सोने चांदी में तेजी-मंदी
सोने चांदी में तेजी-मंदी

सोने चांदी में तेजी-मंदी  

सुरेश सी. शर्मा
व्यूस : 10309 | जनवरी 2016

ग्रह गोचर सभी को प्रभावित करते हैं। सभी तरह की व्यापारिक वस्तुएँ भी ग्रह की प्रकृति के अनुसार प्रभावित होती हैं जिससे मार्केट में विषेष हलचल होती है तथा उतार-चढ़ाव बनते हंै जिसे हम आम भाषा में तेजी मंदी कहते हंै। तेजी मंदी व्यापारी को धनवान या दिवालिया तक बना सकती है। यह व्यापारी के जन्मांग कुंडली के योग, भाग्य और उसके शुभ-अषुभ, ग्रह -गोचर, दषा-महादषा पर निर्भर है। ज्योतिष का ज्ञान हमें भविष्य में होने वाले घटनाक्रम तेजी मंदी की राह दिखाता है। चंद्र, बुध, गुरु, षुक्र षुभ एवं सौम्य ग्रह कहलाते हैं जो मंदी कारक योग बनाते हैं। सूर्य, मंगल, षनि, राहु, केतु अषुभ ग्रह हैं जो तेजी का परिणाम देते हैं। गोचर में जब अषुभ ग्रहों के लम्बे समय तक अषुभ दृष्टि संबंध बनते हैं तो अधिक समय तक लंबी अवधि तक ये तेजी बनाये रखते हैं।

यदि शुभ ग्रहों के शुभ दृष्टि संबंध बनते हैं तो मार्केट में मंदी या भारी मंदी की चाल बनाते हैं। इस तरह शुभ व अषुभ दृष्टि संबंध एक साथ बने तो मार्केट में उतार-चढ़ाव चलता रहता है। मार्केट में सभी तरह के उतार-चढ़ाव, तेजी मंदी का प्रमुख ग्रह बुध है - जो व्यापार का अधिपति है। बुध का राषि नक्षत्र में गोचर उदय-अस्त, वक्री-मार्गी, उच्च-नीच राषि नवांष युति एवं दृष्टि संबंध से सटीक तेजी मंदी निकाली जा सकती है। स्थूल मान से 9-11-15-18 एवं 22 दिन तक बुधास्त तेजी कारक रहता है। इससे अधिक 30 या 40 दिन तक बुधास्त मंदीकारक रहता है। अस्त या वक्री बुध का फल राषि नवांष के अनुसार विपरीत परिणाम भी देता है जो मार्केट के रूख पर निर्भर है।

समस्त धरातल पर दैनिक जीवन में उपयोग एवं उपभोग में आने वाली सभी तरह की वस्तुओं पर अलग-अलग राषि एवं ग्रहों का प्रभाव है जिसमें सोना एवं चांदी, कीमती धातुओं के अंतर्गत उच्च श्रेणी में आती है जो मेष, कर्क, सिंह, तुला राषि एवं धातु के कारक मंगल, सूर्य, चंद्र, शुक्र एवं गुरु द्वारा प्रभावित होती है। तिथि, वार, नक्षत्र, योग, पक्ष, मास, संक्रान्ति, पंचक, चंद्र दर्षन, चंद्र ग्रहण, सूर्य ग्रहण तथा अन्य कई सूक्ष्म गणनाएँ योगायोग स्थिति संबंधों द्वारा सटीक तेजी मंदी की भविष्यवाणी की जा सकती है। सोने चांदी में युति राषि नवांष (40 अंष) पंचमांष (72 अंष) षष्ठांष (60 अंष) दषांष (35 अंष) द्वादषांष (30 अंष) आदि के दृष्टि संबंध यदि अषुभ ग्रहों के साथ बनते हैं तो विषेष तेजी का योग बनाते हंै।

इसके अतिरिक्त प्रतियुति (180 अंष), त्रिकोण- नव-पंचक (120 अंष), चतुर्थांष (90 अंष-केन्द्र), अष्टमांष (अर्द्धकेन्द्र 45 अंष) इत्यादि दृष्टि संबंध सौम्य ग्रह बुध, गुरु, चंद्र, शुक्र के साथ हो तो ये योग मंदी करवाते हैं। अंषात्मक दृष्टियों में पंचदषांष (24 अंष), अष्टदषांष (20 अंष), विषांष (18 अंष), चतुर्विषांष (15 अंष), शोडशांष (22.30 अंष), त्रिषांष (12 अंष) आदि दृष्टि योग सूक्ष्म तेजी मंदी का परिणाम देने में भी सहायक है। सर्वतोभद्रचक्र भी अपने आप में एक अद्वितीय चक्र्र है। इसके माध्यम से गोचर ग्रहों का राषि नक्षत्र चरण तिथि वेध द्वारा भी परिणाम सामने आता है। तिथी क्षय, तिथी वृद्धि, भद्रा आदि अच्छे परिणाम देती है। सूर्य-मंगल, शुक्र-मंगल, सूर्य-बुध आदि ग्रह तेजी कारक राषि नक्षत्र नवांष युति या केन्द्र योग तेजी को प्रभावित करते हंै।



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