बालारिष्ट, यानी अवकाश में घूम रहे ग्रहों के जिस योग से बालक को अरिष्ट होता है, यानी जब किसी जातक का जन्म होता है, तब अवकाश में घूम रहे ग्रहों का कोई ऐसा योग बन जाये कि नवजात शुशु के आयुष्य, स्वास्थ्य पर उसका बुरा प्रभाव पड़े और बालक बारह साल की उम्र तक कष्टमय जीवन बिताये, या उसका जीवन बारह साल की आयु तक सीमीत रह जाए, तो इस योग को बालारिष्ट योग कहते हैं। ऋषि-मुनियों ने इस योग के बारे में उनके द्वारा लिखे गये ग्रंथों में जोर-शोर से चर्चा की है। बालारिष्ट में केवल बालक को ही अरिष्ट नहीं होता, अपितु उसके जन्म लेते ही उसके साथ जुड़े हुए लोगों को भी अरिष्ट होता है, जैसे बालक के जन्म लेते ही माता की मृत्यु हो जाना, पिता की मृत्यु हो जाना, माता एवं पिता पर कोई बड़ा संकट आ जाए, जो मातृ कष्ट बालारिष्ट एवं पितृ कष्ट बालारिष्ट के नाम से जाने जाते हैं।
यहां एक ऐसी कुंडली की चर्चा करते हैं, जिसमें बालक के जन्म के 6 महीने में माता की मृत्यु हो जाती है। यह सिंह लग्न की कुंडली है। लग्न में बुध, चतुर्थ स्थान में केतु, सप्तम स्थान में मंगल, दशम स्थान में राहु, शनि ग्यारहवें भाव में और सूर्य, चंद्र, शुक्र एवं बृहस्पति बारहवें स्थान में हंै। नवांश तुला लग्न का है। तुला नवांश में सूर्य, चंद्र, शनि, राहु, मकर नवांश में स्थित है। मंगल कुंभ नवांश में, बृहस्पति मीन नवांश में है, बुध, केतु और शुक्र, अनुक्रम से वृषभ, कर्क एवं सिंह नवांश में हैं। पराशर होरा शास्त्र के अरिष्टाध्याय में श्लोक नंबर 24 में कहा गया है कि चंद्रमा, पाप ग्रहों से युक्त हो कर, बलवान पाप ग्रहों से देखा जाए तो यह योग बनता है। चंद्रमा पापयुक्त हो तथा चंद्र से छः-सात भावों में एक साथ पाप ग्रह हो, यह दूसरा योग है
इसमें बालक की माता की मृत्यु होती है। इस कुंडली में, जातक तत्वम, जो पंडित महादेव पाठक की रचना है के अनुसार शुक्र, या चंद्रमा पाप कर्तरी में हो तथा वे पाप ग्रहों से दृष्टित या पापयुक्त हो, तो माता की मृत्यु हो जाती है। इस कुंडली में चंद्रमा, पाप ग्रहों से युक्त हो कर बारहवें भाव में बैठा है, लेकिन किसी बलवान पाप ग्रहों से देखा नहीं जाता। दूसरे योग के अनुसार चंद्रमा पापयुक्त है तथा चंद्रमा से छठे एवं सातवें भाव में पाप ग्रह नहीं है। यहां दोनों ही योग अधूरे और होते हुए भी, बालक की माता की मृत्यु हुई। तीसरे योग में लिखा है कि शुक्र, या चंद्रमा पाप ग्रहों के अंतराल में हो तथा वह पाप ग्रहों से युत, या दृष्ट हो यहां शुक्र और चंद्रमा दोनों ही पाप ग्रह से युक्त हंै तथा पाप ग्रहों के अंतराल में भी है, पूर्ण रूप से लागू होता है।
इस कुंडली में न केवल मातृ कष्ट बालारिष्ट योग है, अपितु बालक पर स्वयं बालारिष्ट लागू होता है। होरा शास्त्र के अनुसार चंद्रमा दो पाप ग्रहों के बीच में हो तथा 1, 8, 7 और 12वें भाव में से कहीं भी स्थित हो, तो बालक की मृत्यु हो जाती है। यहां चंद्रमा 12वें भाव में सूर्य और शनि के बीच रहता है। 12वें भाव में सूर्य 11 अंश का, चंद्रमा 10 अंश का है एवं शनि के 11वें भाव में रहने से चंद्रमा सूर्य और शनि के बीच आ जाता है। चंद्रमा की क्षीणता, 1, 8, 12 वें भाव में पाप ग्रह का रहना, केंद्र में पाप योग एवं शुभ ग्रह का अभाव, ये अरिष्ट के मौलिक कारण हैं।
इस योग में शुभ ग्रह योग न रहने पर ही सत्याचार्य ने इससे मृत्यु होना बताया है। इस कुंडली में चंद्रमा द्वादश भाव में क्षीणता प्राप्त करता है। द्वादश भाव में सूर्य पाप ग्रह है। तीनों केंद्रों में केतु, मंगल, राहु बैठे हैं। चारो केंद्र में शुभ ग्रह के न रहने से बालक की मृत्यु निश्चित है।