योग हमारी मानसिक व शारीरिक शक्तियों को बढ़ाने के साथ-साथ हमारे अंदर निहित शक्तियों को भी विकसित करता है। शरीर विभिन्न तंत्रों का समूह है, प्रत्येक तंत्र विकसित करने के लिए हमारे ऋषि-मुनियों ने अनेक तरह के योग सुझाए हैं। विकसित स्नायु तंत्र भी हमारे स्वस्थ शरीर की जरूरत है। इसे मजबूत करने में हस्तपादांगुष्ठासन विशेष कारगर है।
प्रथम विधि: छाती आगे फैलाकर सम रेखा में खड़े रहिए। सिर, गला, पीठ और पांव सीधे सम सूत्र में हों। घुटने सीधे रखिए दोनों पांव एक-दूसरे के पास हों, अब एक पांव घुटना सीधा रखकर शनैः शनैः ऊपर कीजिए, जब यह पांव दूसरे पांव के साथ समकोण में आ जाए, तब भूमि के साथ समानांतर होगा। इस समय एक हाथ से एक पांव का अंगूठा पकड़ लीजिए और दूसरा हाथ कमर पर रखिए। इस आसन में दोनों हाथों का भी प्रयोग किया जाता है। चित्र 1 के अनुसार दोनों हाथों की उंगलियों को एक दूसरे में फंसाकर पैर के तलुए को पकड़ें।
उपरोक्त दोनों मुद्राओं में कम से कम 30 सेकंड तक रहने के पश्चात ऊपर किये हुए पांव के घुटने पर अपना सिर अथवा नाक लगाने का प्रयत्न करें। सिर को घुटने पर लगाते समय अपने पेट को अंदर खींचकर रखें। श्वास सामान्य रहे। जो पहले दिन इस प्रकार खड़े होकर नहीं कर सकते, वे दीवार, मेज, कुर्सी या और कुछ रख लें, तथा उसका सहारा लेकर यह आसन करें। सहारा लेकर करने से आसन का परिणाम यद्यपि न्यून हो जाता है। पहले दिन घुटने को सिर लगाना भी अनेक लोगों के लिए असहज होता है, परंतु अभ्यास से सहज हो जाएगा।
जैसे-जैसे अभ्यास बढ़ता जाए, वैसे-वैसे किसी सहारे के बिना आसन करने का यत्न करना चाहिए। कमरे के बीच में खड़ा होकर उक्त सभी आसन करने चाहिए और कम से कम एक-दो मिनट स्थिर होना चाहिए। वृद्ध तथा कमजोर व्यक्ति जो आसन को लेटकर या खड़े होकर नहीं कर सकते, वे इसे कुर्सी पर बैठकर भी कर सकते हैं। कुर्सी पर बैठने के कारण एक पांव का घुटना सीधा नहीं होगा, जिससे ज्यादा कठिनाई नहीं होगी। परंतु ऊपर का आध् ाा भाग पूर्ववत बताई गई विधि के अनुसार किया जा सकता है। खड़े होकर करने की अपेक्षा यह सरल तो है, पर इससे लाभ लगभग वही प्राप्त होते हैं।
जमीन पर एक पांव से चैकी लगाकर तथा दूसरे पांव को सीधा आगे फैलाकर इस आसन का आधा भाग किया जा सकता है। यही भाग इस आसन में मुख्य है तथा खड़ा होकर करना जरूरी है। शुरु में कठिन लगने वाला यह आसन, माह दो माह के अभ्यास से सुगमता से हो जाता है। इस आसन से पांव, जंघा, कमर, पीठ, गला आदि स्थान के स्नायु निर्दोष हो जाते हैं।
इस आसन के परिणाम पहले ही दिन से आने शुरु हो जाते हैं। जो लोग खड़े होकर यह आसन नहीं कर सकते, वे जमीन पर ले. टकर भी कर सकते हैं। छत की ओर छाती और पीठ भूमि की ओर लगाकर लेट जाइए। धीरे-धीरे पांव को ऊपर कीजिए। दोनों घुटने सीधे रखिए, इसके बाद हाथ से पांव का अंगूठा पकड़कर सिर उठाकर घुटने से लगाइए। इस प्रकार बिस्तर पर लेटकर भी यह आसन किया जा सकता है।
दूसरी विधि: हस्तपादांगुष्ठासन की दूसरी मुद्रा करते समय गर्दन सीध् ाी रखें तथा उपरोक्त की भंाति सीध् ो खड़े होकर, बायां हाथ कमर पर रखें। दायें हाथ से दायें पैर को ऊपर उठाते हुए जंघा तक ले आएं। यह आसन कम से कम 30 सेकंड में पूरा करें। शुरु में कोई सहारा लिया जा सकता है। अभ्यास से कुछ ही दिनों में आसानी से किया जा सकता है। तीसरी विधि: दूसरी विधि की भांति ही सीधे खड़े होकर, छाती आगे की ओर फैलाकर, गर्दन सीधी रखें। अब दायें पैर के अंगूठे को अपने दायें हाथ की दो उंगलियों से पकड़ें तथा अंगूठा बाहर की ओर रखें। जैसा कि चित्र 3 में दर्शाया गया है, अपने दायीं ओर यथासंभव झुकने का प्रयास करें।
लाभ: हस्तपादांगुष्ठासन की ये सभी मुद्राएं नियमपूर्वक करने से गर्दन, जंघा, छाती आदि संपूर्ण शरीर के स्नायु मजबूत होते हैं। कंपावात से पीड़ित रोगियों के लिए उत्तम आसन हैं। हाथ पैरों की बीमारियां दूर होती चित्र-4 हैं। व्यक्तित्व में निखार आता है।
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