स्वप्न द्वारा भाव जगत में प्रवेश,एक प्रयोग ! डाॅ. भगवान सहाय श्रीवास्तव स्वप्नों के माध्यम से भाव जगत में प्रवेश करना बहुत ही सुगम है किंतु इसके पूर्व चेतन मन और अवचेतन मन की सीमाओं को समझ लेने से बहुत सुविधा होगी। जिन स्वप्नों का संबंध मनुष्य की चेतना अथवा भौतिक जगत से होता है वे दमित आकांक्षाओं के फलस्वरूप और उन्हीं की पूर्ति के लिए पिछले मार्ग से प्रवेश करते हैं क्योंकि भौतिक जगत का बोध हमें हमारी ज्ञानेन्द्रियों (स्पर्श, जीभ, नाक, आंख, कान) के द्वारा होता है जबकि भाव जगत का बोध इन इन्द्रियों से न होकर अतीन्द्रिय द्वारा उस मन से होता है जो स्थूल शरीर के नष्ट हो जाने के बाद भी आत्मा के इर्द-गिर्द सूक्ष्म शरीर की रचना किये रहता है। पिछले जन्मों की स्मृति अथवा भविष्य दर्शन इस अतीन्द्रिय द्वारा ही संभव हुआ करती है। जब हमारा स्थूल शरीर शिथिल या अशक्त अवस्था में होता है तो हमारा अवचेतन मन भौतिक जगत से ऊपर उठकर आत्म चेतना, पराचेतना, अथवा परम चेतना से संबंध स्थापित कर लेता है। इस अवस्था में दिखाई देने वाले स्वप्न आध्यात्मिक होते हैं। वस्तुतः चेतन मन की अपेक्षा अवचेतन मन के पास ज्ञान प्राप्त करने के साधन अधिक सबल हैं क्योंकि बेचारा चेतन मन तो ज्ञानेन्द्रियों और उनके जरिए प्राप्त सूचनाओं पर ही आधारित रहता है। कभी-कभी इन ज्ञानेन्द्रियों की सीमा भी उसके ज्ञान में बाधा बन जाती है जबकि अवचेतन मन के पास पिछली स्मृतियों का असीम भंडार रहता है। यह एक ऐसा कंप्यूटर है जो चाहे तो भविष्य में भी झांक सकता है तथा अनोखे तथ्य उद्घाटित कर सकता है। जब हमारा चेतन मन तनाव से मुक्त होता है, जैसे नींद में तो हम इस ‘काल रूपी चैथे आयाम में दोनों ओर, यानी आगे और पीछे (भूत और भविष्य दोनों ओर) आराम से देख सकते हैं। भाव एक प्रकार की अनुभूति है। जैसे एक ही चित्र को देखने पर भिन्न-भिन्न व्यक्तियों के मन में भिन्न-भिन्न अनुभूतियां हो सकती हैं। ये अनुभूतियां ही हमारा भाव जगत हैं और स्वप्नों के माध्यम से सही और स्पष्ट भाव ग्रहण करना ही भाव जगत में प्रवेश करना है। भाव जगत में प्रवेश-प्रयोग विधि इस प्रयोग में सबसे पहला अभ्यास जो अपेक्षित है, वह है शरीरगत इन्द्रियों (स्पर्श, गंध, स्वाद, ध्वनि, दृश्य) से प्राप्त सूचनाओं को ग्रहण न करने अथवा उनसे बचने का गहरा अभ्यास। इसके लिए आप शरीर और श्वास को बिल्कुल शिथिल कर दीजिए तथा मन में उठने वाले विचारों का निरीक्षण प्रारंभ करिये। ध्यान रखें, विचारों का केवल साक्षी बनकर निरीक्षण ही करना है। किसी विचार के साथ बहना या स्वयं विचार श्रृंखला में फंस जाने से अपने आपको पूरी तरह बचाना होगा। सावधानी: शांत और शिथिल होकर आप कान से सुनाई पड़ने वाली ध्वनियों का निरीक्षण करने का अभ्यास करें। कान में पड़ने वाली ध्वनियों से आप जो भी भाव ग्रहण करते हैं वह आपका शारीरिक अनुभव अथवा इन्द्रियगत अनुभव ही कहलायेगा। आपका चेतन मन इन ध्वनियों के आधार पर पुरानी सूचनाओं की सहायता से एक निर्णय ले लेता है। यहां बस यह ध्यान रखें कि ध्वनि मात्र एक ध्वनि है। उसके आधार पर चेतन मन में उठने वाले अनगिनत प्रश्नों की श्रृंखला के मात्र दृष्टा बनें। उस आधार पर कोई निर्णय न करें। उससे बचें। यदि आपको भाव जगत में प्रवेश करना है तो ऐसे विचारों से बचना होगा। योग की साधना में ऐसे विचार और भाव अनपेक्षित व निरर्थक होते हैं। जब मन शून्य और निर्विचार हो जायेगा तभी अलौकिक, अदभुत अकल्पनीय भाव जगत में प्रवेश कर सकेंगे।