- रत्न को रातभर गंगा जल में रखकर या एक बार स्वच्छ जल से धोकर भी पहन सकते हंै। रत्न वाली अंगूठी को रात भर कच्चे दूध में भिगोना अनिवार्य नहीं क्योंकि कई रत्न दूध को सोखते हैं। सारी रात रखने से उसमें दूध के कण समाकर बाद में रत्न को विकृत ही करते हैं।
- यदि चाहें तो आप अपनी रत्न मुद्रिका को अपने इष्टदेव के चरणांे में अर्पित करके भी पहन सकते हैं।
- चैथ, नवमी, चतुर्दशी के अलावा तिथियों और रवि, मंगल, बुध, गुरु, शुक्रवार को सब रत्न पहन सकते हैं।
- सभी रत्न सुबह नहा धोकर दोपहर से पहले सूर्य की ओर मुंह करके पहनना चाहिए।
- रत्न पहनने के लिए चंद्रमा का गोचर शुभ हो तो अति उत्तम होता है। रत्न पहनने से पहले ये जरूर जांच लें कि आपके लग्न से आठवीं राशि लग्न न हो।
- रत्न पहनने के दिन अगर रेवती, अश्विनी, रोहिणी, पुनर्वसु, पुष्य, तीनों उत्तरा, हस्त, चित्रा, स्वाति, विशाखा, अनुराधा, धनिष्ठा नक्षत्र भी उक्त बातों के अतिरिक्त बने तो विशेष शुभ है। आईये जानें ये रत्न किन-किन रोगों का ईलाज करने में कारगर हैं।
- माणिक - पीलिया, लकवा, कम रक्तचाप, लकवा दिमागी कमजोरी, हर्निया, क्षय।
- मोती - हृदय रोग, नेत्र दोष, विटामिन डी की कमी। मधुमेह, स्मरण शक्ति, दिमागी रोग।
- मंूगा - बवासीर, अल्सर, हृदय दुर्बलता, दमा, वात पित्त कफ।
- पन्ना - भूख न लगना, मानसिक विकार, वीर्य विकार, त्वचा रोग, बुखार - पुखराज - त्वचा विकार, भूख में कमी, सिरदर्द हृदय गति, रक्तस्राव, मानसिक विकार।
- हीरा - फेफड़े के रोग, मोतियाबिंद, आवाज के दोष, मर्दाना शक्ति।
- नीलम - मूत्राशय के रोग, नसांे नाड़ियों की अकड़न, गठिया, गंजापन, मिरगी।
- गोमेद - त्वचा रोग, झुर्रियां, मस्तिष्क दुर्बलता, टी. बी., पीलिया, बुद्धिवृद्धि।
- लहसुनिया - वायु शूल, सर्दी लगना, त्रिदोष। हमारे शास्त्रों में ग्रहों की सब्जियां, अनाज, वनस्प्तियां या अन्य जैविक खाद्य पदार्थ भी बताए गए हैं।उन चीजों को खाने, खिलाने या दान करने से भी रत्न पहनने सा फल मिलता है और ग्रह अनुसार फल बढ़ता है।