शकुन शास्त्र में काक-तंत्र विचार राजीव रंजन कौआ एक सर्वसुलभ पक्षी होने के साथ-साथ न्यायाधीश के रूप में प्रतिष्ठित शनिग्रह का वाहन भी माना गया है, इसलिए इससे संबंधित शकुन विश्वसनीय और तत्काल प्रभावी होते हैं। आइये जानें उसकी विविध क्रियाओं के प्रतिफल कौओं के प्रकार: शकुनशास्त्र के अनुसार कौओं की पांच प्रजातियां मानी गई हैं- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र तथा अन्त्यज। 1. ब्राह्मण काक - जिस कौए का शरीर लंबा व भारी, लंबी चोंच, लंबा मुख, गंभीर शब्द और अत्यंत श्यामवर्ण होता है, वह ब्राह्मण काक कहा जाता है। 2. क्षत्रिय काक: पीले नेत्र, नीला मुख, श्याम तथा श्वेत वर्ण मिश्रित, रूखा शब्द बोलने वाला, अत्यंत शूर काक, क्षत्रिय काक कहा जाता है। 3. वैश्य काक: ऐसा कौआ कुछ श्वेत नीलवर्ण युक्त, श्वेत-श्याम चोंच वाला, अत्यंत रुखे शब्द से हीन होता है। 4. शूद्र काक: यह कौआ राख अर्थात् भस्म जैसे रंगवाला, बहुत कर्कश शब्द युक्त, कृशांग, चपल और अत्यधिक रूखा होता है। 5. अन्त्यज काक: रूखे शरीर और सूक्ष्म मुख वाला, निःशंक, लंबे कंधे, स्थिर मुख और शब्द वाला और स्थिर बुद्धि काक अन्त्यज कहा जाता है। काक-शकुन में मुख्य रूप से ब्राह्मण काक के अलावा श्याम कंठ वाले काक का भी शकुन ग्रहण किया जा सकता है। श्वेत काक से संबंधित शकुन निष्फल माने गए हैं। कौए से संबंधित शकुन: यात्रा के समय यदि कौआ मधुरवाणी बोलता हुआ दाहिनी तरफ से निकले और उसी तरफ से उड़ता हुआ निकल जाए तो सर्वार्थ सिद्धिप्रद होता है। यात्रा के लिए निकलते समय यदि कौआ सामने आ जाए तो उस समय यात्रा के लिए नहीं निकले अन्यथा कार्यसिद्धि नहीं होती है। मार्ग में जाते समय यदि काक तोरण पर बैठा हो तो भी मनोवांछित सिद्धि मिलती है। कौआ यदि भूमि को तोड़ता या खोदता हुआ दिखे तो भारी लाभ होता है। कांटोवाले वृक्ष पर बैठकर बार-बार बोलनेवाला कौआ क्लेशप्रद माना गया है, अतः यात्रा से बचना चाहिए। यदि पानी से भरे घड़े पर चढ़कर मृदु स्वर में कौआ बोले तो धन व उत्तम भोजन की प्राप्ति तथा प्रेमी का संयोग होता है। मार्ग में यात्रा के समय मस्तक पर कौआ बीट कर दे तो कष्ट और रोग होता है। कौआ यदि अपने चोंच में वस्त्र का टुकड़ा लेकर उड़ता दीखे तो लाभ होता है। सूर्योदय के समय यदि कौआंे का समूह एक साथ दिखे तो लाभ होता है। सूर्योदय के समय यदि कौओं का समूह एक साथ दिखे तो उस क्षेत्र में कष्टप्रद घटनाएं होती हैं। यही घटना दोपहर में हो तो भी कष्टकारक होता है। सायंकाल में या सूर्यास्त के समय कौओं का समूह आ जाए तो राजा अथवा चोरों से भय होता है। सूर्योदय के समय घर के सामने कौए का बोलना सम्मान, प्रतिष्ठा तथा धन में वृद्धि करनेवाला माना गया है। कौआ यदि सूखे वृक्ष पर बैठकर रुदन स्वर करे तो उस मौसम में वर्षा नहीं होती है। धूल में स्नान करता हुआ कौआ यदि जल में देखकर शब्द करे अथवा जल में स्नान कर भूमि को देखे तो भी अच्छी वर्षा होती है। यदि रात्रि काल में कौए के समूह ध्वनि करें तो उस क्षेत्र पर भारी विपत्ति आती है। घर के दरवाजे पर बैठकर यदि कौआ पंख फड़फड़ाए तो पांच दिन के अंदर अग्नि का उपद्रव होता है। मुख्य द्वार पर बैठकर मधुर आवाज में बोलनेवाला कौआ शांति और धन प्रदान करने वाला होता है। घर के आगे बैठकर, घर को देखता हुआ यदि कौआ क्रूर स्वर में बोले तो भी धन की हानि होती है। कौए का देह (मानव शरीर) पर बैठने संबंधी शकुन कौआ यदि घोड़ा, हाथी अथवा पुरुष के मस्तक पर बैठे तो उनका अवश्य नाश होता है। धनाढ्य के सिर पर बैठे तो धन का नाश, दाहिने कंधे पर मृत्यु, बाएं कंधे पर मानभंग, पीठ पर बैठने से शत्रु भय अथवा भाई का नाश। दाहिने पैर पर बैठे तो महान कष्ट होता है। बाएं चरण पर बैठता हो तो स्त्री तथा पुत्र का नाशक माना गया है। कौओं के घोंसलों की स्थिति तथा अंडों आदि की प्रकृति से संबंधित क्षेत्र के बारे में भी जाना जा सकता है। वैशाख मास में यदि कौए का घोंसला पूर्व दिशा की शाखा पर हो तो अच्छी वृष्टि, कुशलता, हर्ष, निरोगता तथा राष्ट्र का अभ्युदय। अग्निकोण में हो तो अल्पवृष्टि, चोरभय, अग्निभय, कलह तथा शत्रुओं द्वारा देशभंग का सूचक तथा वृक्ष की दक्षिण डाली पर हो तो अल्पवर्षा, हिमपात, रोगांे का प्रकोप, शत्रुओं से युद्ध तथा अव्यवस्था की स्थिति बनती है। र्नैत्यकोण में बना कौए का घोंसला आंधी, अल्पवृष्टि, उपद्रव, दुर्भिक्ष तथा युद्ध का सूचक होता है। पश्चिम दिशा में घोंसला हो तो समय पर वर्षा, लोक में नीरोगता, क्षेम, सुभिक्ष, संपदा की वृद्धि तथा मनुष्यों में हर्ष के योग बनते हैं। वायव्यकोण में स्थित कौए का घोंसला आंधी, अल्पवृष्टि, चूहों का उपद्रव, उद्वेग, पशुओं की हानि, अन्न का नाश तथा महाविरोध की स्थिति बनाता है। वृक्ष की उत्तर दिशा की शाखा पर बना घोंसला सुवृष्टि, क्षेम, सुभिक्ष, सौख्य, निरोगता, वृद्धि तथा समृद्धि का सूचक होता है। ईशान कोण में बना घोंसला भी कष्टसूचक होता है। कौए का घोंसला यदि वृक्ष की चोटी पर बना हो तो अति वर्षा। वृक्ष के मध्य भाग में मध्यम वर्षा का सूचक होता है। कौए के घोंसले का वृक्ष के बिल्कुल नीचे स्थित होना अल्प वृष्टि का सूचक है जिससे रोगों की वृद्धि तथा चोरों का उपद्रव भी होता है। उत्पात शांति: यदि कौए द्वारा किए गए किसी व्यवहार से अपशकुन की सूचना मिली हो तो निम्नलिखित उपाय करने चाहिए। उत्पात देखते ही तुरंत ही स्नान कर लें। सामथ्र्यानुसार दान दें। उस दिन उपवास रखें तथा इष्टदेव की पूजा अर्चना में व्यस्त रहें। रात्रि में पृथ्वी पर आसन बिछाकर शयन करें और प्रातःकाल उठकर स्नानोपरांत गायत्री मंत्र का 108 बार जप करें। शक्ति के अनुसार गुरुजनों को दान दें। ब्रह्मचर्य का पालन करें। कौओं को दही, चावल खाने के लिए दें। शनिवार को विशेषरूप से हवन, दान, वस्त्र दान और अनुमत तीर्थ में स्नानादि करें। काक द्वारा शुभाशुभ ज्ञान: एक प्रयोग अष्टमी तथा चतुर्दशी तिथि को अपने घर के समीप स्थित किसी ऐसे वट वृक्ष को चुनंे जहां कौओं का निवास हो। इसका अवश्य ध्यान रखें कि वह वटवृक्ष आपके घर से दक्षिण दिशा की ओर ना हो। इसी तिथि को सायंकाल में इस वटवृक्ष के पास जाएं और उस पर रहने वाले कौओं को न्योता दें। प्रातःकाल उस वृक्ष के नीचे के स्थान को साफ-सुथरा कर गाय के गोबर से लीप देना चाहिए। इसके बाद चैकोर मंडल बनाकर ब्रह्मा, विष्णु और सूर्य भगवान के पंचोपचार पूजन के बाद वृक्ष के कौओं का आवाह्न करना चाहिए। कौओं को देने के लिए घी, दही, चावल, गुड़ आदि को मिलाकर एक ढेर बनाएं और इन मंत्रों से कौओं के लिए यह बलि (भोजन) रख दें - ऊँ इन्द्राय नमः। ऊँ यमाय नमः । ऊँ वरुणाय नमः। ऊँ धनदाय नमः । ऊँ भूतनाथाय नमः। वायस बलिजं गृहण्तु में स्वाहा। बलि की सामग्री को वहीं छोड़कर आ जाएं तथा छिप कर देखें कि कौए ने किस दिशा से बलि को खाना प्रारंभ किया था। विभिन्न दिशाओं से संबंधित फल इस प्रकार होते हैं। पूर्व-चित्त की शांति और सुख में वृद्धि। आग्नेय कोण- अग्नि भय। दक्षिण- अन्न तथा धन का नाश। र्नैत्य कोण- धन लाभ। पश्चिम - इच्छित धन की प्राप्ति वायव्य कोण - अल्प वृष्टि। उत्तर - सुख, आरोग्य तथा इच्छित धन की प्राप्ति। ईशान कोण - अभीष्ट लाभ। चारों तरफ से कौए एक साथ खाने लगें तो कार्य का फल मिश्रित। यदि बलि हेतु प्रदत्त पिंड को न खाए, बल्कि इधर-उधर बिखेर दें तो भयोत्पादक स्थिति होती है। काक-शकुन से संबंधित फल कब? विप्र काक द्वारा किए गए शकुन का फल तत्काल मिलता है। क्षत्रिय काक तीन दिन में फल देता है। शूद्र काक दस दिनों में फल देता है। अन्त्यज काक पंद्रह दिनों में फल देता है।