रोगों के देसी उपचार
रोगों के देसी उपचार

रोगों के देसी उपचार  

जयंत पांडेय
व्यूस : 5960 | अप्रैल 2004

जरा सोच कर देखिए, आप सुबह 7-8 बजे बड़ी हड़बड़ाहट में अपने कार्यालय के लिए घर से निकलते हैं, रास्तों में गाड़ियों की लगातार आवाजाही, रास्ता पाने के लिए रुकी हुई गाड़ियों के हार्न का शोर और इनके चलती मशीनों से लगातार निकलता धुंआ, जो दिन-ब-दिन बढ़ती जनसंख्या तथा सिकुड़ते वन के कारण बढ़ता ही जा रहा है।

यही नहीं, इसके साथ ही लगातार वातावरण का तापमान भी बढ़ता जा रहा है। इस परिस्थिति से दो-चार हो कर इनसान अपने कार्यालय पहुंचते हैं। कार्यालय में निर्धारित कार्य समय के पूरा होते शारीरिक और मानसिक थकान से वह निढाल हो चुका है। सिर में दर्द, या भारीपन महसूस करने लगा है। अब सुबह की इन बेचैन कर देने वाली परिस्थितियों से हो कर रात 8 बजे घर पहुंच रहे हैं। यह रोज का काम है, दिनचर्या है। कैसा महसूस कर रहे हैं ? अब फिर विचारिए। यदि कोई सिर की मालिश कर दे, पांवों को हल्के हाथों दबा दें, तो वाह! कुछ ही पल में सारा दर्द गायब। थकान थी भी, या नहीं? पर हर रोज यह संभव नहीं कि घर लौटने पर कोई सेवा में जुट जाए। तो क्यों न कोई ऐसा रास्ता निकाला जाए कि ऐसी तकलीफ से दो-चार ही न होना पड़े और यदि ऐसा हो, तो इस तरह के इलाज के लिए किसी से मिन्नतें न करनी पड़े।


Get Detailed Kundli Predictions with Brihat Kundli Phal


क्या ऐसा हो सकता है?

हां, आज विज्ञान के बड़े-बड़े यंत्रों और बड़े-बड़े नामों के पश्चिमी इलाजों एवं दवाइयों के चक्रव्यूह में फंस कर विरासत जो पूर्वजों के वर्षों के प्रयोगों के बाद मिली है, उसे भूल गये हैं। ऐसा घरेलू उपयोग में आने वाले पदार्थों एवं जीवनचर्या के नियमों के साथ भी हुआ है। कोई यह नहीं कहता कि किसी के बताये गये रास्तों पर आंख बंद कर चल पड़िए। आज वैज्ञानिक जिन की खोज कर रहे हैं, उन्हें पूर्वजों ने वर्षों पहले सिद्ध कर दिखाया है।

उनपर स्वयं प्रयोग कीजिए और फिर अपनाइए। इलाज हेतु भटकने से अपनी दिनचर्या में सावधानी बेहतर है। जरा सी नीचे बताये गये नियमों के अनुसार परिवर्तन कर देखिए। यह ज्ञात है कि शरीर को कई भागों में बांटा गया है। इसी क्रम में देह सुरक्षा का कार्य करती है ‘त्वचा’। इस त्वचा में अनगिनत छोटे-छोटे रोम छिद्र होते हैं, जो शरीर के तापमान को सामान्य बनाए रखने का कार्य करते हैं; साथ ही पसीने के रूप में शरीर के अतिरिक्त जल को बाहर निकालते हैं और शुद्ध वायु को अवशोषित करते हैं।

आज के प्रदूषित वायु में, जिसका जिक्र पहले किया जा चुका है, शरीर की इस प्रक्रिया का सुचारु रूप से चलना संभव नहीं। ऐसे में तेल मालिश के द्वारा इन कठिनाइयों पर काफी हद तक काबू पा सकते हैं। तेल मालिश के लिए शुद्ध सरसों एवं तिल के तेल लाभप्रद हैं। प्रत्येक अंग पर तेल मालिश की जानी चाहिए। लगातार उपयोग से सिर दर्द, बालों का गिरना, खुजली, दाद, वात रोग आदि से बचा जा सकता है। तेल की मालिश त्वचा को कोमल बनाती है, नसों को स्फूर्ति देती है और रक्त को गतिशील बनाती है। तेल मालिश के लाभ से तो परिचित हो गये हैं।

यह भी जान चुके हैं कि विज्ञान ने स्वीकार किया है कि प्राचीन ऋषियों की खोज ढकोसला नहीं है। परंतु उन्होंने तेल मालिश के कुछ नियम भी निर्धारित किये हैं, जिन्हें अब भी स्वीकार नहीं किये गये हैं और उनको ले कर प्रयोग किये जा रहे हैं। ऋषियों के तय किये गये मापदंड का वैज्ञानिक पहलू है। उन्हें जानिए। फिर कहिएगा कि वह सार्थक है, या निरर्थक। अंधाधुंध सिर से पांव तक तेल डाल कर तेल मालिश का लाभ नहीं मिलता। शास्त्रानुसार रविवार, मंगलवार, गुरुवार, शुक्रवार को तेल मालिश नहीं करनी चाहिए। प्रश्न उठता है क्यों? रविवार के दिन को पूरा विश्व सूर्य का दिन मानता है तथा सूर्य ऐसा ग्रह है, जो विश्व के लिए तेज प्राप्ति का एक ही साधन है, जिसकी गर्मी करोड़ों वर्ग मील से मिलने पर असहनीय होती है। यह सूर्य से मिलने वाली गर्मी ही पृथ्वी पर जीवन का आधार है।

शरीर में पित्त (गर्मी) निश्चित मात्रा में होती है, तो लोग स्वस्थ रहते हैं। जब देह में जरा भी ‘पित्त’ का संतुलन बिगड़ता है, तो शरीर विभिन्न रोगों की चपेट में आ जाता है। रविवार अन्य दिनों से अधिक गर्म होता है, जिसके कारण शरीर में पित्त भी बढ़ा होता और ऐसे में तेल, मालिश के द्वारा, शरीर की गर्मी को और बढ़ा दें, तो क्या होगा? इसका अनुमान लगाइए। इसी प्रकार मंगल ग्रह पृथ्वी की ही तरह की प्रकृति वाला है, जबकि धर्मानुसार पृथ्वी का पुत्र है। मंगल ग्रह को तेज लाल रंग का माना गया है। अतः यह उत्तेजनाकारी है और शरीर में इसके प्रभाव से रक्त दबाव बढ़ जाता है, जो विभिन्न रोगों को जन्म देता है।


Consult our expert astrologers to learn more about Navratri Poojas and ceremonies


ऐसे ही गुरु और शुक्रवार के लिए भी माना जाता है। गुरुवार बौद्धिक कार्य के लिए निश्चित है और शुक्रवार को, शुक्र (वीर्य) में ताप वृद्धि के कारण शरीर रोगग्रस्त होने लगता है। आज चिकित्सक इसे, पुराना रिवाज मान कर, नकारते हैं। परंतु वैज्ञानिक दृष्टिकोण से प्रयोग कर इनके गुणों का लाभ लिया जा सकता है। यहां यह बताना जरूरी है कि आज सरसों, गिरी, मूंगफली सभी की चिकनाई को तेल कहते हैं, जबकि तेल का अर्थ ‘तिल का तेल’ होता है। दिये गये उपर्युक्त विवेचन ‘तिल के तेल’ पर ही लागू होता है। त



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.