कितना जानते हैं आप रत्नों के बारे में
कितना जानते हैं आप रत्नों के बारे में

कितना जानते हैं आप रत्नों के बारे में  

संजय बुद्धिराजा
व्यूस : 5412 | जुलाई 2016

भारतीय ज्योतिष शास्त्र में भी रत्नों के महत्व पर विशेष तौर पर कहा गया है। हमारे ऋषि मुनियों ने अपनी दिव्य दृष्टि द्वारा यह जान लिया था कि विभिन्न ग्रह किन-किन रंगों की रश्मियों को उत्सर्जित करते हैं, उसी रंग को आधार मान कर उन्होंने ‘रत्न’ निर्धारित किये ताकि अशुभ ग्रहों का उपचार किया जा सके। रत्नों की दैविक शक्ति को तो अब वैज्ञानिक भी मानने लगे हैं।

वास्तव में रत्न अनमोल व अतुलनीय हैं। रत्नों का पौराणिक इतिहास भारतीय प्राचीन ग्रंथों, वेद शास्त्रों आदि में रत्नों के उपयोग का विवरण मिलता है। ऋग्वेद की प्रथम ऋचा में अग्नि को रत्नधाततम् कहा है, पृथ्वी को रत्नगर्भा कहा है, सागर को रत्नागर कहा है, हिमालय को रत्न गिरि कहा है। अग्नि पुराण में कतिपय महर्षि दधीचि की अस्थियों से वज्र निर्माण के समय भूमि पर गिरे अस्थियों के सूक्ष्म कणों से रत्नों का जन्म बताते हैं। वराहमिहिर द्वारा रचित बृहत्संहिता के अध्याय 79 से 82 में रत्नों की उत्पत्ति दैत्यराज बलि के शरीर से बताई गई है जैसे मन से मोती, पित्त से पन्ना, मस्तक से हीरा आदि। गरूड़ पुराण में भी विभिन्न रत्नों का उल्लेख किया गया है। शुक्र नीतिसार में भी रत्नों से जुड़ी बातें लिखी गई हैं। नारद संहिता के अध्याय 12 में भी रत्नों का उल्लेख व वर्णन है।

रामायण में भी रत्नों के बारे में लिखा गया है। समुद्र मंथन के समय अमृत की बूंदें जब पृथ्वी पर गिरीं तो रत्नों के रूप में ही प्रकट हुईं। इन सब के बावजूद भी यह अटल वैज्ञानिक तथ्य है कि रत्न एक खनिज व जैविक पदार्थ है जो पृथ्वी व समुद्र के गर्भ से निकलता है। रत्न किस तरह से काम करते हैं

- प्रत्येक ग्रह से आने वाली तरंगें या रश्मियां या शक्ति वायुमंडल में स्थित होती हैं। उनको एकत्र करने के लिये एक माध्यम की आवश्यकता होती है और रत्न वह माध्यम होता है।


Get Detailed Kundli Predictions with Brihat Kundli Phal


- रत्न एक विशेष ग्रह की रश्मियों या शक्ति को एकत्र कर मानव के लिये अनुकूल बनाने में सक्षम होता है। यह रश्मियों के साथ अनुनाद स्थापित कर मानव शरीर में त्वचा के सूक्ष्म छिद्रों से रश्मियों के प्रवाह को बढ़ाते हैं।

तब मानव रक्त में मौजूद लौह तत्व पर चुंबकीय शक्ति द्वारा रक्त कोशिकाओं के प्रवाह व संचरण में परिवर्तन होता है और फिर उसी अनुसार मानव की किसी विशेष कार्य से संबंधित सोच में बदलाव आता है तथा वह उसी सोचानुसार कर्म कर जीवन में अनुकूल परिवर्तन ला पाता है। रत्न जन्मकुंडली के कमजोर ग्रह को केवल ताकत देता है न कि किसी अशुभ ग्रह की अशुभता में किसी प्रकार की कमी लाता है।

जिस ग्रह का रत्न पहना जायेगा, वह ग्रह शुभ हो या अशुभ और ताकतवर हो जायेगा। अतः अशुभ ग्रह का रत्न कभी धारण नहीं किया जाता। रत्नों के प्रकार रत्न 84 हैं परंतु मुख्यतः रत्न दो प्रकार के होते हैं: नव रत्न (माणिक, मोती, मूंगा, पन्ना, पुखराज, हीरा, नीलम, गोमेद और लहसुनिया) और उप रत्न (हकीक, मूनस्टोन, ब्लडस्टोन, ओनेक्स, सुनहला, जरकन, फिरोजा, नीली, लाजवर्त आदि)। इन नवरत्नों में भी पांच रत्न (माणिक, मोती, पन्ना, हीरा व नीलम) पंचमहारत्न कहलाते हैं।

नव रत्न तो अपनी खास विशेषताओं के कारण युगों से ही स्वीकार्य हैं और उपरत्न धारण करने से भी अनेक लाभ प्राप्त किये जा सकते हैं। कौन सा रत्न पहनें किस व्यक्ति को कौन सा रत्न पहनना चाहिये, यह निम्न बातों पर निर्भर करता है:

- जन्मराशि या जन्म नक्षत्र के अनुसार, दशा-अंतर्दशा अनुसार, शुभ ग्रहों के अनुसार, मूलांक या भाग्यांक या नामांक के अनुसार, हस्तरेखाओं के अनुसार, रोगों की प्रकृति के अनुसार। केवल दशानुसार रत्न पहनना हानिकारक हो सकता है।

वैसे आवश्यकतानुसार भी रत्न पहना जा सकता है जैसे विद्या के लिये चतुर्थेश या पंचमेश का रत्न, विवाह के लिये सप्तमेश का रत्न। रत्न का उंगलियों से संबंध ग्रहों की रश्मियों को अलग-अलग उंगलियों के स्नायु तंत्र के माध्यम से प्राप्त किया जाता है। रश्मियों के प्रभाव को शरीर के आवश्यक अंगों तक पंहुचाने का कार्य स्नायु तंत्र का है।


अपनी कुंडली में सभी दोष की जानकारी पाएं कम्पलीट दोष रिपोर्ट में


प्रत्येक रत्न किसी विशेष उंगली में ही पहना जाता है क्योंकि हमारी अलग-अलग उंगलियांे का हमारे मस्तिष्क के अलग-अलग भागों से संबंध होता है। मस्तिष्क के किस भाग में उन रश्मियों को जाना चाहिये, यह उंगलियों के माध्यम से ही किया जाता है।

जैसे सूर्य का रत्न माणिक, सूर्य की उंगली अनामिका में ही पहना जायेगा। चंद्र का रत्न मोती कनिष्ठा उंगली में, मंगल का रत्न मूंगा अनामिका में, बुध का रत्न पन्ना बुध की उंगली कनिष्ठा में, गुरू का रत्न पुखराज गुरु की उंगली तर्जनी में, शुक्र का रत्न हीरा अनामिका या कनिष्ठा उंगली में, शनि का रत्न नीलम शनि की उंगली मध्यमा में, राहु का रत्न गोमेद मध्यमा में और केतु का रत्न लहसुनिया मध्यमा या अनामिका में पहना जाता है।

रत्न कब धारण करें किसी शुभ मुहूर्त में ही रत्न को धारण करना चाहिये। शुभ नक्षत्रों एवं वारों में ही शुभ रत्नों को धारण करने से लाभ मिलता है। सर्वार्थ सिद्धि योग, अमृत योग या रवि योग में भी रत्नों को धारण किया जा सकता है। जिस ग्रह का रत्न धारण करना हो, यदि गोचर में वह ग्रह अपने ही नक्षत्र पर से भ्रमण कर रहा हो व उस दिन उस ग्रह का वार भी हो तो वह दिन रत्न पहनने का उत्तम दिन होता है जैसे चंद्रमा का रत्न मोती पहनना हो तो देखें कि किस सोमवार को चंद्रमा रोहिणी, श्रवण या हस्त नक्षत्र से गुजर रहा है, उस दिन मोती पहनना चाहिये। रोग-चिकित्सा में रत्नों के लाभ रोग निवारण हेतु प्राचीन काल से ही रत्नों का उपयोग किया जाता रहा है। रत्नों में से निकलने वाला रंग घनीभूत अवस्था में होता है जो स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव डालता है।

रोग निवारण की विधि रंग-चिकित्सा का भी यही आधार है। कुछ विशेष रोगों में तो रत्नों की भस्म का औषधि के रूप में उपयोग किया जाता है। हकीम अफलातून के अनुसार तो यदि मूंगे की माला को किसी रोगी के गले में डाल दिया जाय, तो धीरे-धीरे मूंगे का लाल रंग फीका होने लगता है और जैसे-जैसे रोगी स्वस्थ होने लगता है तो लाल रंग पुनः आने लगता है।

माणिक हृदयरोगों में, मोती खांसी व मानसिक रोगों में, मूंगा रक्त रोगों में, पन्ना फेफड़ांे व गुर्दे के रोग में, पुखराज पीलिया व पेट के रोगों में, हीरा सेक्स रोगों में, नीलम हड्डी रोगों में, गोमेद कोढ़ के रोगों में व लहसुनिया उल्टी बुखार में अत्यंत लाभदायक है। जख्म व नासूर में कटैला, अपच में गार्नेट, कमरदर्द में दाना फिरंग, गर्भपात रोकने में मूंगा व पन्ना, नेत्र रोग में माणिक अत्यन्त उपयोगी है।


अपनी कुंडली में राजयोगों की जानकारी पाएं बृहत कुंडली रिपोर्ट में


रत्नों के शकुन यदि रत्न चोरी हो जाय या खो जाय तो यह समझ लेना चाहिये कि जिस शुभ काम के लिये रत्न धारण किया गया था, वह विशेष कार्य, शुभ ग्रह का रत्न अपनी शक्ति सामथ्र्य अनुसार कर चुका है। यदि काम बाकी रह गया हो तो नया रत्न धारण करना चाहिये। यदि रत्न का रंग फीका पड़ जाय तो समझना चाहिये कि जिस अशुभ ग्रह के प्रभाव को कम करने के लिये जिस शुभ ग्रह का रत्न पहना गया था, उस अशुभ ग्रह का असर अब शुभ ग्रह के रत्न से शांत हो गया है।

यदि रत्न में दरार पड़ जाय तो समझना चाहिये कि अशुभ ग्रह बहुत शक्तिशाली है जो शुभ ग्रह के रत्न को कमजोर कर सकता है, अतः अब उस अशुभ ग्रह की शांति भी करवानी चाहिये। रत्नों की मर्यादा या सावधानियां रत्नों से जुड़ी कुछ सावधानियां या मर्यादायें भी हैं जिनके बारे में हमें पता होना चाहिये। रत्नों को पहन कर दाह संस्कार जैसी जगहों पर नहीं जाना चाहिये।

अनैतिक कार्य करना या अशुद्ध स्थान पर रत्न पहन कर जाना रत्न का अपमान करने जैसा कृत्य है। ऐसी स्थिति आ भी जाय तो रत्न को गंगाजल से धो कर क्षमा मांग लेनी चाहिये। किसी को अपना रत्न उधार नहीं देना चाहिये, बार बार रत्न उतारना नहीं चाहिये, रत्नों के साथ किसी तरह का खेल नहीं खेलना चाहिये, रत्न खंडित होने पर नया पहनना चाहिये। गलत रत्न कभी भी धारण नहीं करना चाहिये क्योंकि रत्न न धारण करना उतना हानिकारक नहीं है

जितना कि गलत रत्न धारण करना। सामान्यतः जन्मकंुडली में द्वितीयेश, तृतीयेश, षष्ठेश, सप्तमेश, अष्टमेश व द्वादशेश का रत्न धारण नहीं करना चाहिये क्योंकि ये अशुभ भाव हैं और इनका रत्न पहनने से अशुभता और बढ़ेगी। लग्नेश के विरोधी ग्रह का रत्न भी कभी नहीं पहनना चाहिये क्योंकि ऐसा करने से लग्नेश की शक्ति क्षीण होती है और स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर होता है।


जीवन की सभी समस्याओं से मुक्ति प्राप्त करने के लिए यहाँ क्लिक करें !




Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.