मानव जीवन में शकुन एवं स्वप्न का प्रभाव- कब, कहां और कैसे? डाॅ0 शुद्धात्मप्रकाष जैन ज्योतिष को त्रिस्कंध कहा गया है- सिद्धान्त, संहिता और होरा। कालान्तर में सिद्धान्त के दो भाग और हुए-पहला तंत्र और दूसरा करण। संहिता में मूलतः मुहूर्त, ग्रहों के उदयास्तादि के फल, ग्रहचार एवं ग्रहण-फलादि ही थे। बाद में शकुन और स्वप्नाध्याय इसमें और संयुक्त हो गये। इस प्रकार संहिता का स्वरूप होरा, गणित और शकुन मिश्रित हो गया। आजकल ज्योतिष शास्त्र पंचस्कन्धी हो गया है। प्रष्न और शकुन अलग से स्कन्ध मान लिये गये हैं। मानव जीवन में स्वप्नों की भूमिका और उनके फल विचार पर की चर्चा की जायेगी। स्वप्नों के माध्यम से व्यक्ति के आचार-विचार, व्यवहार आदि के बारे में विचार किया जाता है। नई पीढ़ी के कुछ नवयुवक संभवतः इस बारे में हंसेंगे कि यह भी कोई विद्या है, लेकिन इसकी प्रामाणिकता के विषय में संदेह करना अनुपयुक्त है, क्योंकि इस ज्ञान का प्रतिपादन प्राचीन ऋषियों, महर्षियों ने गहन अनुसंधान एवं परीक्षण के बाद किया था। ऋषि परम्परा की मूल पुस्तकें तो आज उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन आर्ष मनीषियों द्वारा रचित परम्परा ग्रन्थ रामायण, महाभारत, बृहत् संहिता, बसंतराज शकुन आदि ग्रन्थ, लोक विष्वास एवं स्वानुभव ही इसके प्रमाण हैं। इसके अतिरिक्त आयुर्वेद के चोटी के विद्वान् आचार्य चरक और आचार्य सुश्रुत ने भी शकुनों का उल्लेख किया है। स्वप्नषास्त्र को समझने एवं अध्ययन करने की प्रेरणा देते हुए छान्दोग्योपनिषद् में एक कथा आती है कि उद्दालक नाम से प्रसिद्ध अरूण के पुत्र ने अपने पुत्र श्वेतकेतु से कहा कि हे सौम्य! तू मेरे स्वप्नान्त को विषेष रूप से समझ ले। जिस अवस्था में यह पुरुष सोता है उस समय यह सत् से सम्पन्न हो जाता है। यह अपने स्वरूप को प्राप्त हो जाता है इसी से इसे स्वपिति कहते हैं, क्योंकि उस समय यह स्व अपने को ही प्राप्त हो जाता है। जैनदर्षन के प्रथमानुयोग के ग्रन्थों में एक प्रसंग आता है कि जब तीर्थंकर भगवन्तों का जन्म होता है तब उनकी माता को 16 स्वप्न दिखाई देते हैं। यह एक सार्वभौम तथ्य है। उन स्वप्नों को रानी प्रातः अपने पति से कहती है। महाराज उनका फल बताते हैं कि रानी! तुम्हारे गर्भ में एक त्रिलोकपूज्य अतिपुण्यवान् जीवात्मा आ रहा है। इस प्रसंग से भी यह स्वतः सिद्ध है कि स्वप्नों का वास्तविक अर्थ अवष्य होता है। इसके अतिरिक्त भी इसकी प्रामाणिकता के विषय में यदि मनोविष्लेषणवाद के जनक सुप्रसिद्ध मनोविष्लेषणवादी सिंगमण्ड फ्रायड का नाम नहीं लें तो शायद यह प्रकरण अधूरा ही रहेगा। सिंगमण्ड फ्रायड ने अपने चिकित्सालय में कई मनोरोगियों को उनके स्वप्नों का अध्ययन करके ही स्वस्थ किया था और स्वप्नों के बारे में उसने स्वयं लिखा है- ‘‘स्वप्नों की अपनी भाषा होती है। पुराने लोगों का यह विष्वास कि स्वप्न भविष्य की ओर इषारा करते हैं, बिल्कुल सही है।’’ फ्रायड ने अपने स्वप्नों को लिखा। उनके अर्थों का विष्लेषण किया। इन स्वप्नों पर उसने एक पुस्तक लिखने का निष्चय किया। उसने अपने और रोगियों के एक सहस्र स्वप्नों को आधार मानकर उनका विष्लेषण किया और अर्थ बताये। पांच वर्ष के घोर परिश्रम के बाद उसने स्वप्नों पर अनुसंधान सम्बन्धी एक पुस्तक ‘‘इण्टरप्रेटेषन आॅफ ड्रीम्स’’ लिखी जिसमें उसने एक हजार स्वप्नों का विष्लेषण प्रस्तुत किया। उसको विष्वास था कि इस पुस्तक के द्वारा स्वप्नों के वे आष्चर्यजनक और गुप्ततम अर्थ और रहस्य, लोगों के समक्ष आयेंगे जिनकी वे शताब्दियों से खोज कर रहे थे। इस पुस्तक का आरम्भ करते हुए उसने लिखा- ‘‘इस पुस्तक में यह दिखाने का प्रयास किया जायेगा कि स्वप्नों की व्याख्या करने के लिए एक मनोवैज्ञानिक विधि है। इसका अर्थ यह नहीं है कि जैसा स्वप्न देखा, वैसा फल हमें भुगतना पड़ेगा, यानि हम परतंत्र हो गये- ऐसा नहीं है। अपितु ये सब कर्म- फिलाॅसफी पर आधारित है। स्वप्न और शकुन भी कर्म के आधार पर माने गये हैं। जीव अपने जीवनकाल मंे भिन्न-भिन्न प्रकार के कर्म करता है। सभी कर्मों को एक साथ भोग पाना सम्भव नहीं है। प्रारब्ध के शुभाषुभ जैसे भी कर्म फल को लेकर जीव उत्पन्न होता है उसे शकुन और स्वप्न, ज्योतिष आदि सभी उसी रूप में प्रतिबिम्बित करते हैं। स्वप्न कैसे आते हैं, इस विषय में आयुर्वेद का मत है कि प्रत्येक मानव में हिता नाम की 72 हजार नाड़ियां होती हैं, जो हृदय से लेकर सम्पूर्ण शरीर में व्याप्त हैं। शरीर का ऐसा कोई भी भाग नहीं है, जहां ये नाड़ियां नहीं हों। रुधिर संचार इन्हीं नाड़ियों द्वारा होता है। नाड़ी दो प्रकार की होती हैं- स्वप्न नाड़ी और जाग्रत नाड़ी। मन हृदय से निकलकर हिता नाड़ी (स्वप्न नाड़ी) में प्रवेष कर स्वप्न देखता है और जब नाड़ियों द्वारा बुद्धि बाहर जाकर बाह्य विषयों को ग्रहण करती है। तभी जीव जाग्रत अवस्था को प्राप्त होता है। महर्षि चरक के अनुसार दारूण स्वप्न का सम्बन्ध मनोवहा नाड़ी से है- मनोवहानां पूर्णत्वाद् दोषैरतिबलैस्त्रिभिः। स्रोतसां दारूणान् स्वप्नान् काले पष्यति दारूणे।।- चरक संहिता, इन्द्रिय संस्थान, 5/30 योगवाषिष्ठ में भी स्वप्न को चित्त की भूमि से उत्पन्न माना गया है- अनाक्रान्तेन्द्रियाच्छिद्रो यतः क्षुब्धोऽन्तरेव सः। संविदानुभवत्याषु स स्वप्न इति कथ्यते।। -योगवाषिष्ठ स्थिति प्रकरण, 16/33 चित्त ही में वासना अथवा संस्कारों का वास होता है। अतः चित्त ही स्वप्न का सूत्रधार है। योगवाषिष्ठ के अनुसार नेत्रादि इन्द्रियों के छिद्रों के आक्रमण किये बिना अन्तःकरण में क्षुब्ध होकर जो पदार्थों को संवित् अनुभव करता है उसी को स्वप्न कहते हैं। स्वप्न मुख्य रूप से चार प्रकार के बताये गये हैं। पहला दैविक, दूसरा शुभ, तीसरा अषुभ और चैथा मिश्रित। दैविक स्वप्न कार्य की सूचना देते हैं। शुभ स्वप्न कार्यसिद्धि की सूचना देते हैं अषुभ स्वप्न कार्य की अषुभ सूचना देते हैं और मिश्रित स्वप्न मिश्रित फलदायक होते हैं। सिगमण्ड फ्रायड के अनुसार स्वप्न दो प्रकार के होते हैं- प्रथम मूल प्रवृत्ति के आवेग जो साधारणतया दमन किये जाते हैं, वे सोते समय पूरी शक्ति के साथ अवचेतन पर दबाव डालते हैं, दूसरे कोई तीव्र इच्छा जो जाग्रत अवस्था में तृप्त नहीं हुई, वह इच्छा अवचेतन स्तर से शक्ति बटोर कर बाहर आने के लिए दबाव डालती हैं और उसका सार्थक अर्थ होता है। स्वप्नों के विषय में कुछ बातें उल्लेखनीय हैं। पहली, स्वप्नों की स्मृति जाग्रत अवस्था की स्मृति से कहीं अधिक है। स्वप्न वे स्मृतियां लाते हैं जो व्यक्ति भूल जाते हैं और जो जाग्रत अवस्था में उनकी पहुंच के बाहर हैं। दूसरी, स्वप्न सीमारहित हैं। ये संकेतों में आते हैं। स्वयं स्वप्नदृष्टा उनके अर्थ नहीं जानता। अनेक बार बचपन की वे घटनायें स्वप्नों में दिखती हैं जिनको दमन-क्रिया द्वारा दमन करके भुला दिया जाता है। मानसिक रोगियों के स्वप्नों में वे बातें सामने आती हैं, जो दर्षक की प्रौढ़ावस्था से नहीं, बल्कि उसके भूले बचपन से आती हैं। स्वप्न मानव के पूर्व इतिहास को खोलकर सामने रख देते हैं। स्वप्नों का फल कब मिलता है- इस सम्बन्ध में बृहस्पतिकृत स्वप्नाध्याय में लिखा है कि यदि रात्रि के द्वितीय याम यानि प्रहर में स्वप्न देखे तो 6 महीने में फल होगा। यदि तीसरे प्रहर में स्वप्न देखे तो तीन महीने में फल होगा। अरूणोदय के समय स्वप्न देखने से दस दिन में फल मिलेगा। प्रायः अवचेतन मन के अर्थों को और उसमें वास करने वाली इच्छाओं को जानना बहुत कठिन है, किन्तु एक बात निर्विवाद है कि अवचेतन मन की इच्छायें स्वप्नों में छद्म रूप में रहती हैं। कभी-कभी स्वप्न बहुत कष्ट देने वाले होते हैं, जिनको देखकर स्वप्नदृष्टा चिंतित हो उठता है और हड़बड़ाकर नींद से जाग जाता है। सिगमण्ड फ्रायड कहते हैं कि स्वप्नों द्वारा या तो समझौता होता है या अवचेतन मन की कुछ इच्छायें छद्म रूप में तृप्त होती हैं। यही कारण है ‘अहम्’ चेतन हो उठता है और नींद खुल जाती है और वह अवचेतन की इच्छाओं पर नियंत्रण कर लेता है। कभी-कभी अवचेतन ‘अहम्’ पर छा जाता है और कभी-कभी ‘अहम्’ अधिक शक्ति लगाकर अवचेतन के प्रभाव को कम कर देता है। यदि सोते समय अवचेतन मन का प्रभाव ‘अहम्’ पर अधिक है और सोता ‘अहम्’ उससे टक्कर नहीं ले सकता तो वह सचेतन हो उठता है। प्रत्येक स्वप्न नींद में खलल डालता है। स्वप्न एक प्रकार से नींद का प्रहरी है। वह रात को पहरा देता है और जब वह बाहर के आक्रमण से रक्षा नहीं कर पाता तो वह सोते ‘अहम्’ को जगा देता है। यदि पहले अषुभ स्वप्न दिखे और बाद में कोई शुभ स्वप्न दिखे तो स्वप्नदृष्टा शुभ स्वप्न के फल को ही पाता है। बुरे स्वप्न को देखकर यदि व्यक्ति सो जाये और रात्रि में ही किसी से कह दे तो बुरे स्वप्न का फल नष्ट हो जाता है अथवा प्रातःकाल उठकर इष्टदेव को नमस्कार कर स्वप्न-फल को कहकर उसकी निवृत्ति की प्रार्थना करनी चाहिए। जो व्यक्ति स्वप्न देखकर पुनः सो जाता है वह मनुष्य स्वप्न से मिलने वाले शुभ या अषुभ फल को नहीं पाता है। इसलिए शुभ स्वप्न को देखने पर समझदार व्यक्ति को फिर से नहीं सोना चाहिए और शेष रात्रि को भगवद्भजन करते हुए व्यतीत करना चाहिए। संसार में स्वप्न देने वाले नौ भाव बताये गये हैं। सुना हुआ, अनुभव किया हुआ, देखा हुआ, देख हुए के समान, चिन्ता से, प्रकृति विकृति से, देवता से और पाप-पुण्य से स्वप्न देखे जाते हैं। इनमें से प्रारम्भिक छह प्रकार के स्वप्नों का तो शुभ या अषुभ फल विलम्ब से प्राप्त होता है बाकी बाद वाले तीन प्रकार के स्वप्न शीघ्र ही फल देने वाले होते हैं। कहा गया है- रतेर्हासाष्च शोकाच्च भयान्मूत्रपुरीषयोः। प्रणष्टवस्तु चिन्तातो जातः स्वप्नो वृथा भवेत्।। अर्थात् रति, हास, शोक, भय, मलमूत्र-वेग और इष्टवियोग की चिन्ता से देखा हुआ स्वप्न व्यर्थ हो जाता है। सिगमण्ड फ्रायड द्वारा स्वप्न विष्लेषण का एक नमूना देखिये कि वे किस प्रकार स्वप्नों का विष्लेषण एवं व्याख्या करते थे- स्वप्न इसप्रकार है- ‘‘एक नवयुवक किसी के घर दो चार दिन के लिए अतिथि बन कर गया। वह घर उसे बहुत आकर्षित लगा। वहां रहते हुए उसकी इच्छा उस घर में कुछ दिन और रहने की हुई। इस घर में रहते हुए उसे स्वप्न दिखा कि घर में ताजे लगाये गये पौधों में कलियां फूट आईं हैं और उनमें फूल लगे हैं।’’ इस स्वप्न की व्याख्या फ्रायड ने इसप्रकार की है- नवयुवक उस घर में अधिक दिन रहना चाहता था। कलियों के फूटने से और बढ़ने में समय लगता है। अतः उसका सपना उसकी इच्छा को स्पष्ट रूप में प्रकट न करके अस्पष्ट रूप से प्रकट करता है। वह उस घर में उस समय तक रहना चाहता था जिस समय तक कलियां फूल बन जायें। डाॅ0 परिपूर्णानन्द वर्मा ने अपनी पुस्तक ‘‘प्रतीक शास्त्र’’ के पृष्ठ संख्या 310 पर शुभ फल प्रदान करने वाले स्वप्न इस प्रकार बताये हैं- 1. सरस्वती, 2. विष्णु, 3. ष्शंकर-पार्वती, 4. चन्द्रमा और हिरन, 5. मित्र 6. तोता, 7. फलदार वृक्ष, 8. गंगा नदी, 9. सूर्य, 10. वणिक, 11. गरूड, 12. भरा घड़ा, 13. धर्मराज, 14. रावण, 15. लक्ष्मी, 16. राम-लक्ष्मण, 17. हनुमान, 18. कोकिला, 19. मयूर और 20. मछली। इसी प्रकार उन्होंने अषुभ फल देने वाले स्वप्न इसप्रकार बताये हैं- 1.शूकर, 2. कुत्ता, 3. लावक पक्षी, 4. सूखा वृक्ष, 5. मृत्यु, 6. यमदूत, 7. गधा, 8. कुष्ती, 9. ठेला, 10. अंधा व्यक्ति, 11. लड़ाकू स्त्रियां, 12. दासी, 13. मुर्गा, 14. सूना मन्दिर, 15. चंचल स्त्री, 16. चोर तस्कर, 17. बिल्ली, 18. सियार, 19. शुक्राचार्य, 20 दुर्वासा रूपी साधु। प्राच्य विद्या के ज्योतिषविषयक शास्त्रों में कुछ स्वप्नों के फल इसप्रकार बताये गये हैं- ‘‘जो व्यक्ति स्वप्न में सिंह, घोड़े, हाथी, बैल अथवा रथ पर चढ़ता है वह राजा होता है। जिसके दाहिने हाथ में सफेद सर्प काटे तो उसे पांच दिन में सहस्रों रुपये का लाभ होता है। स्वप्न में मनुष्य जिसका सिर कटे या जो काटे वे दोनों राज्य प्राप्त करते हें। लिंग छेदन होने से पुरुष तथा योनि छेदन होने से स्त्री पुरुष रूपी धन को प्राप्त होती है। स्वप्न में जिस पुरूष का जिह्वा-छेद हो वह क्षत्रिय हो तो सार्वभौम राजा होता है यदि अन्य कोई हो तो मण्डलेष्वर होता है। जो पुरूष श्वेत हाथी पर चढ़कर नदी के किनारे दही-भात खाता है वह सम्पूर्ण पृथ्वी का भोग करता है। जो पुरूष स्वप्न में सूर्य चन्द्रमा के मण्डल को खाता है वह पृथ्वीपति होता है। जो स्वप्न में अपना या दूसरे मनुष्य का मांस खाता है वह साम्राज्य प्राप्त करता है। जो महल पर चढ़कर अच्छे पक्वान्न खाकर अगाध जल में तैरता है वह राजा होता है। जो पुरूष स्वप्न में वमन या विष्ठा खाय तथा उसका अपमान न करे तो वह अवष्य राजा होता है। जो स्वप्न में मूत्र, वीर्य या रुधिर पान करता है और शरीर में तेल मलता है वह धनवान होता है। जो कमलदल की शय्या पर बैठकर खीर खाता है, वह मनुष्य राज्य प्राप्त करता है। जो मनुष्य स्वप्न में फल, फूलों को खाता या देखता है उसके आंगन में लक्ष्मी लौटती है। जो स्वप्न में धनुष पर बाण चढ़ाता है वह शत्रुदल को जीतकर निष्कंटक राज्य करता है और स्वप्न में दूसरे का वध अथवा बन्धन करता है अथवा निन्दा करता है वह पुरूष लोक में धनवान होता है।