स्वप्न और शुभाशुभ फल विचार गोपाल राजू स्वप्न दमित इच्छाओं की परिणति है, यह सत्य है। परन्तु मिथ्या यह भी नहीं है कि उनमें भविष्य सूचक अनेक प्रत्यक्ष और परोक्ष संकेत छिपे हुए हैं। यदि उन्हें भलीभांति समझा और जाना जा सके तो कितने ही प्रकार से लाभान्वित हुआ जा सकता है और अन्यों केा भी लाभ पहॅुचाया जा सकता है। आए दिन अनुभव में आने वाले स्वप्न दर्षन और उनके शुभाषुभ फल विचार इसके साक्षी हैं। रात्रि की नीरवता हो या दिन की शान्ति, इस स्थिति में चेतना जब निद्राकाल में षिथिल पड़ती है और उत्तेजना रहित होती है तो प्रकृति के गर्भ में पल रहे घटनाक्रमों को पकड़ने की क्षमता अर्जित कर लेती है। इसी को समय-समय पर संकेतों के माध्यम से प्रकट भी कर देती है। इसलिए सपने सदा निरर्थक तथा निरुदेष्य नहीं होते। कितनी ही बार उनमें सार्थक संकेत भी छिपे होते हैं, इस तथ्य को आज विष्व स्तर पर स्वीकार कर लिया गया है।
स्वप्न शास्त्र में सपनों को कुल सात प्रकार की श्रेणियों में रखा गया है अर्थात 1. दृष्ट 2. श्रुत 3. अर्थभूत 4. प्रार्थित 5. कल्पित 6. भावित 7. दोषज। इनमें से प्रथम पांच प्रकार के सपनों का कोई भी शुभाषुभ फल नहीं होता। परंतु शेष दो भावित और दोषज श्रेणी के स्वप्न अपना कुछ न कुछ प्रभाव अवष्य दिखाते हैं।
भावित स्वप्न वह हैं जो शुद्ध और सात्विक व्यक्तियों को देवलोक से स्वतः प्रत्यक्ष रुप से शुभ फल का संकेत देते हैं। जो विषय कभी भी ध्यान में न आया हो, उससे संबंधित स्वप्न भावित माने गये हैं। इनका शुभाषुभ फल देर-सवेर मिलता अवष्य है। जो इस बात पर निर्भर करता है कि उस काल में व्यक्ति विषेष के ग्रहों की दषा-अन्तर्दषा आदि की बलाबल के अनुरुप क्या स्थिति है।
सत्तर प्रतिषत से अधिक स्वप्न दोषज श्रेणी में आते हैं। ये अधिकांषतः फलित नहीं होते। अनिद्रा, अस्वस्थ शरीर, दिन के समय दिखाई देने वाले स्वप्न भी इसी श्रेणी में आते हैं जो निद्रा से जगने के बाद सामान्यतः याद भी नहीं रहते।
स्वप्न विचार ग्रंथों में लिखा है कि अरुचिकर, डरावने अथवा अन्य किसी भी प्रकार के दुस्वप्न निद्रा से उठने के बाद किसी को भी नहीं बताने चाहिए। यदि ऐसे स्वप्न आएं तो गंगा जल सेवन करके पुनः सो जाना चाहिए। अगले दिन प्रातः सर्वप्रथम गाय, मोर, देवालय, सौभाग्यषाली नहाई-धोई श्रंृगारयुक्त स्त्री अथवा सात्विक और पूजा-पाठी ब्राह्मण आदि के दर्षनों से ऐसे सपनों का दुष्प्रभाव स्वतः ही समाप्त हो जाता है।
अषुभ स्वप्न के दुष्प्रभाव से यदि अकारण भय उत्पन्न हो रहा है तो प्रातः नहा-धोकर तिल से अग्नि में होम करना लाभदायक सिद्ध होता है। सुपात्र को श्रद्धाभाव से और यथासामथ्र्य दान देने से भी अषुभता की संभावना कम होने लगती है। सौभाग्य से यदि चित्त को सुखद लगने वाले अर्थात् किसी प्रकार के अच्छे सपने दिखाई दें तो उनको सदा गुप्त रखना चाहिए क्योंकि इसमें ही शुभता का भेद छिपा है। संभव हो तो निद्रा त्याग कर ऐसे सपनों को सिद्ध करने के लिए नियमानुसार और शास्त्रोक्त क्रम-उपक्रम कर लेना चाहिए।
जो साधक स्वप्न-दर्षन से भविष्यफल की सिद्धि के इच्छुक हैं वे एक सरल से मणिभद्र प्रयोग द्वारा इसमें सिद्ध हस्त हो सकते हैं। यदि अपने स्वयं के ग्रह-नक्षत्रानुसार इष्टसिद्धि का प्रबल योग है और दूसरे संयम और आस्था का पूर्ण भंडार साधक में निहित है तो शुभाषुभ का पूर्वाभास स्वप्न में अवष्य होने लगेगा।
संयमित और सात्विक जीवन शैली से 21 दिनों तक नित्य रात्रि में सोने से पूर्व तिल के तेल का एक दीपक जलाएं। उसमें एक पीली बड़ी कौड़ी स्थापित कर दें। स्वप्नेष्वरी देवी का ध्यान करके 21 मंत्र बार जप करें। इसके बाद मणिभद्र मंत्र की 21 माला जप करें। अंतिम दिन कनेर के लाल पुष्पों के साथ दीपक में से कौड़ी निकाल कर किसी तांबें के छोटे से पात्र में बंद करके रख लें। बाद में जब भी सपने में कुछ जानने की इच्छा हो तो सोने से पूर्व हाथ-पैर अच्छी तरह धोकर यह पात्र सिर के समीप रख लें और देवी का ध्यान तथा मणिभद्र मंत्र का जप कर अपने इष्ट कार्य को सपने में मूर्त होने की कामना मन ही मन दोहराते हुए सो जाएं।
स्वप्नेष्वरी मंत्र-
ऊँ श्रीं स्वप्नेष्वरी कार्य मे वद स्वाहा।
जप मंत्र-
ऊँ नमो मणिभद्राय नेतकाय सर्वकार्य सिद्धये मम् स्वप्न दर्षनानि कुरु कुरु स्वाहा।