स्वप्न अवधारणाएं व् दोष निवारण
स्वप्न अवधारणाएं व् दोष निवारण

स्वप्न अवधारणाएं व् दोष निवारण  

व्यूस : 7815 | जून 2012
स्वप्न-अवधारणाएं व दोष निवारण डाॅ. टीपू सुल्तान ‘‘फैज’’ निद्रा काल में देह की अचलता के बावजूद भी कल्पना के केंद्र भूत मन में घटित हलचलों के कारण अंतर्मुखी वृŸिायांे की सक्रियताएं बनी रहती हैं, जिसे स्वप्न की संज्ञा दी जाती है। वस्तुतः निद्रा व जागरण की यह अवस्था अर्थात स्वप्न की इन क्रियाओं के रहस्यमय गुणों व गूढ़ अर्थों को जानने के लिए मानव आदिकाल से आज तक प्रयत्नशील है तथा इस क्रम में ज्ञान-विज्ञान से लेकर अध्यात्म जगत व लोकधारणाओं में इस विषय को लेकर अनेक शोध किये गये तथा भिन्न-भिन्न प्रकार की विचारधाराएं भी विकसित हुईं। वैज्ञानिक पृष्ठभूमि सर्वप्रथम अरस्तु ने स्वप्न को मानसिक क्रिया का एक व्यवहारिक स्वरूप माना। बाद के दशकों में भिन्न-भिन्न मनोशास्त्रियों ने स्वप्न की अपनी-अपनी परिभाषा दी। ब्राउन ने माना कि स्वप्न क्रिया एक विभ्रम रूप है। जब हम जागते हैं तब इसका विभ्रमात्मक स्वरूप पूर्णतः स्पष्ट होता है। एक अन्य मनोचिकित्सक सिग्मन फ्रायड के अनुसार स्वप्न का तात्पर्य उन अतृप्त इच्छाओं व आकांक्षाओं से है जो समाप्त न होकर अवचेतन मन में आकर सबल हो जाती है। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के अनुसार स्वप्न, शरीर की संरचनाओं अर्थात तंत्रिका तंत्रों की क्रियाओं में आए विकार के कारण उत्पन्न अर्ध-निद्रा का एक परिणाम है। डाॅ. ‘हनीमैन’ के अनुसार शरीर की फिजीयोलोजिकल व्यवस्थाओं में स्वप्न की भूमिका तथा उससे जुड़े लक्षणों का प्रभाव अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। इसी पद्धति से जुड़े ‘‘कैंट, बार्थल, बोरिक’’ आदि जैसे प्रसिद्ध होमियो चिकित्सकों ने भिन्न-भिन्न रोगों से संबंधित स्वप्नों के प्रकार, अर्थ, उसके विविध स्वरूपों के साथ भिन्न-भिन्न औषधियों का निर्धारण भी किया है, जिससे रोग के उपचार में काफी सहायता मिलती है। आध्यात्मिक पृष्ठभूमि स्वप्न की आध्यात्मिक पृष्ठभूमि अत्यंत वृहत् व महत्वपूर्ण है। रामचरितमानस में त्रिजटा नाम की राक्षसी स्वप्न में वानरों द्वारा लंका दहन व रावण-वध की सूचना के शीघ्र ही साकार हो जाने के संकेत मिलते हैं। मार्कण्डेय पुराण में महान विदुषी मदालसा के पुत्र महाराज अलर्क के समक्ष उनके गुरु दŸाात्रेय के द्वारा स्वप्न से संबंधित उपदेश तथा अरिष्टों के संकेत व उसके उपायों की चर्चाएं तथा स्वप्न काल में महाराज श्री हरिश्चंद्र की परिकल्पनाओं के अगले दिन फलित होने की घटना मुख्य हैं। इसके अतिरिक्त कुरानपाक में पैगम्बर हजरत इब्राहीम के स्वप्न में अध्यात्म-पथ पर अपने पुत्र हजरत इस्माइल को कुर्बान कर देने के ईश्वरीय निर्देश तथा सूली पर चढ़ाए जाने के बाद ईसा मसीह के द्वारा अपने अनुयायियों के स्वप्न में आकर अपने पुनः आगमन की सूचना दिये जाने के बाइबिलीय के विवरण स्वप्नों की आध्यात्मिक महŸााओं के साक्षात उदाहरण हैं। लोक अवधारणाएं स्वप्न के अन्य प्रचलित सिद्धांतों के अनुसार इच्छाओं व कल्पनाओं के अतिरिक्त स्वस्थ शरीर में निरंतर ऐसी भी क्रियाएं घटित होती रहती हैं जिनका रोजमर्रा के जीवन या घटित घटनाओं से कोई सरोकार नहीं होता। यद्यपि कल्पनाएं ज्ञान की महत्वपूर्ण आधारशिला भी हैं व समय-समय पर मन में भिन्न-भिन्न प्रकार की ऐसी समानांतर या विकसित कल्पनाएं भी उत्पन्न होती रहती हैं, परंतु अनुभवों की वास्तविकता का महत्व कभी कम नहीं होता तथा कुछ ऐसे तथ्य विद्यमान होते हैं जिन्हें कोई माध्यम न मिल पाने के कारण अज्ञानता मान लेना पड़ता है। अतः स्वप्न अतीत की अपूर्ण इच्छाओं तथा व्यक्ति के अवचेतन मस्तिष्क पर पूर्ण अधिकार कर भविष्य की क्रियाओं का एक संपादन है, जो केवल एक अवस्था मात्र नहीं बल्कि इसकी व्यापक क्रियाएं भविष्य की् घटनाओं के संकेतक भी है। स्वप्न की शुभ व अशुभ अवस्थाएं: स्वप्न व शकुन शास्त्र के सैंद्धातिक दृष्टिकोण से रात्रि काल के प्रथम प्रहर में आने वाले स्वप्न अशुद्ध प्रभावों के सूचक है, जिसका कोई शुभ व सकारात्मक फल प्राप्त नहीं होता। यदि प्राप्त होता भी है तो अति विलंब से। यही स्थिति दूसरे प्रहर के स्वप्न की भी होती है। तीसरे प्रहर के अंत में या चैथे प्रहर में आने वाले स्वप्न शुभ फलदायक या सदैव शीघ्र फल देने वाले होते हैं। भिन्न भिन्न स्वप्नों के फलित विवरण: स्वप्न में बादलों का दिखना तरक्की का प्रतीक माना गया है। स्वप्न में अपने मुख को दर्पण में देखना स्त्री से प्रेम होने का सूचक माना गया है। स्वप्न में पहाड़ पर चढ़ना उन्नति का सूचक होता है। बाग अथवा फुलवारी को स्वप्न में देखना, खुशी व प्रसन्नता का प्रतीक माना गया है। स्वप्न में फूल का दिखना प्रेम प्रसंग में सफलता का सूचक कहा गया है। स्वप्न में जल से भरे कुएं का दिखना संतान लाभ व ऐश्वर्य में वृद्धि का सूचक होता है। स्वप्न में समुद्र देखना धन व यश की प्राप्ति का सूचक माना गया है। पानी में डूबने का स्वप्न अच्छे काम करने या संपन्न होने का सूचक कहा जाता है। नदी में तैरने का स्वप्न कष्ट के दूर होने का संकेत माना गया है। निद्रा काल में पान खाने का यदि स्वप्न दिखाई देने पर तो ये समझें कि शीघ्र ही सुंदर स्त्री का सुख प्राप्त होने वाला है। स्वप्न में स्वयं हंसना या किसी को हंसते देखना रंज या कलह का प्रतीक माना जाता है। स्वप्न में स्वयं रोना या किसी को रोते देखना प्रसन्नता का सूचक समझा जाता है। रत्न या जवाहरात दिखने का स्वप्न इच्छा व आशाओं के पूर्ण होने का सूचक माना गया है। स्वप्न में सूर्य देखना किसी महात्मा के दर्शन होने का सूचक होता है। स्वप्न में यदि चंद्रमा का दर्शन हों तो समझें किसी प्रकार की प्रतिष्ठा प्राप्त होने वाली है। निद्रा काल में भयावह या भूत-प्रेत आदि के स्वप्न को अशुभ व अरिष्टकारी माना गया है। स्वप्न में सीढ़ी का दिखाई देना सुख-संपŸिा में वृद्धि का सूचक माना गया है। स्वप्न में खाई दिखाई दे तो समझें धन व प्रसिद्धि की प्राप्त होने वाली है। कीचड़ में फंसे होने का यदि स्वप्न आये तो यह समझें कि किसी कष्ट को भोगने अथवा धन-व्यय की स्थिति उत्पन्न होने वाली है। Û स्वप्न में सूखे बाग को देखना विपŸिा में फंसे होने का सूचक कहा गया है। स्वप्न में किसी अर्थी को देखना रोग से मुक्त व आय में वृद्धि होने का सूचक माना गया है। स्वप्न में बिल्ली को देखना चोर या शत्रु से पाला पड़ने की संभावनाओं का सूचक माना गया है। स्वप्न में सांप, कुŸो या बंदर के काटने को रोग व संकट के सूचक के रूप में माना गया है। तंत्र-शास्त्र में इस दृश्य को नकारात्मक ऊर्जा या ऊपरी हवा के प्रतीक के रूप में भी समझा जाता है। स्वप्न में जंगल का दृश्य यदि दिखाई दे तो समझें कि दुख दूर होने वाले हैं तथा विजय की प्राप्ति होने वाली है। अनिष्ट स्वप्नों के उपाय: सोते समय सिर दक्षिण दिशा की ओर होने पर शरीर की विद्युत चुंबकीय ऊर्जा की सक्रियताएं संतुलित रहती हंै, जिससे शरीर व मन पर बाहरी नकारात्मक तत्वों का प्रभाव पूर्ण रूप से नहीं होता तथा इस स्थिति में भयावह या अनिष्टकारी स्वप्न नहीं आते। सोते समय सिरहाने के नीचे लोहे का चाकू व हींग को काले कपड़े में लपेटकर रखने से भयावह या डरावने स्वप्न आने बंद हो जाते हैं। सोते समय बिस्तर व स्वंय की स्वच्छता पर मुख्य रूप से ध्यान देना चाहिए तथा इस काल में इस बात की ओर भी विशेष रूप से ध्यान देने की आवश्यकता है कि हाथ या हथेली सीने अथवा सिर के ऊपर न हो तथा दोनों पैर कैंची की तरह एक दूसरे के ऊपर न हों। सोते समय यदि नित्य भयावह स्वप्न आते हों, तो सिरहाने एक कागजी नीबू रखकर सोएं फिर प्रातः उस नीबू को अपने ऊपर से सात बार घुमाकर चार भाग में काट लें तथा उसे किसी चैराहे पर चारों दिशाओं की ओर फेंक दें। इस प्रक्रिया को सात दिनों तक दोहराएं। स्वप्न में शैतानी या भूत, प्रेत आदि जैसी नकारात्मक शक्तियां अगर दिखाई दें तो ‘‘औजु़बिल्लाह इमनस शैतान इल्लजिम’’ की दुआ को एक सौ आठ बार पढ़ें। अधिक लाभ के लिए पुनः सोते समय इस क्रिया को ग्यारह दिनों तक दोहराएं।



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