रत्नों का महत्व
रत्नों का महत्व

रत्नों का महत्व  

जयंत पांडेय
व्यूस : 6784 | जनवरी 2004

ज्योतिष शास्त्र में, ग्रह शांति हेतु एवं ग्रहों के प्रभाव को बढ़ाने में रत्न का बहुत महत्व है। सभी यह जानते हैं कि रत्न धारण करना चाहिए। रत्न धारण करने से लाभ अवश्य होता है, परंतु यह पता नहीं होता कि किसे कौन सा रत्न धारण करना चाहिए। अब जानिए कि रत्न कैसी अवस्था में पाये जाते है। कौन से रत्न में किस रसायण का प्रभाव पाया जाता है? रत्नों को किन-किन तरीकों से तराशा जाता है। रत्न कीमती क्यों होते हैं और रत्नों से लाभ किस तरह के होते हैं। रत्न शास्त्र में 84 रत्नों के बारे में अध्ययन करते हैं, पर मुख्यतः रत्न 9 प्रकार के होते हैं। बाकी रत्न उपरत्न की श्रेणी में आते हैं। रत्नों में 3 गुणों का होना आवश्यक है:

- सुंदरता

- टिकाऊपन

- अनुपलब्धता सुंदरता:

- रंग,

- पारदर्शिता,

- कटिंग,

- वजन।

रत्नों में रंग का बहुत महत्व है। रंग के आधार पर ही रत्न की सुंदरता बढ़ती है। रत्न जितना पारदर्शी होगा, उतनी जल्दी ही उसका प्रभाव दिखाई देगा और जितना अधिक पारदर्शी होगा उतना ही वह मूल्यवान होगा, क्योंकि ज्यादातर रत्नों में पारदर्शिता की कमी होती है। कटिंग, यानी तराशा जाना रत्न का बहुत ही महत्वपूर्ण गुण है। कटिंग पर ही रत्न की सुंदरता निर्भर करती है। रत्न जितने ही अच्छे तरीके से कटा होता है, दिखने में वह उतना ही सुंदर होता है।

रत्न शास्त्र में देखने में आता है कि कुछ कट विशेष कर के देखने में आते हैं, जैसे: इस तरह से रत्नों की कटिंग देखी जाती है और सुंदरता के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। रत्न का वजन: रत्न का जितना वजन होगा, वह जितना बड़ा होगा, उतना ही सुंदर दिखता है; जिससे उसकी कीमत बढ़ जाती है। रत्न शास्त्रीयों ने रत्न प्राप्त की 6 पद्धतियां बतायी हैं:


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- धन पद्धति: इससे जो रत्न मिलते हैं, वे सभी अक्ष बराबर होते हैं और एक दूसरे से 900 पर होते हैं।

उदाहरण:

- हीरा,

- गार्मंेट

- गलेना इत्यादि।

- चतुष्फलक: इनमें 2 अक्ष आपस में बराबर होते हैं। पर तीसरा इनके बराबर नहीं होता। जैसे: ये भी 900 के कोण मेंे होते हैं। पर दोनों आपस में एक जैसे होते हैं। तीसरा उनके जैसे नहीं होता।

उदाहरण: जरकन। 

- समचतुर्भुज: इनमें 3 अक्ष होते हैं। ये भी 900 में होते हैं। परंतु इनके तीनों अक्ष आपस में बराबर नहीं होते। एकपदी पद्धति: इनके अक्ष आपस में बराबर नहीं होते हैं और इनका एक अक्ष झुका हुआ होता है।

उदाहरण: मून स्टोन त्रिपदी पद्धति: इनमें 3 अक्ष होते हैं, जो आपस में बराबर नहीं होते। यह परतदार होते हैं। उदाहरण: केनाइट ग्रुप रत्नों का परीक्षण करने पर पाते हैं कि विभिन्न प्रकार के रसायनों से मिल कर ये बने होते हंै।

जैसे: सिलीकन, अल्यूमिनियम, लोहा, कार्बन, आॅक्सीजन, हाइड्रोजन, तांबा, केल्शीयम, सोडियम, मैग्नेशीयम, फाॅस्फोरस इत्यादि। परंतु हीरा शुद्ध रूप से कार्बन होता है। इन्हीं के आधार पर रत्नों का रंग बनता है, जिससे रत्नों को पहचान सकते हैं। अब विश्लेषण करते हैं कि किन को कैन सा रत्न धारण करना चाहिए। कुंडली के लग्न के आधार पर इसे बताया जा सकता है:

लग्न जीवन रत्न कारक रत्न भाग्य रत्न मेष मूंगा माणिक्य पुखराज वृषभ हीरा पन्ना नीलम मिथुन पन्ना हीरा नीलम कर्क मोती मूंगा पुखराज सिंह माणिक्य पुखराज मूंगा कन्या पन्ना नीलम हीरा तुला हीरा नीलम पन्ना वृश्चिक मूंगा पुखराज मोती धनु पुखराज मूंगा माणिक्य मकर नीलम हीरा पन्ना कुंभ नीलम पन्ना हीरा मीन पुखराज मोती मूंगा इन्हें धारण करते समय यह अवश्य देखना चाहिए कि कुंडली में ये ग्रह कितने प्रभावी हंै, और ग्रह कहीं गलत प्रभाव तो नहीं दे रहे हैं?

अगर गलत प्रभाव दे रहे हैं, तो उस ग्रह का रत्न धारण नहीं करना चाहिए। अगर कुंडली न मालूम हो और रत्न धारण करने में असुविधा हो तो, नव रत्न की अंगूठी, या लाॅकेट धारण करें। परंतु वह भी इस निम्न तरह से बना हो, तब ही लाभकारी हो सकता है।

पन्ना हीरा मोती (बुध) (शुक्र) (चंद्र) पुखराज माणिक्य मूंगा (गुरु) (सूर्य) (मंगल) लहसुनिया नीलम गोमेद (केतु) (शनि) (राहु) ये बिमारीयां ठीक करने में लाभकारी है, इसके लिए किसी श्रेष्ठ ज्योतिष को अपनी कुंडली दिखा कर रत्न धारण करे, तो बीमारियों में लाभ दिलाता है।


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