विवाह संस्कार के समय ही वर वधू की मांग में सिंदूर लगाता है। मस्तक पर जिस स्थान पर सिंदूर लगाया जाता है, वह स्थान ब्रह्मरंध्र और अधिप नामक मर्म के ठीक ऊपर का भाग है। स्त्री जातक के शरीर में यह भाग, पुरुष की अपेक्षा, अधिक कोमल होता है। अतः उसकी रक्षा के लिए शास्त्रकारों ने सिंदूर का विधान प्रचलित किया। सिंदूर में पारा जैसी अलभ्य धातु अधिक मात्रा में होती है। वह स्त्री शरीरस्थ वैद्युतिक उत्तेजना को ही नियंत्रण में नहीं रखता, अपितु मर्म स्थान को बाहरी दुष्प्रभावों से भी बचाता है।
अद्भुद रामायण में एक कथा प्रसिद्ध है कि श्री हनुमान जी ने जगद्जननी जानकी के सीमंत मस्तक में सिंदूर लगा देख कर आश्चर्यपूर्वक पूछा:”माता! आपने लाल द्रव्य मस्तक में क्यों लगाया है ? श्री जानकी जी ने ब्रह्मचारी हनुमान की इस सीधी-सादी बात पर प्रसन्न हो कर कहा: ”पुत्र! इसके लगाने से मेरे पति की दीर्घायु होती है।“ श्री हनुमान जी ने यह सुना, तो बहुत प्रसन्न हुए और विचारा कि जब अंगुली भर सिंदूर लगाने से स्वामी की आयुष्य वृद्धि होती है, तो फिर क्यों न सारे शरीर पर इसे पोत कर अपने स्वामी को अजर-अमर बना दूं? वैसा ही किया हनुमान ने। संपूर्ण शरीर पर सिंदूर पोत कर सभा में पहुंचे, तो भगवान उन्हें देख इतना हंसे, जितना कि शायद कभी न हंसे होंगे।
हनुमान जी की माता जानकी के वचनों से इसमंे और भी अधिक विश्वास हुआ। कहा जाता है कि उस दिन से हनुमान जी की इस उदात्त भक्ति के स्मरण में उनके शरीर पर सिंदूर का चोला चढ़ाया जाने लगा। इस कथानक से यह सहज में ही स्पष्ट हो जाता है कि त्रेता युग में भी स्त्रियों के मांग (सीमंत) में सिंदूर लगाने का विधान प्रचलित था। स्त्रियों के भाल प्रदेश में सिंदूर की बिंदी जहां सौभाग्य का प्रधान लक्षण समझा जाता है, वहां इससे सौंदर्य भी बढ़ जाता है। पिछले कुछ दिनों से गुजरात, महाराष्ट्र, मद्रास और बंगाल आदि देशों की स्त्रियों के मस्तक में निरंतर भाल बिंदु सजा देख कर पंजाब, पश्चिमी युक्त प्रांत और देहली तथा मारवाड़ प्रांत की स्त्रियों ने भी मस्तक में नित्य बिंदी लगाना अनिवार्य बना लिया है।