अखिल भारतीय वेदांत गोष्ठी, दिनांक 29.02.04 को, भीलवाड़ा में आयोजित हुई। इस गोष्ठी के आयोजक पं. प्रमोदराय आचार्य (ज्योतिषी) एवं सह आयोजक पं. हेमंत कुमार आचार्य थे। इस वेदांत गोष्ठी का उद्घाटन राजस्थान उच्च न्यायालय जोधपुर के न्यायाधीश श्रीमान् भगवती प्रसाद एवं परम श्रद्धेय स्वामी ज्ञानानंद तीर्थ, युवाचार्य, ज्योतिर्मठ जगदगुरु शंकराचार्य मठ भानपुरा ने दिनांक 29.2.04 को प्रातः 10.00 पर सूर्य महल, भीलवाड़ा में दीप प्रज्वलन कर किया।
इस वेदांत गोष्ठी में भारत के विभिन्न प्रांतों एवं सुदूर जगहों से 500 प्रतिभागियों ने भाग लिया। बाहर से पधारने वाले विशिष्ट अतिथिगण एवं वक्ताओं में डाॅ. वी. एन. पंचोली सा., भूतपूर्व प्राचार्य एवं विभागाध्यक्ष लाल बहादुर संस्कृत विश्वविद्यालय, नयी दिल्ली, डाॅ. धर्मवीर जी आचार्य एवं विख्यात लेखक, ऋषिकुंज, अजमेर, डाॅ. वेदप्रकाश उपाध्याय, विभागाध्यक्ष संस्कृत शिक्षा, पंजाब विश्वविद्यालय, संस्थापक अंतर्राष्ट्रीय ज्योतिष विज्ञान एवं अध्यात्म संघ चंडीगढ़, डाॅ. जितेंद्र, प्रोफेसर एवं विख्यात लेखक डी.ए.वी. काॅलेज, अजमेर, डाॅ. बद्री प्रसाद पंचोली, सेवानिवृत प्राचार्य एवं प्रसिद्ध लेखक अजमेर, डाॅ. गोपाल शर्मा, प्रसिद्ध लेखक, वास्तुविद, आदि थे।
माननीय न्यायाधिपति श्रीमान् भगवती प्रसाद शर्मा ने अपने उद्बोधन में कहा कि वेद भारत के मनीषियों, विद्वानों, ऋषि-मुनियों की साधना, तपस्या, चिंतन एवं विचार-विमर्श का सार है। वेद देवता की तरह है तथा ऋषियों की तपस्याओं का परिणाम है। ये अनंत तक पहुंचाने का उपक्रम है। वेदांत गोष्ठी में ऋषि-कुंज, अजमेर के आचार्य डाॅ. धर्मवीर, जो वेद प्रचार सेवा में अपना पूर्ण सहयोग देते हैं, ने अपने उद्बोधन में गोष्ठी के प्रथम सत्र में वेद, राष्ट्र एवं राष्ट्रीय एकता विषय पर सारगर्भित विचारों से सबको सम्मोहित कर अपनी विद्वत्ता की पहचान स्थापित की। उन्होंने कहा कि वेद जानने वाला ही मनुष्य है।
शास्त्र से परिचय न रखने वाला ही वेद को दुरूह, या असंभव वस्तु मानता है। संसार में जीवन यात्रा का आरंभ एवं अंत वेद से ही होता है। वेद की परिणति ही वेदांत है। उन्होंने कहा कि वेद ही जीवन है। वेद विद् धातु से बना है, जिसका मतलब है, खुद को पहचानो। मानव के जीवन में जन्म से मृत्यु तक वेद ही है, वेद स्वतंत्र शास्त्र है, वेद से ब्रह्म को जान सकते हंै, जबकि गीता स्वतंत्र शास्त्र नहीं है। गीता महाभारत का अंश है। इसी प्रकार दूसरे शास्त्र भी मौलिक नहीं हैं।
कर्मकांड एवं ज्ञान कांड में मतभेद नहीं है। उन्होंने कहा कि ज्ञानकांड एवं कर्मकांड में आपसी विरोधी नहीं है। दोनों साथ-साथ चलने वाले होते हैं, एक दूसरे के सहयोगी हंै। दोनों ही वेदांत के लक्ष्य को पूरा करते हैं। यजुर्वेद का इषा वाक्य इषो उपनिषद है, जो ज्ञान कांड का सर्वोच्च मंत्र है, जो सीधा वेद का अंश है। श्रद्धेय स्वामी जी ज्ञानानंद तीर्थ, युवाचार्य जगदगुरू शंकराचार्य, मठ मानपुरा ने अपने आशीर्वचनम् में कहा कि वेद ब्रह्म का स्वरूप है। शरीर के अंगों की तरह छंद, ज्योतिष, अलंकरण आदि वेद के अंग हंै।
वेदों में वर्णित ज्ञान के लिए समझ की आवश्यकता है। सतोगुण की वृद्धि से ही वेद का ज्ञान हो सकता है। स्वामी जी ने बताया कि समझ होने पर हम केले का गूदा खाते हैं एवं नासमझी से केले का छिलका फेंक देते हैं, तो छिलके पर पैर रखने से फिसलने की दुर्घटना हो जाती है। यदि हम पूर्ण समझदारी काम में लेवंे, तो केले का गुदा खा कर छिलका गाय को खिला देवें, तो गाय की क्षुधा पूर्ति होगी एवं हमारे लिए अनुपयोगी छिलका गाय के लिए उपयोगी हो कर पुनः दुध का निर्माण करेगा, जिससे हमारा शरीर पुनः पुष्ट होगा। अतः ज्ञान को समझ के साथ ग्रहण करना चाहिए। इसके लिए सतो गुण में वृद्धि आवश्यक है।
प्रथम सत्र में ही वास्तु विज्ञानी पं. गोपाल शर्मा ने भाग्य, कर्म एवं वास्तु में अंतर्संबंध बताया। वास्तु वैज्ञानिक ने भूमि, भवन तथा उसमें रहने वाले मनुष्य पर होने वाले प्रभावों का शास्त्रसम्मत कारण एवं प्रभाव बताया, वास्तु के प्रयोग एवं उचित समाधान के व्यावहारिक सुझाव दिये। उन्होंने भवन के रंग, ढाल, भूमि के चयन से संबंधित अपने अनुभव एवं प्रयोग भी बताये। साथ ही भोजनशाला, शयन कक्ष, जलागार के बारे में विस्तृत विवेचना की। रंगों के माध्यम से दैनिक जीवन में उन्हें उनके जानने एवं अच्छे परिणाम प्राप्त करने के लिए ज्योतिष के साथ वास्तु को समझाया।
डाॅ. गोपाल शर्मा ने वास्तु से संबंधित अपनी रचनाओं, पुस्तकों का एक सेट माननीय न्यायाधिपति को भेंट किया। ज्योतिषं वेदानाम चक्षु, वर्तमान परिपे्रक्ष्य में वेद ज्योतिष, वैदिक वास्तु एवं पुरा संस्कृति शोध पर विशेष चर्चाएं हुईं। लाल बहादुर संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व प्राचार्य एवं भीलवाड़ा जिले के बरूनंदनी ग्राम में स्थित वेद विद्यालय के संस्थापक डाॅ. वी.एन. पंचोली ने अपने उद्बोधन में वैदिक ज्ञान के प्रचार-प्रसार से, सुसंस्कारित समाज के निर्माण का आह्वान किया। अंतर्राष्ट्रीय ज्योतिष संस्था के संस्थापक डाॅ. वेद प्रकाश उपाध्याय ने कहा कि वेद मंत्रों का उच्चारण सस्वर होना चाहिए, क्योंकि स्वर के दोष से अनर्थ भी हो जाता है। डी.ए.वी. काॅलेज, अजमेर के प्रवक्ता डा. जितेंद्र ने वर्तमान परिप्रेक्ष्य में वेद पर प्रकाश डाला।
सेवानिवृत्त प्राचार्य एवं प्रसिद्ध लेखक डा. बद्री प्रसाद पंचोली ने वैदिक पुरा संस्कृति शोध पर चर्चा की। भीलवाड़ा की अदिति आचार्य ने ज्योतिषं वेदानाम् चक्षुः पर सारगर्भित पत्र वाचन किया। सायं 5 बजे से विद्वानों का स्वागत प्रारंभ हुआ। पं. प्रमोदराय आचार्य, जो इस वेदांत गोष्ठी के आयोजक है, को इंटरनेशनल फेडरेशन ज्योतिष विज्ञान एवं अध्यात्म संघ, श्री लंका द्वारा प्रदत्त स्वर्ण पदक एवं प्रमाण पत्र इस समारोह के मुख्य अतिथि माननीय न्यायाधिपति श्री भगवती प्रसाद जी ने प्रदान कर श्री आचार्य को आशीर्वाद दिया।
आदरणीय स्वामी जी ज्ञानानंद तीर्थ एवं उनके साथ पधारे संतों का शाल, दुपट्टा भेंट कर स्वागत किया गया एवं स्वामीजी का आशीर्वाद लिया गया। सभी बाहर से पधारे विशिष्ट अतिथियों को यथायोग्य प्रतीक चिह्नों से स्वागत कर सम्मानित किया गया एवं उनकी भूरी-भूरी प्रशंसा की गयी। भीलवाड़ा के प्रबुद्ध वर्ग मंे इस क्षेत्र में रुचि रखने वाले बुजुर्गों, विद्वानों का भी शाॅल ओढ़ा कर स्वागत किया गया। सभी प्रतिभागियों को प्रशस्ति पत्र दिये गये एवं स्वामी जी ज्ञानानंद तीर्थ ने आशीर्वाद दिया।
श्री हेमंत कुमार आचार्य, सह आयोजक ने सभी विशिष्ट अतिथियों के भीलवाड़ा पधारने, यहां के समारोह के प्रभावी संचालन हेतु, श्रीमती ज्योति जोशी, पं. अशोक व्यास, स्थानीय कार्यकर्ताओं में श्री सतीशचंद्र आचार्य, श्री देवेंद्र देराश्री, श्री महेशचंद्र भट्ट, श्री ओमप्रकाश लढ़ा, श्री ओम प्रकाश कंठ, श्री चांदकिरण, भोजन प्रभारी श्री शिवनारायण कच्छावा के कार्यों की प्रशंसा की जिनके सहयोग एवं कठिन प्रयासों के कारण यह संगोष्ठी सफल हुई है।