुंडली में मंगल और राहु की युति होने से अंगारक योग बन रहा हो।
- जब कुंडली में शनि और राहु की युति होकर नंदी योग बन रहा हो। काल सर्प योग के प्रकार और दुष्प्रभाव काल सर्प योग राहु और केतु प्रभाव के प्रकार का स्थान 1 अनंत लग्न, सातवां जीवन में संघर्ष, मानसिक अशांति 2 कुलिक दूसरा, आठवां धन का व्यय अधिक, वाणी में कटुता, कुटुंब में झगड़ा 3 वासुकि तीसरा, आठवां भाई-बहनों को कष्ट, मित्रों से हानि, भाग्योदय में अवरोध 4 शंखपाल चैथा, दसवां संतानहीनता, धनाभाव और लाॅटरी, शिक्षा तथा शेयर में नुकसान 5 पद्म पांचवां, ग्यारहवां संतान, विद्या, लाॅटरी, शेयर में नुकसान 6 महापद्म छठा, बारहवां शत्रु भय, तनाव, संदेहास्पद चरित्र 7 तक्षक सातवां, पहला वैवाहिक जीवन में कष्ट, अशांति 8 कर्कोटक आठवां, दूसरा नौकरी में डर, दुर्घटना, पैतृक संपत्ति का नाश 9 शंखचूड़ नवां, तीसरा भाग्योदय में बाधा 10 पातक दसवां, चैथा माता-पिता से दूर रहना, व्यवसाय में बाधा 11विषधर ग्यारहवां, पांचवां संघर्षमय जीवन, भाई से झगड़ा 12शेषनाग बारहवां, छठा गुप्त शत्रु से खतरा, बदनामी, आंख में पीड़ा