रत्नों से सुख का सृजन
रत्नों से सुख का सृजन

रत्नों से सुख का सृजन  

हरिश्चंद्र प्रसाद आर्य
व्यूस : 4774 | जुलाई 2016

नवग्रहों के रत्न सूर्य: माणिक/उपरत्न- लालड़ों, तामड़ा, ताम्रमणि। चंद्रमा: मोती/उपरत्न- चन्द्रकांत, मुक्ताशुक्ति, सूर्याश्म। मंगल: मूंगा/उपरत्न-प्रबालमूल, राता, लाल हकीक। बुध: पन्ना/उपरत्न - वैरूज, मरगज। गुरु: पुखराज/उपरत्न- सुनैला, केरू, धीया, सोनल। शुक्र: हीरा/उपरत्न - उपाऊ, पांतला, कांसला, विक्रांत। शनि: नीलम/उपरत्न - नीली, कटैला, जमुनियां। राहु: गोमेद/उपरत्न-तुरसावा, साफी। केतु: लहसुनिया/उपरत्न-अलक्षेन्द्र, गोदन्ती, कर्केतका। रत्नों में कमोबेश विद्युत-शक्ति मौजूद रहती है

जिसका आभास और अनुभव विभिन्न प्रकार से किया जा सकता है- कुछ रत्नों को दबाव के द्वारा, कुछ को घर्षण के द्वारा और कुछ को ताप के संपर्क में आने पर। इस आधार पर रत्न तीन वर्गों में बांटे जा सकते हैं:

(क) ताप विद्युत: जो रत्न ताप के संपर्क में आकर विद्युत-मत हो जाते हैं उन्हें ताप-विद्युत वाले रत्नों में गणना की जाती है। लेकिन रत्नों में वह ताप तभी विद्युत उत्पन्न कर पाता है जब ताप सामान्य से कुछ अधिक हो। शोभामणि और स्फटिक की गणना ऐसे ही रत्नों में की जाती है।

(ख) दाब विद्युत: कुछ रत्नों का निर्माण ऐसे तत्वों से होता है कि उन पर दबाव पड़ने पर रत्नों में विद्युत प्रवाह उत्पन्न हो जाते हैं। ऐसे रत्नों का एक सिरा (-) ऋण व्यक्त करता है और इसका दूसरा सिरा ($) धन व्यक्त करता है। दबाव रहते ही ये अपनी सामाजिक स्थिति में आ जाते हैं। मणिभ ऐसे रत्नों की श्रेणी में आते हैं।

(ग) घर्षणा विद्युत: कुछ ऐसे रत्न हैं जिन्हें सूती या ऊनी कपड़े से रगड़ने पर उस रत्न में विद्युत शक्ति उत्पन्न हो जाती है। रगड़ने के तुरंत बाद गौर से देखने पर पता चलेगा कि रत्न से चिनगारियां निकल रही हैं। कहरवा, पुखराज, हीरा ऐसे ही रत्नों की श्रेणी में आते हैं। इसके अतिरिक्त रत्न ताप की दृष्टि से कुचालक और सुचालक भी होते हैं। ऐसे रत्न को जो ताप के सुचालक हेाते हैं, स्पर्श करने पर शीतलता का अनुभव होता है।


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दूसरा कुचालक रत्न वह है जिन्हें स्पर्श करने पर गर्मी की अनुभूति होती है। यह भौतिक विज्ञान पर जांचा परखा गया तथ्य है। हीरा ताप का सुचालक है तो पुखराज, मूंगा ताप के कुचालक हैं। रत्नों के धारण में सावधानी भी बरतने की जरूरत है। विभिन्न रत्नों में एक दूसरे के प्रति मित्रादि का भाव भी ग्रह स्वामित्व के आधार पर होता है। अतः विपरीत गुण धर्म वाले रत्न एक साथ पहनने की मनाही है।

फिर भी किसी परिस्थिति विशेष में ऐसा करना अनिवार्य हो तो उचित सोच-विचार के बाद अलग - अलग हाथों में धारण करने की सलाह दी जाती है। ऐसे रत्नों की तालिका पिछले पृष्ठ पर संलग्न है। ग्रहों के दोष दूर करने और शुभ ग्रह के प्रभाव को बढ़ाने के लिए रत्नों का प्रयोग अचूक प्रभाव रखता है। रत्न पहनने से पहले कुंडली में ग्रहों की स्थिति आदि का विचार विद्वान ज्योतिषी से करा लेना चाहिए। ग्रह रत्न को वैसे तो उस ग्रह के वार को सामान्यतः धारण किया जाता है परंतु उस दिन अन्य अशुभ समय-योग न हो।

ग्रह के रत्नों की प्राण-प्रतिष्ठा करके धारण करने से उसकी प्रभाव क्षमता द्विगुणित हो जाती है। रत्न दोष रहित हो और नकली न हों। आजकल महंगे- रत्नों में नकली रत्नों की विशेषतः भरमार है। ऐसे रत्नों के धारण करने से जातक को कोई लाभ नहीं होता है। संश्लिष्ट, यौगिक तथा कांच और प्लास्टिक के बने रत्न जैसे दीखने वाले चीजें भी बाजार में मिलती हैं। संदोष रत्न भी धारण करने से लाभ के बदले हानि होती है।



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