जैन ज्योतिष में स्वप्न सिद्धांत
जैन ज्योतिष में स्वप्न सिद्धांत

जैन ज्योतिष में स्वप्न सिद्धांत  

व्यूस : 18386 | जून 2012
जैन ज्योतिष में स्वप्न सिद्धांत प्रियंका जैन जैन ज्योतिषशास्त्र में भी विभिन्न लक्षणों के आधार पर भूत तथा भविष्यत्काल में घटित होने वाली घटना के निरुपण की परंपरा है और यह ज्ञान ‘निमिŸा’ कहा जाता है। ये आठ प्रकार के होते हैं- व्यंजन, अंग, स्वर, भौम, छिन्न, अंतरिक्ष, लक्षण तथा स्वप्न। जैन ज्योतिषशास्त्र के प्रेणताओं का विचार है कि प्रत्येक घटना के घटित होने के पहले प्रकृति में विकार उत्पन्न होता है और इन्हीं प्राकृतिक विकारों की पहचान से व्यक्ति भावी शुभ अथवा अशुभ घटनाओं को निमिŸाशास्त्र के माध्यम से जान सकता है। भारतीय प्राचीन परंपरा स्वप्नों की उत्पŸिा हेतु पूर्वजन्म के संस्कार, दबी हुई आकांक्षाओं तथा परमपिता परमेश्वर की प्रेरणा को मूल कारण मानती है, वहीं पाश्चात्य वैज्ञानिकों ने दमित तथा अपूर्ण इच्छाओं, कामवासनाओं तथा तात्कालिक परिस्थितियों को स्वप्न का कारण माना है। इसी विषय पर जैन ज्योतिषाचार्यों ने अत्यंत वैज्ञानिक चिंतन के आधार पर स्वप्नों के सात प्रकारों का उल्लेख किया है- दृष्ट, श्रुत, अनुभूत, प्रार्थित, कल्पित, भाविक और दोषज। जागृत अवस्था में देखी गई घटना को स्वप्न में देखे तो दृष्ट स्वप्न, सुनी हुई बातों को स्वप्न में देखने पर श्रुत, अनुभव की गई बातों को देखने पर अनुभूत, इच्छित वस्तु को देखने पर प्रार्थित, जाग्रतावस्था में कल्पना की गई वस्तु को देखने पर कल्पित और जो न तो कभी देखा और न ही सुना हो पर जो भविष्य में घटने वाला हो वह भाविक, स्वप्न होता है जबकि वात, पिŸा और कफ के विकृत हो जाने पर दिखने वाले स्वप्न ‘दोषज’ कहे जाते हैं। इन सात प्रकार के स्वप्नों में से पहले पांच स्वप्न निष्फल होते हैं, जबकि बाद के दो स्वप्न अर्थात भाविक तथा दोषज स्वप्न का फल सत्य माना गया है- ‘‘स्वप्नमाला दिवास्प्नोऽनष्टचिंता मयःफलम्। प्रकृता-कृतस्वप्नैश्च नैते ग्राह्या निमिŸाततः।।’’ जैन ज्योतिष साहित्य में पक्ष और तिथियों का विशेष महत्व माना गया है। अलग-अलग पक्ष तथा तिथियों पर ही स्वप्न फल की प्राप्ति तथा इन फलों की प्राप्ति में शीघ्रता अथवा विलंब भी निर्भर करता है- हाथी की सवारी - शीघ्र ही राज्य सुख सोने या चांदी के बर्तन में भोजन करना - राज्य प्राप्ति श्वेत वर्ण के मलमूत्र का इधर उधर करना - राज्य व धन लाभ जीभ को नख से खुरचना - राज्य सुख प्राप्ति रक्त सरोवर में स्नान करना - राज्य लाभ समुद्र में सफलता पूर्वक तैरना - राज्य प्राप्ति सूर्य का स्पर्श - सौभाग्य व धन प्राप्ति चंद्र मण्डल का स्पर्श - सौभाग्य व धन प्राप्ति श्मशान भूमि में निर्भीक घूमना - सौभाग्य व धन-प्राप्ति कटा हुआ सिर देखना - अत्यधिक लाभ व प्रचुर भोग-प्राप्ति देव दर्शन (मृदु) - सर्व सुख लाभ साधु दर्शन (मृदु)- सर्व सुख लाभ ब्राह्मण दर्शन (मृदु) - सर्व सुख लाभ प्रेत दर्शन (मृदु) - सर्व सुख लाभ देव दर्शन (क्रुद्ध) - विशेष हानि साधु दर्शन (क्रुद्ध) - विशेष हानि ब्राह्मण दर्शन (क्रुद्ध) - विशेष हानि प्रेत दर्शन (क्रुद्ध) - विशेष हानि जल पीना - धन वृद्धिकर शर्बत पीना - धन वृद्धिकर कुंआ देखना - धन-धान्य प्राप्ति तथा बुद्धिलाभ श्मशान के सूखे पेड़-लकड़ी - लता देखना - विपŸिा शीशा - मृत्यु सिक्का - मृत्यु मधुदान - मृत्यु अगम्या गमन - सौभाग्य वृद्धि निर्जन चैराहा - पुत्र हानि वीणा देखना - कन्या प्राप्ति विष पीना - कन्या प्राप्ति विष भक्षण से मृत्यु - धन-धान्य लाभ व श्रेष्ठ गति घृतपान - अशुभ फल गधे की सवारी - शीघ्र मृत्यु शूकर - शीघ्र मृत्यु ऊँट - शीघ्र मृत्यु भेड़िया - शीघ्र मृत्यु अभक्ष्य भक्षण - धन प्राप्ति पुष्प व फल - धन प्राप्ति कच्चा मांस - हितकर पका हुआ मांस - व्याधि, भय और कष्टोत्पादक वमन अर्थात् उल्टी करना - मरण हंसना, नाचना व गाना - रुदन प्रसंग, शोक व कलह मूत्र त्याग - धन नाश अलंकृत हाथी - यश प्राप्ति अलंकृत घोड़े - यश प्राप्ति अलंकृत बैल - यश प्राप्ति सांप का काटना परंतु भयभीत न हो - धन लाभ बिच्छू का काटना परंतु भयभीत न हो - धन लाभ मगरमच्छ द्वारा खींच जाना - बंधन मुक्ति फूल (लाल-पीले) - स्वर्ण व चांदी का लाभ अग्नि में जलना - आरोप मुक्ति कन्या को देखना - स्त्री प्राप्ति गोद भराई देखना (स्वयं) - प्रभूत धन प्राप्ति स्त्री पुरुष बन जाए - शीघ्र विवाह हो पुरुष स्त्री बन जाए - शीघ्र विवाह हो आकाश (निर्मल) - शुभ फलप्रद आकाश (रक्तवर्ण) - कष्टप्रद गाय देखना - अत्यंत शुभ फल प्रद चक्षु नष्ट होना - मृत्यु, स्वयं की अथवा संबंधियों की चिता पर आरुढ होना - बीमार की मृत्यु व स्वस्थ्य व्यक्ति बीमार हो। दांत टूटना/हिलना - धन नाश व शारीरिक कष्ट मृत्यु - शुभ फल, जिसकी मृत्यु देखें वह दीर्घजीवी हो। विवाह - पीड़ा, दुख या आत्मीय जन की मृत्यु केला खाना - अशुभ फल केला देखना - शुभ फलदायक स्वप्न फल प्राप्ति की अवधि कृष्ण पक्ष तथा शुक्ल पक्ष की विभिन्न तिथियों के आधार पर स्वप्न से संबंधित फलों की प्राप्ति में शीघ्रता अथवा विलंब का निर्धारण तो होता ही है, साथ ही जैन ज्योतिष के अनुसार रात्रि के प्रहर भी इसमें महत्वपूर्ण माने गये हैं। रात्रि के प्रथम पहर में देखे गये स्वप्न एक वर्ष में फल देते हैं। दूसरे प्रहर में दिखने वाला स्वप्न आठ महीने में अपना शुभ अथवा अशुभ फल देते हैं। तीसरे प्रहर में देखे गये स्वप्न एक महीने के अंदर जबकि ब्रह्ममुहूर्Ÿा के स्वप्न दस दिन के अंदर फल देते हैं। यदि स्वप्न ठीक सूर्योदय से पूर्व प्रातः काल में देखा गया हो तो अतिशीघ्र फल देता है। स्वप्न फल तिथि शुक्ल पक्ष कृष्ण पक्ष प्रतिपदा विलंब से फल प्राप्ति निष्फल द्वितीया विपरीतफल प्राप्ति सार्थक स्वप्न, विलंब से फल प्राप्ति तृतीया विपरीत फल, विलंब से फल मिथ्या स्वप्न चतुर्थी फल प्राप्ति दो महीने से दो वर्ष मिथ्या स्वप्न पंचमी फल प्राप्ति दो महीने से दो वर्ष दो महीने बाद से तीन वर्ष तक षष्ठी सत्य स्वप्न, शीघ्र फल प्राप्ति दो महीने बाद से तीन वर्ष तक सप्तम सत्य स्वप्न, शीघ्र फल प्राप्ति शीघ्र फल प्राप्ति व अवश्यफल प्राप्ति अष्टमी सत्य स्वप्न, शीघ्र फल प्राप्ति विपरीत फल नवमी सत्य स्वप्न, शीघ्र फल प्राप्ति विपरीत फल दशमी सत्य स्वप्न, शीघ्र फल प्राप्ति मिथ्या स्वप्न एकादशी विलंब से फल प्राप्ति मिथ्या स्वप्न द्वादशी विलंब से फल प्राप्ति मिथ्या स्वप्न त्रयोदशी निष्फल स्वप्न मिथ्या स्वप्न चतुर्दशी निष्फल स्वप्न सत्य स्वप्न, शीघ्र फल प्राप्ति पूर्णिमा/ अमावस्या फल प्राप्ति अवश्य मिथ्या स्वप्न अशुभ स्वप्नों की शांति के उपाय इष्ट देव की आराधना Û साधुजन, गुरु आदि का पूजन व सेवा लाभप्रद। प्रातःकाल उठकर नवकार मंत्र 21 बार पढ़ें। स्थान पर जाकर गुरु का आशीर्वाद लें। Û दान करें। उपवास करना भी लाभप्रद होता है। नवकार मंत्र - णमोअरिहंताणं णमो सिद्धाणं णमो आयरियाणं णमो उवज्झायाणं णमो लोएसव्वसाहूणं। एसो पंच णमोक्कारो सव्व पावप्पणासणो। मंगलाणं च सव्वेसिं पढ़मं हवई मंगलम।।



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