स्वप्न - अवचेतन मन का एक जाग्रत स्वरूप
स्वप्न - अवचेतन मन का एक जाग्रत स्वरूप

स्वप्न - अवचेतन मन का एक जाग्रत स्वरूप  

व्यूस : 7988 | जून 2012
स्वप्न - अवचेतन मन का एक जाग्रत स्वरूप रश्मि चैधरी स्वप्न एक छोटी-सी, अत्यंत गूढ, रहस्यमयी, रोमांचक और मन को पुलकित, उद्वेलित तथा आह्लादित करने वाली उस जल-तरंग के समान है जो चंचल, कोमल मन रूपी नदी को अनेकानेक संभावनाओं और परिकल्पनाओं रूपी जल से और अधिक परिपूरित और आप्लावित कर देती हैं स्वप्नों की सार्थकता एवं सत्यता पर प्रश्न चिह्न लगने के साथ-साथ समय-समय पर उनकी सटीकता को स्वीकार भी किया गया है और वैज्ञानिक सभी इस बात को स्वीकार करते हैं कि स्वप्नों में पूर्वाभास की अलौकिक क्षमता होती है। साधारणतः हमारी दिनचर्या का एक पारदर्शी चित्र हमारे अचेतन मन पर छप जाता है अथवा हम अपने मन की गहराइयों से जो भी वस्तु या व्यक्ति पाना चाहते हैं और किसी कारणवश उसे प्राप्त नहीं कर पाते तो उन सभी इच्छाओं की संपूर्ति निद्रावस्था में स्वप्न के रूप में हो जाती है। मानव मस्तिष्क और मन का स्वप्नों के साथ एक अटूट और अगाध संबंध है। निद्रावस्था में शरीर तो शिथिल हो जाता है किंतु मन और मस्तिष्क सक्रिय ही रहते हैं। ऐसी अवस्था में जाग्रत मन के द्वारा अवचेतन मन को उन्हीं घटनाओं के संकेत भेजे जाते हैं जो जागते समय देखते, सोचते या करते हैं। हमारे दैनिक जीवन के तनाव, विगत जीवन की अच्छी-बुरी घटनाएं तथा भविष्य की योजनाएं भी कभी-कभी हमें स्वप्न के रूप में दिखाई पड़ती हैं। स्वप्न सदैव ही सत्य हो जाएं, ऐसा पूर्णतया नहीं कहा जा सकता, किंतु इतना अवश्य और स्वानुभूत तथ्य है कि स्वप्न एक अच्छे मार्गदर्शक एवं कुशल भविष्यवक्ता के रूप में भी कार्य करते हैं। बस आवश्यकता उनके संकेतों को गूढ़ता एवं गंभीरता से पहचानने की है। हमारे प्राचीन पुराणादि ग्रंथों में भी स्वप्नों की सत्यता से संबंधित अनेकानेक तथ्य सामने आते हैं। गोस्वामी तुलसीदास जी कृत श्री राम चरित मानस’ में भी स्वप्नो को पूर्व में घट चुकी अथवा भविष्य में होने वाली घटनाओं का संकेतक ही माना गया है। ‘अयोध्या कांड’ के एक प्रसंगानुसार जब भरत माता कौशल्या, मुनि वशिष्ठ एवं अनेकानेक नगरवासियों समेत अपने ज्येष्ठ भ्राता श्री रामचंद्र, लक्ष्मण जी एवं सीता से मिलने वन जाते हैं, तो सभी लोग अति शिथिल होने के कारण रात्रि में पर्वत शिरोमणि ‘कामदगिरि’ के समीप ही निवास करते हैं। प्रातः काल भरत आगे प्रस्थान करते हैं। उधर वन में रात्रि में सीताजी ने एक अशुभ स्वप्न देखा। सीता जी यह स्वप्न रामचंद्र जी को सुनाने लगी। ‘‘मानो राज समाज सहित भरत जी आये हैं। प्रभु के वियोग की अग्नि से उनका सारा शरीर संतप्त है। सभी लोग मन में उदास, दीन और दुखी है। अपनी सासों को भी मैने दूसरे ही रूप में (विधवा) देखा है।’ सीताजी के इस स्वप्न को सुनकर रामचंद्र भी भविष्य में होने वाली अनिष्ट की आशंका से ग्रस्त हो गये और उनके नेत्रों में जल भर आया। उन्होंने लक्ष्मण जी से कहा- ‘‘लखन सपन यह नीक न होई। कुछ समय पश्चात् ही उन्हें वशिष्ठ जी से अपने पिता की मृत्यु का समाचार सुनने को मिला। इस समाचार से रघुनाथ जी को दुःसह दुख की प्राप्ति हुई और वे अत्यंत व्याकुल हो गये। इसी प्रकार ‘सुंदर कांड’ के अन्य प्रसंग में आया है कि त्रिजटा नाम की राक्षसी ने लंका के राजा रावण के सर्वनाश तथा रामचंद्र जी की विजय का स्वप्न पहले ही देख लिया था। इसी प्रकार ‘मत्स्यपुराण’ स्वप्नों को भविष्य का द्योतक मानता है। असुर शिल्पी, मय’ ने भी भविष्य में होने वाली घटनाओं को पहले से ही स्वप्न में जानकर अपनी सभा में सबके सामने उस भविष्य के घटना चक्र का विस्तार से वर्णन कर दिया था।



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