योग विचार
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फ्यूचर समाचार
व्यूस : 19822 | आगस्त 2006

योग विचार आचार्य अविनाश सिंह योग क्या है? जन्मकुंडली में योग कैसे बनते हैं? योग का फल जातक को पूरे जीवन भर मिलता है या कुछ निश्चित समय तक ही। कुंडली में शुभ योग होने के बावजूद जातक को फल क्यों नहीं मिल पाता? आइए, जानें...

प्रश्न: योग किसे कहते हैं?

उत्तर: दो या दो से अधिक ग्रह जब किसी राशि में साथ-साथ या किसी निश्चित अंतर पर रहते हैं तो एक दूसरे को प्रभावित करते हैं। ग्रहों की इस स्थिति को योग कहते हैं।

प्रश्न: फलित ज्योतिष में योग का क्या महत्व है?

उत्तर: ज्योतिष नौ ग्रहों, बारह राशियों और 27 नक्षत्रों पर आधारित है। सभी जातकों का भविष्य भिन्न-भिन्न होता है। हर जातक की कुंडली में ग्रह नौ ही होते हैं। इसका सीधा सा कारण है अलग-अलग ग्रहों की भिन्न-भिन्न कुंडलियों में अलग-अलग स्थिति। अलग-अलग स्थिति अर्थात् दूसरे जातक से अलग योग, जिसके कारण हर जातक का भूत भविष्य या वर्तमान भिन्न होता है। फलित का विषय कोई भी हो, फलित नौ ग्रहों के आधार पर ही किया जाएगा और नौ ग्रह किसी भी कुंडली में एक सी स्थिति में नहीं हो सकते भले ही वह स्थिति अंशों में भिन्न हो।

प्रश्न: कुंडली में किसी भी योग का योगफल कैसे जानें?

उत्तर: योग किन्हीं भी दो या दो से अधिक ग्रहों का बन रहा हो तो दोनों ग्रहों का योगफल उनकी स्थिति पर निर्भर करता है और क्रमशः इस प्रकार बढ़ता है। उच्चाभिलाषी ग्रह स्थिति, मूल त्रिकोणगत ग्रह, मित्र राशिस्थ ग्रह, स्वराशिस्थ ग्र हऔ रउच्च ग्र हस्थिति। इसी तरह ग्रह का बल क्रमशः इस प्रकार घटता है। नीचाभिलाषी ग्रह स्थिति, पाप ग्रह से दृष्ट, पाप ग्रह के भावस्थ, पापस्थ ग्रह और नीचस्थ ग्रह दोनों ग्रहों के बल का योग करने से योगफल ज्ञात होता है।

प्रश्न: कुंडली में शुभ या अशुभ योग फल किस समय देते हैं?

उत्तर: योग अपने-आप में शुभ या अशुभ फल का सूचक है और जातक को वह फल उम्र भर मिलता है। लेकिन जिन ग्रहों का योग बन रहा है, उनकी दशा-महादशा-अंतर्दशा में विशेष फल प्राप्त होता है। योग फल जिस ग्रह का अधिक होता है, कुंडली में उस ग्रह की प्रधानता रहती है और उस ग्रह की दशा में जातक वैसा ही लाभ प्राप्त करता है जैसा ग्रह का स्वभाव होता है।

प्रश्न: कभी-कभी देखने में आता है कि कुंडली में योग तो शुभ बन रहा है लेकिन जातक को उसका लाभ नहीं प्राप्त होता। ऐसा क्यों?

उत्तर: वास्तव में हम कुंडली में बने योग को तो देख लेते हैं लेकिन कुं¬डली में ग्रह शुभ है या अशुभ इसका विचार किए बिना ही योग का फल शुभ या अश्ुाभ मान लेते हैं। यदि कुंडली में ग्रह की शुभता अशुभता का विचार कर लंे तो योग के फल का अनुमान लगाया जा सकता है। यदि योग ग्रह कुंडली में शुभ है तो योग का फल अवश्य मिलेगा, अशुभ है तो योगफल नहीं प्राप्त होगा। जैसे मान लें कि कोई योग गुरु से बन रहा है। गुरु नैसर्गिक तौर पर शुभ होता है, लेकिन कुंुडली में अकारक है। ऐसी स्थिति में गुरु से बनने वाला योग फलहीन हो जाता है। इसलिए जब भी ग्रहयोगों के फल पर विचार करना हो तो पहले कुंडली में ग्रहों की शुभ-अशुभ स्थिति जान लें।  कभी-कभी ऐसा भी होता है कि ग्रह योग कुंडली में भी शुभ होता है और नैसर्गिक तौर पर भी, फिर भी स्वभाव होता है।

प्रश्न: कभी-कभी देखने में आता है कि कुंडली में योग तो शुभ बन रहा है लेकिन जातक को उसका लाभ नहीं प्राप्त होता। ऐसा क्यों?

उत्तर: वास्तव में हम कुंडली में बने योग को तो देख लेते हैं लेकिन कुं¬डली में ग्रह शुभ है या अशुभ इसका विचार किए बिना ही योग का फल शुभ या अश्ुाभ मान लेते हैं। यदि कुंडली में ग्रह की शुभता अशुभता का विचार कर लंे तो योग के फल का अनुमान लगाया जा सकता है। यदि योग ग्रह कुंडली में शुभ है तो योग का फल अवश्य मिलेगा, अशुभ है तो योगफल नहीं प्राप्त होगा। जैसे मान लें कि कोई योग गुरु से बन रहा है। गुरु नैसर्गिक तौर पर शुभ होता है, लेकिन कुंुडली में अकारक है। ऐसी स्थिति में गुरु से बनने वाला योग फलहीन हो जाता है। इसलिए जब भी ग्रहयोगों के फल पर विचार करना हो तो पहले कुंडली में ग्रहों की शुभ-अशुभ स्थिति जान लें। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि ग्रह योग कुंडली में भी शुभ होता है और नैसर्गिक तौर पर भी, फिर भी चंद्रमा नीच राशिगत या शत्रु ग्रह से दृष्ट हो या शत्रु ग्रह के साथ हो। नीच राशिस्थ या शत्रु क्षेत्री चंद्रमा लग्न से केंद्र या त्रिकोण में हो और उससे छठे, आठवें या बारहवें में गुरु हो। नीच या शत्रु या पाप ग्रह के वर्ग में शनि और शुक्र परस्पर एक दूसरे को देखते हों या दोनों एक ही राशि में हों।  गुरु लग्नेश होकर केंद्र के बाहर सूर्य के साथ अस्त हो और लाभेश निर्बल हो। गुरु, मंगल, शनि और बुध नीचस्थ होकर एकादश, षष्ठ, द्वादश, अष्टम या पंचम भाव में स्थित हों। शुक्र, गुरु, चंद्र और मंगल नीच राशि में होकर लग्न, दशम, नवम, सप्तम या पंचम भाव में स्थित हांे। द्वादश भाव का स्वामी लग्न में हो और लग्नेश द्वादश भाव में हो तथा किसी एक के साथ सप्तमेश हो या सप्तमेश उसे देख रहा हो। चंद्र द्वितीय या सप्तम भाव में, लग्नेश षष्ठ भाव में और षष्ठेश लग्न ें में हो। लग्नेश छठे, आठवें या 12 वें भाव में हो और उसके साथ द्वितीयेश या सप्तमेश हो। पंचमेश षष्ठेश, अष्टमेश या द्वादशेश के साथ हो। नवम भाव में शनि हो, उसे पाप ग्रह देखते हों तथा लग्न में सूर्य युक्त बुध नीच अंश में हो। ऐसी और भी कई ग्रहों की युतियां स्थितियां हैं जिनके कारण कुंडली में दरिद्र योग बनता है।

प्रश्न: काल सर्प योग भी आज कल बहुत चर्चा में है। यह क्या है?

उत्तर: काल सर्प योग में सभी ग्रह राहु-केतु की धूरी रेखा के एक तरफ होते हैं। काल सर्प योग वाले जातकों का जीवन संघर्षपूर्ण होता है। लेकिन संघर्ष के बावजूद वे अपनी मंजिल को पाने में कामयाब हो जाते हैं और उच्च पद प्राप्त करते हैं। यह योग राजाओं, मंत्रियों आदि की कुंडलियों में देखने को मिलता है। हमारे देश के कई नेताओं और मंत्रियों की कुंडलियों में भी यह योग देखा गया है। काल सर्प योग से कभी भी जातक को भयभीत नहीं होना चाहिए क्योंकि यह जातक की संघर्ष करने की क्षमता को बढ़ा कर उसे उच्च पद पर ले जाता है।

प्रश्न: धन योग कैसे बनता है?

उत्तर: प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, सप्तम, नवम, दशम और एकादश भावों के स्वामियों के आपसी संबंध से धन योग बनता है। जितने अधिक ग्रहों का संबंध होगा धन योग उतना ही उत्तम और उच्च कोटि का होगा।

प्रश्न: राजयोग कैसे बनता है?

उत्तर: केन्द्रेश और त्रिकोणेश के आपसी संबंध से राजयोग बनता है। केंद्र का स्वामी त्रिकोण में और त्रिकोण का स्वामी केंद्र में आ जाए या केंद्र व त्रिकोण दोनों के स्वामी केंद्र या त्रिकोण में युति संबंध स्थापित करें तो राज योग बनता है। जिस जातक की कुंडली में यह योग होता है वह उच्च पद प्राप्त करता है।

प्रश्न: चांडाल योग क्या होता है?

उत्तर: चांडाल योग को गुरु चांडाल योग भी कहते हैं। जब गुरु राहु या केतु से युति या दृष्टि संबंध बनाता है तो गुरु चांडाल योग बनता है। इस योग में उत्पन्न व्यक्ति भाग्यहीन, मंदबुद्धि, आजीविका से असंतुष्ट और शरीर पर घाव का चिह्न लिए होता है।

प्रश्न: विपरीत राजयोग से क्या अ¬िभप्राय है?

उत्तर: कुंडली में यदि छठे, आठवें या 12वें भावों का स्वामी छठे, आठवें 12वें में ही रहे तो विपरीत राज योग बनाता है अर्थात यदि षष्ठेश अष्टम या द्वादश भाव में या अष्टमेश षष्ठ या द्वादश भाव में; या द्वादशेश अष्टम या षष्ठ भाव में चला जाए तो विपरीत राजयोग बनता है। विपरीत राजयोग वाला व्यक्ति संघर्ष करते हुए सभी सांसारिक सुखों को भोगता है। वह अपना लक्ष्य प्राप्त करने के लिए अच्छे या बुरे कोई भी काम करता है। यहां तक कि वह ऐसे काम भी करता है जिसे समाज मान्यता नहीं देता। तस्कर आदि विपरीत राजयोग के कारण ही बनते हैं।

प्रश्न: योगों के फल को प्रमाणित कैसे किया जाए?

उत्तर: एक ही योग की कई कुंडलियां लेकर उनका अध्ययन करें। यदि 80-85 प्रतिशत फल एक ही नजर आए तो समझें कि योग का फल सही है। इसके लिए कम से कम 100-200 कुंडलियां लेनी चाहिए। इससे अधिक कंुडलियांे में यदि फल एक सा ही हो तो वह पूर्णतया प्रामाणिक हो जाता है।

प्रश्न: योग के लिए भाव किस कुंडली से लेना चाहिए- लग्न से या चलित से?

उत्तर: आमतौर पर तो अधिकतर ज्योतिषी लग्न कुंडली से ही ग्रह स्थिति का योगफल कहते हैं। लेकिन यदि चलित से लिया जाए तो योग फल अधिक स्पष्ट मिलेगा।

प्रश्न: गजकेसरी योग में यदि चंद्र मेष राशि के 10 पर और गुरु कर्क राशि के 200 पर हो, तो क्या गजकेसरी योग का फल मिलेगा?

उत्तर: आमतौर पर कुंडली में गुरु और चंद्र की भाव स्थिति को देखकर ही योग मान लिया जाता है। लेकिन योग सिद्धांत के अनुसार दोनों ग्रह एक दूसरे से केंद्र में होने चाहिए। केंद्र भाव एक दूसरे से 900 की दूरी पर माने जाते हैं। इसलिए गुरु और चंद्र तभी एक दूसरे से केंद्र में जाने जाएंगे जब उनकी आपसी दूरी 900 की हो। यदि ऐसा है तो गजकेसरी योग पूर्ण फलदायी होगा अन्यथा उसका फल प्राप्त नहीं होगा। दो ग्रहों के बीच की कोणिक दूरी ही पूर्ण योग बनाती है।

प्रश्न: योग पर ग्रहों की दृष्टि का प्रभाव कब पड़ता है?

उत्तर: ग्रहों की दृष्टियां कोणिक होती हैं। पूर्ण सप्तम भाव पर दृष्टि 1800 की होती है। यदि दो ग्रह आपस में एक दूसरे से सप्तम हों और योग बना रहे हों और ऐसी स्थिति में उनमें कोणिक दूरी यदि 1800 की हो तो योग बनेगा और पूर्ण फल देगा।

प्रश्न: क्या योग का फल अंतर्दशा में ही मिलता है? या उम्र भर प्राप्त होता है?

उत्तर: योग का फल दशा- अंतर्दशा में विशेष रूप से प्राप्त होता है लेकिन उसका असर समान्यतः उम्र भर रहता है। प्रश्न: दशा-अंतर्दशा के अतिरिक्त योग कब प्रभाव डालता है? उत्तर: दशा-अंतर्दशा के अतिरिक्त जब योग बनाने वाले ग्रह गोचर में योग के ऊपर से गोचर करते हैं तो योग को प्रभावित करते हैं, जिससे योग का फल जातक को प्राप्त होता है।

प्रश्न: योग के फल कब नहीं मिलते हैं?

उत्तर: अक्सर कुंडली को देखने से लगता है कि योग बन रहा है। लेकिन वास्तव में योग बन नहीं रहा होता क्योंकि हर योग किसी सिद्धांत पर निर्भर करता है। यदि सिद्धांत के अनुसार ग्रहों की स्थिति नहीं हो तो यो गनही ं बनात। ऐ सी स्थिति म े ंनजर आने वाले योग के फल नहीं मिलते। यदि कोई शुभ योग बन रहा हो और उस योग पर किसी अशुभ ग्रह की दृष्टि पड़ रही हो तो ऐसी स्थिति में भी योग का फल नहीं मिलता। यदि योग के ग्रहों की दशा या अंतर्दशा न आए तो भी फल नहीं मिलता। गोचर में भी यदि योग शुभ ग्रहों से प्रभावित न हो तो भी फल प्राप्त नहीं होता। कुछ ऐसे योग होते हैं जो आमतौर पर अधिकांश कुंडलियों में देखने को मिलते हैं लेकिन जातक को उनका फल नहीं मिलता। ये योग किसी न किसी तरह से अशुभ प्रभावों में आ जाते हैं। जैसे गजकेसरी योग अधिकांश कुंडलियों में मिलता है लेकिन उसका फल नहीं मिलता क्योंकि पहली बात यह कि योग बनने के सिद्धांत पूर्ण नहीं होते और यदि सिद्धांत से वह योग पूर्ण शुद्ध है तो किसी न किसी अशुभ ग्रह की दृष्टि से प्रभावित होकर फलहीन हो जाता है। शुभ योग के साथसाथ अशुभ योग शुभ योग के फल को ऋण कर लेते हैं। इससे भी योग का फल नहीं मिलता।

प्रश्न: योग फल करते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?

उत्तर: फल कथन करने वाले को योगों का अनुभव होना बहुत आवश्यक है। उसे योग कैसे बनते हैं, कब प्रभ¬ावी होते हैं, वर्तमान में कौन से योग अधिक प्रभावी हैं और कौन से योग तर्क संगत नहीं हैं इन सारी बातों का ज्ञान होना चाहिए। उसे यह भी जानना चाहिए कि जिस योग के फल की बात हो रही है, क्या वह योग वास्तव में बन रहा है? यदि बन रहा है तो कहीं वह अन्य किसी ग्रह के अशुभ प्रभाव में आकर अपना फल तो नहीं खो रहा? योग ग्रहों की दशा या अंतर्दशा कब आ रही है? गोचर में योग को कौन से ग्रह कब प्रभावित करेंगे? योग का फल किस आयु में प्राप्त होगा? आयु के अनुसार योग फल कथन करना चाहिए ?

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