वास्तु में ईशान दिशा की शुभता का वैज्ञानिक आधार रामावतार शर्मा ईशान कोण दिशा के स्वामी भगवान शंकर हैं। (शंकर इत्यमरः) इस दिशा के अधिष्ठाता देवगुरु बृहस्पति है। शिव और बृहस्पति दोनों ही पूज्य और कल्याणकारी हैं। इसलिए ईशान कोण को धार्मिक दृष्टि से पवित्र और शुभ माना गया है। धार्मिक पूजा-अनुष्ठान में कलश रखने/ स्थापन के लिये ईशान आरक्षित है। कुंआ, नलकूप, पानी टैंक एवं पूजा ग्रह के लिये भी ईशान प्रशस्त है। वास्तु शास्त्र के अनुसार प्रत्येक भवन/भूखंड में उलटे लेटे हुए कल्पित वास्तु-पुरूष का शिर ईशान कोण में रहता है, इस कारण भी ईशान दिशा शुभ है। वैज्ञानिक दृष्टि से इस दिशा की शुभता का कारण यह है कि ब्रह्मांड की उत्तर दिशा में चुंबकीय ऊर्जा का प्रवाह पृथ्वी की तरफ निरंतर होता रहता है क्योंकि पृथ्वी और मनुष्य दोनों में लौह तत्व विद्यमान है। ब्रह्मांड के उत्तरी क्षितिज का केंद्र बिंदु (कोस्मिक नार्थ सेंटर) पृथ्वी के उत्तरी ध्रुव के केंद्र बिंदु से भिन्न है। इसके दो कारण हैं। पहला कारण पृथ्वी की आकृति अंडाकार है जबकि अंतरिक्ष की आकृति गोलाकार है। दूसरा कारण पृथ्वी अपनी धुरी (दक्षिणी ध्रुव के शून्य अक्षांश एवं शून्य देशांतर जिसे 90 दक्षिणी अक्षांश एवं 90 पूर्वी-पश्चिमी देशांतर भी कह सकते हैं, क्योंकि 90 और शून्य अक्षांश-देशांतर एक ही बिंदु से शुरू होते हैं) पर 23) अंश पूर्व की ओर झुकी हुई है। इस कारण पृथ्वी का उत्तरी ध्रुव केंद्र बिंदु अंतरिक्ष के उत्तरी ध्रुव केंद्र बिंदु से 23.5 अंश पूर्व की तरफ हट कर 66.5 पूर्वी देशांतर से यह ऊर्जा पृथ्वी में प्रविष्ट होती है जो ईशान कोण क्षेत्र में पड़ता है। ईशान कोण क्षेत्र की सीमा मोटे अनुमान से 65 से 50 पूर्वी देशांतर एवं इतने ही उत्तरी अक्षांश मानी जा सकती है। इस ओर से आने वाली और प्राकृतिक चुंबकीय ऊर्जा हमेशा सकारात्मक प्रभाव रखती है। वास्तु शास्त्र में ईशान कोण नीची ओर खाली रखने के पीछे यही उद्ेश्य है कि अंतरिक्ष से प्राप्त दैवीय ऊर्जा निर्बाध गति से भवन में प्रविष्ट हो सके। यह ऊर्जा भवन में प्रविष्ट होने के बाद क्राॅस -वेंटिलेशन सिद्धांत से र्नैत्य दिशा से निकल न जावे, अतः इसे रोकने के लिये र्नैत्य कोण भारी और ऊंचा होना आवश्यक माना गया है। भवन में निवास करने वाले व्यक्ति प्राकृतिक ऊर्जा से वंचित रहेंगे तो कई प्रकार की शारीरिक-मानसिक व्याधियां उत्पन्न हो सकती हैं। इसी कारण भवन के ईशान और र्नैत्य में दोष होना अशुभता का परिचायक है। नैत्य दिशा ईशान के ठीक सामने 90 अंश की दूरी पर है।