कांवर के अनेकार्थ पं. ब्रजकिशोर शर्मा ब्रजवासी कांवर शिवोपासना का एक साधन तो है ही लेकिन यह प्रतीक है, शिवत्व संबंधी अनेक भावों और अर्थों का जिसे विद्वज्जन सहज में ही समझ सकते हैं। कांवर शब्द के ऐसे ही कुछ अर्थों की अनुभूति इस प्रकार है जिससे अनुप्राणित व्यक्ति सदा-सर्वदा शिव कृपा प्राप्त करता रहता है। क (ब्रह्म $जीव) $ अवर अर्थात ब्रह्म और जीव का मिलन यानी जीवत्व का त्याग करके ब्रह्मत्व की प्राप्ति। क अर्थात ब्रह्म यानि ब्रह्मा, विष्णु व महेश और जो उनमें रमन करे वह कांवड़िया जो नियमों के सम्यक पालन द्वारा अपने आप को इन देवों की शक्तियों से संपूरित कर दे। कस्य आवरः कावरः अर्थात परमात्मा का सर्वश्रेष्ठ वरदान, जिसे धारण करने से साधक का जीवन कृतार्थ हो जाता है। क का अर्थ जीव और अ का अर्थ विष्णु, वर अर्थात जीव और सगुण परमात्मा का उत्तम धाम। कम् का अर्थ है जल और आवर का अर्थ उसकी व्यवस्था। जलपूर्ण घटों को व्यवस्थित करके विश्वात्मा शिव को अर्पित करना जो वर्तमान में जल को समुचित व्यवस्था का स्मरण कराता है। क का अर्थ शीश जो सारे अंगों मंे प्रधान है वैसे ही शिव के लिए कांवर का महत्व है जिससे ज्ञान की श्रेष्ठता का प्रतिपादन होता है। क का अर्थ समीप और आवर का अर्थ है सम्यक रूप से धारण करना यानि जैसे वायु सबको सुख और आनंद देता हुआ परम पावन बना देता है वैसे ही साधक अपने वातावरण को पावन बनाएं। क का अर्थ अग्नि और आवर का अर्थ ठीक से वरण करना। इससे हमें संदेश मिलता है कि अग्नि अर्थात स्रष्टा, पालक एवं संहारकर्ता परमात्मा हमारा मार्गदर्शक बने और वही हमारे जीवन का लक्ष्य हो तथा हम अपने राष्ट्र और समाज को अपनी शक्ति से सक्षम बनाएं। क का अर्थ आनंद और आ का अर्थ है संपूर्ण और व का अर्थ है वरण करना। अर्थात हम इस बात को समझें कि हम स्वयं आनंदित, सुखी और निरोगी रहें तथा सबके कल्याण के भागी बनें। क का अर्थ है विष्णु और आवर का अर्थ है अपने जीवन में उतारना। अर्थात हम विष्णु तत्व यानि सारे लोकों के पालन-पोषण, समाज और संस्कृति के रक्षण का भाव रखकर उसके लिए कार्य करें। क का अर्थ है यम यानि मृत्यु-देवता और आ का अर्थ है पूरा और वर का अर्थ है पति। अर्थात कांवर साक्षात महाकाल शिव का रूप है जो हमें जन्म-मरण के चक्र से मुक्त करके अमृत पथ पर अग्रसर करता है। क का अर्थ है ‘शब्द’ और आवर का अर्थ अनुसंधान यानि हम नाद-ब्रह्म (श्रवण, मनन, निदिध्यासन) द्वारा ब्रह्म-तत्व का साक्षात्कार करें। क का अर्थ कामदेव और अ का अर्थ शिव और वरण का अर्थ निग्रहण अर्थात काम भाव का नियंत्रण करके उसे शिव भाव (समस्त जगत का कल्याण) में लीन करें। क अर्थ है प्रजापति और आवर का अर्थ है अपना मालिक स्वीकार करना अर्थात् अपनी कमियों को स्वीकार करके हम भगवान आशुतोष को पूर्ण रूप से अपना इष्ट मान लें। इस प्रकार कांवर क्षमा भाव का प्रतीक है। क का अर्थ सूर्य और वर का अर्थ वृत्ति अर्थात हम अपनी प्रवृत्ति को सूर्य के समान पक्षपात रहित बनाएं और सभी के लिए अपनी साधना की दिव्य शक्ति का संचार करें। क का अर्थ राजा और कांवर का अर्थ रक्षण-पोषण अर्थात साधक को अपनी दुष्ट प्रवृत्तियों पर पूर्ण नियंत्रण करके देवी वृत्तियों के लिए अनुकूल अवसर उपलब्ध कराना चाहिए। क का अर्थ शरीर और मन और आवर मतलब इनका सम्यक पति। यही कांवर है। अर्थात शरीर और मन का मालिक चैतन्य देव ही है जो इस देह रूपी शिवालय में विराजमान है। क का अर्थ धन और वर का अर्थ श्रेष्ठ। अर्थात धनों में संपूर्ण रूप से श्रेष्ठ। यह कांवर ही साधक के लिए सर्वोत्तम धन है। इसका भावार्थ है कि शिव धन ही शिव योगी को अपेक्षित है, न कि दुनिया की भौतिक संपदा।