नव ग्रह अपनी रश्मियों द्वारा अपने-अपने रत्नों को ऊर्जा प्रवाहित करते रहते हैं जिससे मनुष्य का जीवन सुखी और आनंदमय हो जाता है। महर्षि वराहमिहिर की बृहत् संहिता के ‘रत्नाध्याय’ में रत्नों का विस्तार से महत्व प्रकट किया गया है।
1. माणिक्य: सूर्य का रत्न तत्व: माणिक्य रासायनिक तौर पर क्रोमियम व अल्युमीनियम का आॅक्साइड है जो रक्त के समान लाल दिखाई पड़ता है। इनकी कठोरता 9, आपेक्षिक गुरुत्व 4.03, वर्तनांक 1.76-1.77, दुहरात्र्तन 0.008 है तथा द्विवर्णिता तीव्र है।
गुण: चमकदार, चिकना, पानी श्रेष्ठ, रंग शुद्ध, वजनदार, कुछ समय हाथ में रखने पर गर्म, पानी में डालने पर रक्तिम किरणें, दूध में डालने से दूध का रंग लाल-सा, दिखने में श्रेष्ठ तथा यह शीघ्र प्रभावकारी होता है।
परीक्षा:
1. आंख पर रहने पर ठंडक
2. इसकी परत सीधी होती है।
3. माणिक गूदड़ चिकना व रंगीन होता है।
4. माणिक्य को बर्फ के टुकड़े के सामने रखने पर जोर की आवाज होती है
5. प्रातःकाल के सूर्य के सामने रखने पर माणिक्य में से लाल किरणें चारों तरफ बिखरती नजर आती हैं।
6. अंधकार में रखने पर सूर्य की आभा के समान चमकता है।
7. कमल की पंखुड़ियों पर रखने पर चमकने लगता है।
8. माणिक्य पत्थर पर घिसने पर न घिसे, न वजन घटे परंतु उसकी शोभा और बढ़ जाये वह उत्तम जाति का है।
धारण: सोने की अंगूठी में 5 रत्ती से अधिक वजन का माणिक्य दायें हाथ की अनामिका अंगुली में पुष्य नक्षत्र या रविवार को सूर्योदय के समय धारण करें।
2. मोती: चंद्र का रत्न गजमुक्ता, सर्पमुक्ता, वंशमुक्ता, शंखमुक्ता, शूकर मुक्ता, मीन मुक्ता, आकाशमुक्ता, मेघमुक्ता- ये सब अप्राप्य हैं। केवल सीप मुक्ता ही प्राप्त हो जाता है, वह भी सच्चा एवं कृत्रिम रूप में। तत्व: मोती जैविक रचना है। इसकी कठोरता 3.5-4, आपेक्षिक गुरुत्व 2.65 या 2.69 से 2.89 तक है। गुण: सीप, घोंघा से प्राप्त मोती चिकना, निर्मल, कोमल, वृत्ताकार गुलाबी व सफेद मिश्रित रंगों युक्त कैल्शियम का एक ठोस रूप है।
परीक्षा:
1. पानी से भरे कांच के गिलास में पड़े मोती से किरणें सी निकलती दिखाई देती हैं।
2. मिट्टी के बर्तन में गाय का मूत्र भरकर उसमें मोती डालने पर, प्रातः मोती साबुत मिले तो शुद्ध है।
3. धान की भूसी में मोती को खूब रगड़ने पर, शुद्ध मोती चमक और निखर जायेगा।
4. शुद्ध घी में रखने पर ठोस घी पिघल जाता है।
धारण: गुरु या रवि पुष्य योग में सूर्योदय से 10 बजे के बीच में 4 रत्ती या इससे अधिक तौल का मोती चांदी की अंगूठी में धारण करें। अंगूठी बायें हाथ की कनिष्ठिका या तर्जनी में पहनी जा सकती है।
3. मूंगा: मंगल का रत्न मूंगे के समुद्र में चट्टान या बेल के रूप में जंतु का गूदे या लसलसा पदार्थ होता है जो जमकर कठोर रूप में हो जाता है।
तत्व: आपेक्षिक गुरुत्व 2.65, कठोरता 3.5 से 4 तक, वर्तनांक 1.486 तथा 1.658 है। इस प्रकार दुहरावत्र्तन अधिक होता है, मूंगे पर हाइड्रोक्लोरिक एसिड डालने पर झाग उठते हैं। गुण- यह आइसिस नोबाइल्स नामक जंतु के मैग्नीशियम, कार्बोनेट, फेरिक आॅक्साइड, फाॅस्फेट, कैल्शियम आदि रासायनिक तत्वों का एक ठोस संगठन है।
यह गेरुए, लाल रंगों में पाया जाता है। काले व सफेद रंगों में भी मंूगा पाया जाता है परंतु इनकी संख्या कम है।
परीक्षा:
1. दूध में मूंगा डालने से लाल रंग की झाई-सी दिखाई पड़ती है।
2. सूर्य की धूप में कागज या रूई पर रखा मूंगा आग लगा देता है।
3. खून में मूंगा रखने पर उसके चारों ओर का खून गाढ़ा हो जाता है।
4. गर्भिणी के पेट पर इसकी भस्म का लेप करने से उसका गर्भ नहीं गिरता।
धारण: मंगलवार या शुक्ल पक्ष के मृगशिरा नक्षत्र में 12 बजे दोपहर से पूर्व सोने या तांबे की अंगूठी में बायंे हाथ की मध्यमा में 5 रत्ती से अधिक वजन का मूंगा धारण करें।
4. पन्ना: बुध का रत्न तत्व: पन्ना रत्न रासायनिक रूप से सिलिका, लीथियम, कैल्शियम व क्रेमियम आॅक्साइड का ठोस संगठन है।
गुण: भौतिक गुण - कठोरता 7.75, आपेक्षिक गुरुत्व 2.69 से 2.80, वत्र्तनांक 1.57-1.58, नियमित षड्भुजीय आकृति, दुहरावत्र्तन, अपकिरणन-0.014 (अधिक नहीं)। पारदर्शक या पारभाषिक। द्विवर्णिता- हरा और नीला सा हरा, कोमल, औसत वजन से हल्का।
परीक्षा:
1. पानी भरे गिलास (कांच) में डालने पर पन्ना से हरी किरणें निकलती सी दिखाई देती हंै।
2. सफेद वस्त्र पर पन्ना थोड़ी ऊंचाई पर पकड़ने पर वस्त्र हरे रंग का दिखाई देता है।
3. पन्ना चिकना, हल्का, चमकदार होता है।
धारण: स्वर्ण या कांसे की अंगूठी में पांच रत्ती से अधिक वजन का पन्ना जड़वायें। दायें हाथ की कनिष्ठिका अंगुली में रेवती नक्षत्र के किसी बुधवार को प्रातः धारण करें।
5. पुखराज: बृहस्पति का रत्न तत्व: पुखराज रासायनिक रूप में सिलिका, एल्युमिना, फ्लोरिन व कैल्सियम यौगिकों का एक ठोस संगठन है। गुण - भौतिक गुण -कठोरता 8, आ. गु.-3.53 से 3.50, वत्र्तनांक- 1.618 तथा 1.627, दुहरावत्र्तन - 0.008 तथा अपकिरण-0.014. पुखराज चमकदार, पारदर्शी, हल्दी, सरसों के फूल के समान पीला, सफेद व स्वर्ण रंगों से युक्त होता है।
परीक्षा:
1. सफेद कपड़े पर, सूर्य की धूप में देखें तो पीली झाई सी दिखाई देती है।
2. दूध में चैबीस घंटे रखने पर भी पुखराज की चमक क्षीण नहीं पड़ती।
3. जहरीले जानवर के काटे स्थान पर, पुखराज घिसकर लगाने पर तुरंत जहर मिट जाता है।
धारण: स्वर्ण निर्मित अंगूठी में पांच रत्ती से अधिक का पुखराज जड़वाकर, दायें हाथ की तर्जनी अंगुली में शुक्ल पक्ष के पुष्य नक्षत्र में किसी गुरुवार को प्रातःकाल धारण करें।
4. हीरा: शुक्र का रत्न तत्व: बनावट में यह शुद्ध खेदार कोयला है- इससे कठोर कोई और पदार्थ नहीं होता है, परंतु पूर्ण ज्वलन के पश्चात् कार्बन डाई आॅक्साइड गैस बन जाती है। गुण: भौतिक गुण-कठोरता 10, आगु. -3.15 से 3.53 तक, वर्तनांक- 2.417 से 2.465 तक (लाल प्रकाश में 2.402, पीले में 2.4175, हरे में 2.427 तथा बैंगनी में 2.465)।
परीक्षा:
1. हीरा गर्म को तुरंत ठंडा कर देता है।
2. गर्म पिघले घी को तुरंत जमाने लगता है।
3. सूर्य की धूप में इंद्रधनुषी रंग निकलते हैं।
4. तोतले बच्चे के मुंह में रख देने पर उसकी आवाज ठीक हो जाती है।
5. विपरीत लिंगी, पहना हुआ हीरा देख कर वश में होता-सा प्रतीत होता है।
धारण: चांदी की अंगूठी में पांच रत्ती (सोना भी) से अधिक वजन का हीरा जड़वाकर दाहिने हाथ की मध्यमा या कनिष्ठिका अंगुली में पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र के शुक्रवार को सूर्योदय से दोपहर 11.30 तक धारण करें।
6. नीलम: शनि का रत्न तत्व: आसमानी, मयूर पंखवत् नीले रंग से युक्त रासायनिक रूप से कोबाल्ट, टाइटेनियम, कोरण्डम अथवा एल्युमीनियम आॅक्साइड का कठोर संगठन है। गुण: भौतिक गुण- कठोरता 9, अ. गु.-4.03, वर्तनांक 1.76-1.77, दुहरावर्तन 0.008, द्विवर्णिता आदि स्पष्ट तथा जाज्वल्यता हीरे से कम होती है।
परीक्षा:
1. नीलम के समीप तिनका लाने पर वह चिपक जाता है।
2. धूप में तेज किरण निकलती है।
3. दूध में रखने पर दूध नीला दिखाई देता है।
4. नीलम धारण करने के कुछ घंटों में ही अपना अच्छा-बुरा प्रभाव दिखा देता है।
धारण: सोने, पंचधातु या लोहे की अंगूठी में चार रत्ती या बड़ा वजन का नीलम दायें हाथ की मध्यमा में अनुराधा नक्षत्र के किसी शनिवार को धारण करना चाहिए।
7. गोमेद: राहु का रत्न तत्व: गोमेद निरकोनियम नामक तत्व का एक सिलिकेट है जो चिकना, चमकदार, सुनहरे, गहरे पीले, कत्थई, गौमूत्र के रंग के समान होता है। गुण: भौतिक गुण-कठोरता 7.5 तक, आ. गु.-4.65 से 4.71 तक, पादर्शक-पारभाषक तथा अपारदर्शक भी, वर्तनांक -1.93 से 1.98 तक, दुहरावर्तन- 0.06, अपकिरणन 0.048 (काफी अधिक)।
परीक्षा -
1. गौमूत्र में 24 घंटे रखने पर गोमेद-मूत्र का रंग बदल देता है।
2. लकड़ी के बुरादे में घिसने पर चमक बढ़ जाती है।
धारण: 1. चांदी की अंगूठी में पांच रत्ती से बड़ा गोमेद जड़वाकर दायें हाथ की मध्यमा में स्वाति नक्षत्र के किसी बुध या शनिवार को प्रातः धारण करें।
9. लहसुनिया: केतु का रत्न तत्व: लहसुनिया रासायनिक रूप से एल्युमीनियम व बेरियम के यौगिकों का ठोस रूप है जो पैग्मेटाइट नाइस तथा अभ्रकमय परतदार शिलाओं से निर्मित होता है।
सामान्य रूप से यह सूखे पत्ते या धुंएं के समान, सफेद, काले, हरे, पीले आदि रंगों में पाया जाता है परंतु सभी रंग के लहसुनिया में सफेद सूत सी धारी अवश्य दिखाई पड़ती है।
गुण - भौतिक गुण-कठोरता - 8.50, आ. गु. 3.68 से 3.78 तक, वर्तनांक- 1.750 से 1.757 तक, दुहरावर्तन-0..10, अपकिरणन 0.015, रचना घनात्मक है।
परीक्षा:
1. सफेद कपड़े पर रगड़ने पर चमक बढ़ जाती है।
2. हड्डी पर 24 घंटे रखने पर यह उसमें छेद कर देता है।
3. अंधेरे में लहसुनिया में से किरणें निकलती सी दिखार्ठ पड़े तो वह श्रेष्ठ कोटि का रत्न माना जाता है।
धारण: चांदी में निर्मित अंगूठी में पांच रत्ती से अधिक वजन का रत्न, दायें हाथ की मध्यमा अंगुली में अश्विनी नक्षत्र में किसी भी शनिवार को प्रातःकाल धारण करें....