पुराणों में हनुमानजी के जन्म व अवतार का उल्लेख एवं लीलाओं का वर्णन विस्तार से आया है। परंतु हनुमानजी का अवतार स्वामी के कार्य करने एवं उनकी सेवा के लिए ही है। साक्षात् त्रिमूर्ति शिव जी ने एकादश रूद्र के रूप में अवतार लिया है। शिशिव पुराण में हनुमानजी एवं अन्य शास्त्रों में शिवजी ने बड़ी लीलायें की हैं। इसी रूप में महेश्वर ने भगवान राम का परम हित किया था। वही सारा चरित्र सभी प्रकार के सुखों का दाता हैं। जब अत्यंत अदभुत लीला करने वाले गुणशाली भगवान विष्णु ने शिव जी को मोहिनी रूप का दर्शन कराया, तब वे कामदेव के बाणों से आहत हुये और क्षुब्ध हो उठे।
उस समय उस परमेश्वर ने राम की सिद्धि के लिए अपना ओज स्खलन किया तब सप्त ऋषियों ने उस ओज को पत्रपुटक में रखा क्योंकि शिव जी ने ही रामकार्य के लिए ही आदर पूर्वक उनके मन में प्रेरणा की थी। तब उन महर्षियों ने शंभु के उस ओज को रामकार्य की सिद्धि के लिए गौतम कन्या अंजनी के कान द्वारा उसके उदर में स्थापित कर दिया। तब समय आने पर उस गर्भ से शंभु ने महान बल, बुद्धि, पराक्रम के साथ तेजस्वी एवं वानर रूपी शरीर धारण करके जन्म लिया, इसीलिये उनका नाम ‘‘हनुमान बली, पराक्रम कपीश्वर रखा गया। जब हनुमान शिशु (बालक) ही थे, उसी समय उदित होते हुये सूर्य के लाल बिंब को छोटा फल ही समझकर भूख लगने पर मुंह में रख लिया।
तब चारों ओर अंधेरा ही अंधेरा छा गया। जब सभी देवताओं नेे मिलकर प्रार्थना की तब उसे महाबलीे सूर्य समझकर बाहर निकाल दिया। ‘‘तब देवऋषियों ने उन्हें शिव का अवतार माना और बहुत सारा वरदान दिया। उसके बाद हनुमान अत्यंत प्रसन्न होकर अपनी माता के पास गये और उन्होंने यह सारा ही वर्णन आदर पूर्वक विस्तार से सुना दिया। फिर माता की आज्ञा से धीर-वीर कपि हनुमान ने नित्य प्रतिदिन सूर्य के पास जाकर उनसे अनायास ही सारी विद्यायें व कलायें सीख ली। उसके उपरांत रूद्र के अंशभूत कपिश्रेष्ठ हनुमान सूर्य की आज्ञा से सूर्याशं से उत्पन्न हुए सुग्रीव के पास चले गये। इसके लिये उन्हें अपनी माता से भी आज्ञा मिल चुकी थी।
इस प्रकार श्रेष्ठ हनुमान ने सब तरह से श्रीराम का कार्य पूरा किया। अनेक प्रकार की लीलायें की तथा असुरों का मान-मर्दन किया। पृथ्वी पर अपने स्वामी श्रीराम का पूरा कार्य करके राम-भक्ति की स्थापना की और स्वयं भक्तों में भक्त शिरोमणि (अग्रण्य) होकर सीताराम को सुख-शांति, धैर्य व साहस प्रदान किया। ऐसा रूद्रावतार ऐश्वर्यशाली शक्तिशाली, महाबलशाली हनुमान, लक्ष्मण का जीवनदाता, संपूर्ण देवताओं का गर्वहारी और भक्तों का उद्वार करने वाला एवं उनका संकट हरण करने वाला है। महाबीर हनुमान हमेशा रामकार्य में तत्पर रहने वाले, लोक में रामदूत नाम से विख्यात, दैत्यों के संहारक और भक्तवत्सल है।
यह हनुमान जी अवतार का श्रेष्ठ चरित्र सुनने, श्रवण, पठन, मनन व ध्यान करने से धन, कीर्ति, ऐश्वर्य और आयु-कीर्ति को देने वाला है। हनुमान जी के कई अवतारों का वर्णन शास्त्रों में आया है। जैसे शंकरसुवन केसरी नंदन, पवन तनय, रूद्रावतार, एक मुखी, पंचमुखी, सप्तमुखी, अंजनी कुमार, आदि आदि। स्कंद पुराण एवं भविष्योत्तर पुराण में केशरी की पत्नि अंजना से पुत्र रूप में हनुमान जी का जन्म हुआ। ब्रह्मांड पुराण में हनुमान जी के अवतार का वर्णन आया है। वेदों, उपनिषदों, पुराणों में अन्यान्य प्रकार से भी हनुमान जी के जन्म एवं उनके चरित्रों का विवरण अनेक रूपों में मिलता है। वायुनंदन, आन्जनेय, अंजनी नंदन, केसरी नंदन, पवन तनय, शंकरसुवन, साक्षात रुद्रावतार शंकर के रूप में।
कुछ कथा प्रसंगों में जैसे भगवान कृष्ण को प्रसंग भेद से वासुदेव नंदन, नंदन सुवन, गिरिधारी, रास बिहारी, गोवर्धनधारी, लीलाधारी, बांके बिहारी, रणछोड़, दामोदर, यशोदानंदन, देवकीनंदन आदि आदि नामों से जाना जाता है। वैसे ही राम भक्त के हनुमान जी के विषय में भी समझना चाहिए। इस प्रकार भक्त शिरोमणि हनुमान जी का अवतार अनेक रूपों में हुआ। श्री हनुमान जी ने अपनी अद्भुत वीरता, सेवा आदर्श, अनन्य भक्ति, अनंत सद्गुणों से केवल अपना ही जीवन सफल नहीं किया बल्कि जिस लोक में वे जिनके अंश थे, उन भगवान शंकर, सर्व पूज्य, पवन देव कपि श्रेष्ठ, केशरी तथा माता अंजनी की परमोज्जवल कीर्ति का विस्तार भी किया।
जो मनुष्य भक्तिपूर्वक श्रद्धायुक्त होकर हनुमान जी के इस पराक्रम चरित्र का पठन-पाठन करता है तथा दूसरों को सुनाता है वह सभी प्रकार के भोगों को भोग कर मोक्ष को प्राप्त करता है। सभी प्रकार के दुखों, कष्टों, पीड़ाओं व व्याधियों से छुटकारा मिलता है। रोग, दोष, भूत, प्रेत, पिशाच आदि से मुक्ति प्राप्त होती है। कलियुग में हनुमानजी ही संकट मोचक हंै।