युवाओं की प्रथम मनोभावना यही रहती है कि जीवन में एक निश्चित आय-स्रोत की सुनिश्चितता हो। आर्थिक सम्पन्नता एवं विपन्नता व्यक्ति के जीवन का महत्वपूर्ण पहलू है। प्रत्येक युवा ऐसे कार्यक्षेत्र का चयन चाहता है जहाँ आर्थिक सम्पन्नता के साथ उसकी सामाजिक सुरक्षा भी सुनिश्चित हो सके। इसलिए जो भी, जिस प्रकार की शिक्षा ग्रहण कर पाता है उसी शिक्षा-जनित स्रोतों के माध्यम से सरकारी नौकरी प्राप्त करने के लिए लालायित रहता है क्योंकि सरकारी नौकरी मंे अच्छे आर्थिक परिलाभों के साथ-साथ पूर्ण सामाजिक सुरक्षा भी प्राप्त हो जाती है। इस दिशा में सभी युवा अथक परिश्रम एवं अध्ययन करते हंै परन्तु सरकारी क्षेत्र मे नौकरी प्राप्त करने में कम ही युवा सफल हो पाते हैं, ऐसा क्यों होता है? बढ़ती बेरोजगारी ने इस समस्या को और भी विकराल बना दिया है।
आर्थिक मारामारी के दौर में अभिभावक लाखों रूपया व्यय कर प्रतियोंिगता परीक्षाओं की तैयारी करवाते हैं। सभी अभिभावक चाहते हैं कि उनके बच्चे प्रतियोगी परीक्षा में अच्छे अंक पाकर सरकारी क्षेत्र में किसी ऊँचे ओहदे पर बैठे। मेहनत समान रूप से भी करते हैं लेकिन कुछ ही युवा प्रतियोगी परीक्षाओं में सफल हो पाते हैं। यद्यपि आजीविका का अर्जन सभी अपने-अपने ढंग से करते हैं लेकिन सरकारी नौकरी अर्जित करने का सौभाग्य कम ही युवाओं को मिल पाता है। तुलसीदास जी ने अपने महाकाव्य में वर्णित किया है कि - जनम मरन सब दुखसुख भोगा। हानि लाभु प्रिय मिलन वियोगा।। काल करम बस होहीं गोसाई । बरबस राति दिवस की नांई ।। ओमप्रकाश शर्मा प्रत्येक व्यक्ति अपने भविष्यकाल के बारे में जानना चाहता है कि उसका भावी जीवनकाल कैसा रहेगा ? खासतौर पर युवा बेरोजगार यह जानने के लिए उत्सुक रहता है कि उसकी आजीविका का कार्यक्षेत्र कौन सा होगा ? इस आधार पर मनुष्य द्वारा अर्जित फल कर्म एवं काल पर निर्भर है।
कर्म से मानव अपने प्रारब्ध को संशोधित कर सकता है । निश्चित समय पर किए गए कर्म सुफल प्रदान करने वाले तथा असमय किए गए कार्य कुफलदायी सिद्ध होते हैं। कर्म से ही व्यक्ति की पहचान होती है तथा समय पर कर्म करने पर सफलता प्राप्त होती है। ज्योतिष सूचना शास्त्र है। यह व्यक्ति के कर्मफल की सूचना प्रदान करता है। जन्म कुण्डली के ग्रह योग एवं ग्रह स्थितियों के आधार पर अनुमान लगाया जा सकता है कि जातक किस क्षेत्र में कर्म करेगा? उसकी आजीविका किस स्रोत के माध्यम से प्राप्त होगी। आजीविका, राजकीय पद, राजकीय सम्मान, राज्य कृपा प्राप्ति का विचार करने के लिए जन्मकुण्डली के दषम भाव का अध्ययन किया जाता है। प्रसिद्ध ग्रंथ जातकतत्वम् के अनुसार - राज्यपदव्यापारमुद्रानृपमानराज्यपितृमहत्पदाप्तिपुण्याज्ञाकीर्ति- वृष्टिप्रवृतिप्रवासकर्माजीवजानु पूत्र्यादिदषमाच्चिन्त्यम् ।।
दशम भाव में स्थित ग्रह, दृष्टि, युति तथा दशमेश ग्रह के बलाबल का परीक्षण कर आजीविका के क्षेत्र का निर्धारण करने के शास्त्रीय निर्देश हैं। पद-प्रतिष्ठा किस प्रकार की होगी इसका अनुमान लगाने के लिए पंचम-नवम भाव का विचार किया जाता है। धन की स्थिति, मात्रा एवं आय की स्थिति का अनुमान लगाने के लिए द्वितीय-एकादश भाव पर विचार किया जाता है। राज्य कृपा, राजा, राज्य सुख का प्रदाता ग्रह सूर्य को माना गया है। दशम भाव का चर कारक दशमेश ग्रह माना जाता है। दशम भाव के चार स्थिर कारक ग्रह हैं, सूर्य, बुध, गुरू एवं शनि ग्रह, जो आजीविका निर्धारण के अनिवार्य विचारणीय अंग हैं। मंगल भी दशम भाव में बली माना जाता है। इन स्थिर कारक एवं चर कारक ग्रहों की स्थिति जातक के संपूर्ण आजीविका क्षेत्र सहित सफलता-असफलता की गाथा बयां करते हंै।
इस प्रकार आजीविका क्षेत्र के साथ आर्थिक स्त्रोतों का अनुमान किसी एक भाव या एक ग्रह से नहीं लगाया जा सकता है, इसके लिए विभिन्न भावों एवं ग्रहों के आपसी सम्बन्धों के समग्र अध्ययन की आवश्यकता होती है। यहाँ हम ऐसे ग्रह योगों की चर्चा करेंगे जो सरकारी क्षेत्र में नौकरी प्राप्ति में सहायक सिद्ध होते हैं। ज्योतिष के प्राचीन गं्रथ जातकतत्वम् के अनुसार - सार्केऽंशे राजकार्यकर्ता ।। केन्द्रेऽर्के राजकार्यकर्ता ।। केन्द्रे कोणे चन्द्रे राजकार्यकर्ता ।। राज्येशे लाभे केन्द्रे वा राजकार्यकर्ता ।। लग्नाम्बुगे जीवे राजकार्यकर्ता ।। इस आधार पर कारकांश कुण्डली के केन्द्र त्रिकोण में सूर्य स्थित हो तो मनुष्य राजकार्यकर्ता होता है। केन्द्र-त्रिकोण में बलवान चन्द्रमा होने पर जातक सरकारी क्षेत्र से आजीविका अर्जित करता है। दशमेश ग्रह बलवान होकर लग्न से केन्द्र अथवा लाभ भाव में स्थित हो तो जातक सरकारी कर्मचारी होता है। जन्मकुण्डली में लग्न अथवा चतुर्थ भाव में गुरू बलवान होकर स्थित हो तो सरकारी क्षेत्र में नौकरी दिलवाने में सहायक सिद्ध होते हैं । जन्मकुण्डली में सभी सातों ग्रहों की स्थिति महत्वपूर्ण होती है। इनमें कोई भी एक बली ग्रह राजकीय क्षेत्र से आजीविका या सरकारी पद प्राप्ति में सहायक हो जाता है।
प्राथमिक अनुसंधान से प्राप्त निष्कर्षों के अनुसार सूर्य, चन्द्रमा, गुरू, शनि एवं मंगल उत्तरोत्तर रूप से राजकीय नौकरी दिलाने में सहायक सिद्ध होते हैं। सूर्य एवं गुरू तो निश्चित रूप से राजकीय धन से ही रोजी-रोटी देने वाले ग्रह हंै। गुरू धन, समृद्धि एवं सूर्य ऊर्जा, जीवनशक्ति, इच्छाशक्ति, राज्य एवं अधिकार का नैसर्गिक कारक है। इसी प्रकार बुध विद्या, बुद्धि, वाक्शक्ति, व्यापार, संचार, लेखन का तथा शनि ग्रह श्रम एवं अध्यवसाय का नैसर्गिक कारक ग्रह है । इन सभी ग्रहों की भूमिका का विस्तृत विवेचन किया जाना यहाँ संभव नहीं है तथापि सूर्य ग्रह की सरकारी नौकरी दिलाने में जो भूमिका है, उसका विश्लेषणात्मक अध्ययन प्रस्तुत करेंगे। लगभग 100 कुण्डलियों के विश्लेषण उपरान्त सरकारी नौकरी दिलाने में सूर्य ग्रह की भूमिका निर्धारित करने में निम्न मानदण्ड दृष्टिगोचर होता है- ‘‘यदि सूर्य ग्रह जन्मकुण्डली में केन्द्र-त्रिकोण भाव, द्वितीय-एकादश भाव में बलवान होकर स्थित हों तथा केन्द्रेश अथवा त्रिकोणेश से चतुर्विध शुभ सम्बन्ध बनायंे तो व्यक्ति के सरकारी क्षेत्र में नौकरी प्राप्त होने की पूर्ण संभावना होती है।’’
इस परिकल्पना में सरकारी नौकरी प्राप्ति का रहस्य अन्तर्निहित है। इस तथ्य की सत्यता जाँचने के लिए 100 राजकीय नौकरी में कार्यरत व्यक्तियों की जन्मकुण्डलियों का अध्ययन किया गया, जिनके कुछ उदाहरण निम्न प्रकार प्रस्तुत हंै - कुण्डली संख्या-1 एक भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी की है, जिसकी जन्मतिथि 13.05. 1967 है। प्रस्तुत कुण्डली मेष लग्न की है जिसमें सूर्य लग्न(केन्द्र-त्रिकोण) भाव में उच्च राशि में स्थित है। सूर्य स्वयं कुण्डली में पंचमेश(त्रिकोणेश) है। मंगल ग्रह जो लग्न के स्वामी हैं, की अष्ठम दृष्टि सूर्य पर पड़ रही है। यहां सूर्य का सम्बन्ध केन्द्र एवं त्रिकोण भाव एवं भावेशों के साथ हो रहा है। इस कुण्डली में उपरोक्त प्रस्तुत मानदण्ड लागू होता है ।
सूर्य की बली स्थिति ने जातक को सरकारी क्षेत्र से आजीविका प्रदान करने में सहायता की । कुण्डली संख्या-2 एक राजस्थान प्रषासनिक सेवा के अधिकारी की है, जिसकी जन्मतिथि 3.6. 1956 है। प्रस्तुत कुण्डली कन्या लग्न की है। यहाँ सूर्य ग्रह नवम भाव(त्रिकोण) में लग्नेश-दशमेश(केन्द्रेश) बुध के साथ युति कर रहा है। अतः यहां सूर्य त्रिकोण भाव में स्थित होकर केन्द्र स्वामी बुध से सम्बन्ध बना रहा है। इस कुण्डली में उपरोक्त प्रस्तुत मानदण्ड पूर्ण रूप से लागू होता है। सूर्य की बलवान स्थिति के कारण जातक को सरकारी नौकरी प्राप्त करने में सफलता मिली । कुण्डली संख्या-3 एक काॅलेज व्याख्याता की है, जिसकी जन्मतिथि 3.9. 1949 है। कुण्डली तुला लग्न की है।
सूर्य एकादशेश होकर एकादश भाव में स्व राशि में स्थित है। यहाँ इसकी चतुर्थेश पंचमेश(केन्द्र त्रिकोण) शनि ग्रह से युति है। इस कुण्डली में भी सूर्य का सम्बन्ध केन्द्र त्रिकोण भाव-भावेशों से हो रहा है अतएव सूर्य की प्रभावी भूमिका के कारण जातक सरकारी क्षेत्र में नौकरी पाने में सफल रहा। कुण्डली संख्या-4 एक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी की है, जिसकी जन्मतिथि 29.10.1965 है। कुण्डली कन्या लग्न की है । कुण्डली में सूर्य द्वितीय भाव में स्थित है तथा उस पर चतुर्थेश-सप्तमेश(केन्दे्रश) गुरू की पूर्ण दृष्टि है। धन भाव से त्रिकोण भावेश से सम्बन्ध बन रहा है। अतः प्रस्तुत कुण्डली में भी उपरोक्त मानदण्ड पूर्ण रूप से लागू हो रहा है किन्तु कुण्डली में सूर्य एवं गुरू ग्रह दोनों ही अपेक्षाकृत कमजोर स्थिति में है जिसके कारण जातक सबसे निम्नतम पायदान चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी का पद पा सका। लेकिन इस स्थिति में भी सूर्य ग्रह के कारण राजकीय नौकरी पाने में सफल रहा ।
कुण्डली संख्या-5 एक अध्यापक की है जिसकी जन्मतिथि 29.09.1969 है। कुण्डली वृष लग्न की है। इस कुण्डली में सूर्य पंचम भाव(त्रिकोण) में स्थित है। सूर्य स्वयं चतुर्थ भाव(केन्द्र) का स्वामी होकर पंचम में स्थित है। पंचमेश बुध स्वगृही होकर सूर्य से युति कर रहा है। प्रस्तुत कुण्डली में सूर्य के साथ केन्द्र एवं त्रिकोण भाव-भावेशों का बली सम्बन्ध स्थापित हो रहा है। अतएव इस कुण्डली में भी उपरोक्त मानदण्ड पूर्ण रूप से लागू हो रहा है। सूर्य की स्थिति के कारण ही जातक को सरकारी क्षेत्र में नौकरी अर्जित हो सकी । उपरोक्त मानदण्ड को 100 कुण्डलियों पर लागू कर परिणामों के सत्यता की जाँच की गई। निष्कर्ष के तौर पर यह पाया गया कि यदि सूर्य केन्द्र त्रिकोण भाव में स्थित होकर शुभ भावेशों से सम्बन्ध बनाता है तो उस जातक की सरकारी क्षेत्र में नौकरी में प्रवेश की 52 प्रतिशत संभावना रहती है।
यदि सूर्य द्वितीय-एकादश भाव में स्थित होकर शुभ भावेशों से सम्बन्ध बनाता है तो 22 प्रतिषत संभावना रहती है कि जातक सरकारी क्षेत्र में नौकरी पा सकेगा। अन्य भावों यथा तृतीय, छठे भाव एवं अन्य ग्रहों के प्रभाव के कारण भी लगभग 23 प्रतिशत सरकारी क्षेत्र में नौकरी पाने की संभावना बनती है। इस तथ्य को निम्नांकित दण्डारेख से भी प्रदर्शित किया गया हैः- उक्त दण्डारेख से प्रदर्शित किए गए विश्लेषण से यह तथ्य भी उजागर होता है कि सूर्य केन्द्र में स्थित होकर त्रिकोणेश से सम्बन्ध बनाये तो जातक सरकारी क्षेत्र में शासन करने एवं आदेशकर्ता जैसी नौकरी प्राप्त करता है, यदि सूर्य का बलवान सम्बन्ध त्रिकोण भाव से बनता है तो व्यक्ति सरकारी क्षेत्र में सृजनकर्ता के रूप में कार्य सम्पन्न करने वाला होता है। केन्द्र एवं त्रिकोण भाव एवं भावेशों से सूर्य का बलवान सम्बन्ध राज्याधिकारी के पदों से सुशोभित करता है ।
यह तथ्य सुस्थापित प्रतीत होता है कि कुण्डली में सूर्य ग्रह बलवान होने की स्थिति में जातक राजकार्यकर्ता होता है। यद्यपि इस महत्वपूर्ण तथ्य को अभी और कसौटी पर कसने की पूर्ण आवश्यकता है ताकि सूक्ष्मतम परिणामों तक पहुंचा जा सके।