मालिश शरीर को स्वस्थ, सुंदर, यौवनपूर्ण बनाने का एक सरल एवं उत्तम उपाय है। इससे अनेक प्रकार के रोगों के उपचार में सफलता प्राप्त होती है। स्वास्थ्य एवं चिकित्सा की दृष्टि से यह एक कला भी है और प्राकृतिक उपाय भी। तेल मालिश से शरीर हल्का-फुल्का, फुर्तीला और सुंदर बनता है। ‘चरक संहिता’ में लिखा है कि जैसे चिकनाई के संयोग से मिट्टी का घड़ा शक्तिशाली हो जाता है या सूखा चमड़ा नर्म हो जाता है उसी प्रकार तेल मालिश करने से मनुष्य का शरीर भी शक्तिशाली, सुंदर और आभापूर्ण हो जाता है।
अत्यधिक मानसिक परिश्रम, अत्यधिक शोक आदि के कारण जब बालों में सफेदी आ जाती है तो सिर में तेल लगाने मात्र से बाल जल्दी सफेद नहीं पड़ते और मुलायम बने रहते हैं। इससे दिमाग की थकावट दूर होती है तथा बुद्धि की असाधारण वृद्धि होती है, नेत्र-ज्योति बढ़ती है, आचार्य अविनाश सिंह मस्तिष्क संबंधी रोग भी नहीं पनपते। ‘सुश्रुत’ के अनुसार सिर में तेल मालिश से सिर की तृप्ति होती है, सिर की त्वचा सुंदर बनती है, वहां रक्तादि का संचालन सुचारू रूप से होने लगता है। सिर दर्द नहीं होता, न बाल गिरते हैं न समय से पहले सफेद होते हैं
न झड़ते हैं। मस्तक चिकना रहता है और कपाल का बल बढ़ता है, बाल लंबे और घने होते हैं। जो लोग तेल लगाने से हिचकिचाते हैं वे स्नान से पहले सिर में तेल लगा, बाद में बालों को धो सकते हैं। सिर में लगाने वाले तेलों में सरसों, नारियल के तेल के अतिरिक्त चमेली तेल मालिश: एक प्राकृतिक उपाय और बेल का तेल प्रमुख है। आंवला तेल, तिल तेल भी प्रयोग में लाया जाता है। तेल मालिश करने की विधि तेल मालिश अगर विधिवत की जाए तो व्यक्ति भरपूर लाभ उठा सकता है।
मालिश स्वयं करें या किसी से करवाएं बात एक ही है कि शरीर की मालिश हुई। हां हो सकता है कभी किसी का हाथ शरीर के कुछ भागों तक न पहुंच पाए उस समय यह आवश्यक हो जाता है कि हम किसी दूसरे की सहायता लें। आजकल कई अच्छा ‘‘मसाज सैलून’’ उपलब्ध है वहां जा कर भी मालिश करवा के मालिश का आनंद उठाया जा सकता है। लेकिन यदि स्वयं से ही मालिश करनी है तो इस प्रकार करें। सबसे पहले मालिश करने के लिए तेल का चयन करें। आमतौर से शरीर के सभी भागों में एक ही तेल का प्रयोग किया जा सकता है
लेकिन यदि मालिश का मूल कारण मालूम हो तो उसी के अनुसार तेल का चयन किया जाता है। जैसे कहीं चोट लगी है या सिर का दर्द है तो इन कारणों को दृष्टिगत रखते हुए तेल का चयन करें। मालिश के लिए आमातौर से सरसों का तेल, तिल का तेल, नारियल का तेल, जैतून का तेल प्रयोग में लाया जाता है। इसके अतिरिक्त विशेष कारणों से बादाम का तेल, चमेली का तेल, कारबोलिक तेल, एरंड का तेल, अलसी का तेल, बिनौले का तेल, ब्राह्मी तेल, आंवला तेल, चंदन, दालचीनी, मूंगफली, अखरोट, बाकुची आदि का तेल प्रयोग में लाया जाता है। सिर की मालिश सिर की मालिश के लिए आमतौर से सरसों या नारियल के तेल का प्रयोग होता है।
मालिश के लिए सिर में बालों की जड़ों में अपने हाथ की अंगुलियों से तेल लगायें और अंगुलियों से ही धीरे-धीरे मालिश करें। इससे दिमाग की थकावट दूर होती है तथा बुद्धि तीव्र होती है। नेत्र ज्योति भी बढ़ती है। यदि ऐसा रोज किया जाए तो आयु से पहले बालों में सफेदी नहीं आती और मस्तिष्क संबंधी रोगों में लाभ होता है। पीठ का मालिश तेल का चयन करने के उपरांत पीठ की मालिश के लिए यदि दूसरे व्यक्ति की सहायता ली जाए तो मालिश का सही लाभ उठाया जा सकता है। पीठ की मालिश ऊपर अर्थात् कंधों से कमर तक के हिस्सों में की जाती है।
मालिश करते समय हाथों को ऊपर से नीचे, नीचे से ऊपर हल्के दबाव से चलाएं। गर्दन के नीचे रीढ़ की हड्डी जहां से शुरू होती है वहां से लेकर कमर के नीचे कुल्हों तक ऊपर से नीचे से ऊपर हाथ चला कर मालिश करें इससे रीढ़ की हड्डी की लचक बराबर बनी रहती है, मेरूदंड मजबूत होता है। कंधों के नीचे के भाग पर भी ऊपर से नीचे तथा नीचे से ऊपर और दायें से बाएं और बाएं से दायें हाथ चलाकर मालिश करें इससे कंधे मजबूत होते हैं। कमर के भाग पर भी अंदर से बाहर और बाहर से अंदर की तरफ हाथ चला हल्के दबाव से मालिश करें इससे कमर संबंधी सभी रोगों में लाभ होता है। पेट की मालिश रोग के अनुसार तेल का चयन करके नाभि के इर्द-गिर्द तेल मालिश दोनों हाथों की सहायता से नाभि के चारांे तरफ गोलाकार हाथ चलाकर करनी चाहिए। कभी हाथ दायें से बायें और कभी बायें से दायें चलाना चाहिए। इससे पेट की आंतें नर्म होंगी और पेट से संबंधित रोग जैसे पेट दर्द, नाभि का गिरना, कब्ज, आंतों की खुश्की इत्यादि में लाभ होता है। पाचन क्रिया में भी लाभ होता है।
जांघों और टांगों की मालिश जांघों की मालिश में हाथों का चलन हल्के दबाव से ऊपर से नीचे और कभी नीचे से ऊपर करना होता है। कभी दोनों हाथों को जांघ के इर्द-गिर्द गोलाकार घुमाकर करने से जांघों के मसल और नसों में मजबूती आती है, जांघों की ताकत बढ़ती है रक्त संचार में भी लाभ होता है। जांघों के पिछले भाग को कुल्हों से लेकर घुटने तक ऊपर से नीचे की तरफ मालिश करने से भी कुल्हों और जांघों के पट्ठे मजबूत होते हैं और आकार में भी सुंदरता बढ़ती है। इसी तरह टांगें अर्थात घुटनों से नीचे के भाग पर भी घुटने से पैर की तरफ तेल लगा कर मालिश करनी चाहिए। पिंडलियों के ऊपर से नीचे, नीचे से ऊपर और गोलाकार हाथों को हल्के दबाव से घुमाने से टांगों की थकावट दूर होती है, टांगों के पट्ठे भी मजबूत होते हैं और अन्य टांगों संबंधी बीमारियों में लाभ होता है। बुढ़ापे में भी व्यक्ति जवानों की तरह दौड़ सकता है। गठिया जैसे रोगों के होने की संभावना कम हो जाती है।
पैरों की मालिश पैरों को अच्छी तरह धोकर तेल लगाकर मालिश करनी चाहिए। पांवों के तलवों में रोज तेल लगाकर हल्के दबाव से दोनों हाथों से मालिश करने से पैरों की थकावट दूर होती है। पैरों के दर्द में भी आराम होता है। पैरों की अंगुलियों के बीच में भी तेल आदि लगाना चाहिए और अंगुलियों की भी मालिश करनी चाहिए इससे पैरों की नसों में रक्त संचार सुचारू रूप से होने लगता है। पैरों की बिवाइयों में भी लाभ होता है। यदि प्रतिदिन रात को सोने से पहले पांवों को धोकर मालिश कर सोया जाए तो पांवों से संबंधित रोग नहीं पनपते। जो लोग नियमित तौर से तेल मालिश करते हैं
उन्हें त्वचा संबंधित रोग, दाद-खाज, खुजली, फोड़े-फुंसी आदि रोग नहीं होते। तेल मालिश से धातु पुष्ट होती है एवं बुद्धि की वृद्धि होती है। ‘सुश्रुत’ में स्पष्ट किया गया है कि जैसे वृक्ष की जड़ में पानी डालने से उसके डाली, पत्तों के अंकुर बढ़ते हैं उसी प्रकार तेल मालिश से धातु बढ़ती है।