क्या हैं शकुन पर तुलसी के विचार नवीन राहुजा ज्योतिष शास्त्र का एक बहुत बड़ा महत्त्वपूर्ण अंग है- शकुन शास्त्र। हमारे शास्त्रों में गणित ज्योतिष के अठारह (18) और शकुन के दस (10) आचार्य माने गए हैं। शकुन शास्त्र का विवेचन तो हमारे समस्त आर्य ग्रंथों में भी हुआ है। हमारे शास्त्रों के अनुसार, शकुन शास्त्र के आदि आचार्य भगवान शंकर ही माने गये हैं। शकुन शास्त्र के गहन अध्ययन से अवगत होता है कि आचार्यों ने प्रारंभ में मानव जाति के शुभ और अशुभ विचार के लिए शकुन के द्वारा ही फल-विचार आरंभ किया और इसीलिए उस विचार को शकुन विचार कहा जाने लगा। शकुन विचार हमारे देश में ही नहीं, विदेशों में भी बहुत प्रचलित हैं। समस्त एशिया और यूरोप में तो शकुन विचार बहुत प्रचलित और माने जाते हैं। मानस के रचयिता संत तुलसीदास जी ने तो ग्रंथ के आरंभ में ही लिख दिया है, ‘‘नाना पुराण निगमागम सम्मतं यद् रामायणे निगदितं क्वचिदन्यतोऽपि’’ में कई शास्त्र और पुराण आदि आ जाते हैं। शकुन विचार में तुलसीदासजी ने आदि कवि ‘बाल्मीकि लिखित रामायण’ का पूरा सहारा लिया है। महाकाव्य ‘पद्मावत’ के रचयिता श्री मलिक मुहम्मद जायसी ने भी शकुन विचार को प्रथम स्थान दिया है। संत कवि तुलसीदासजी तो शकुन विचार से बहुत ही प्रभावित थे और उसमें पूर्णतः विश्वास भी करते थे। संत कवि तुलसीदासजी के अनुसार शकुन तीन प्रकार के होते हैं। 1. क्षैत्रिक शकुन 2. आर्थिक शकुन 3. आगन्तुक शकुन क्षैत्रिक शकुन- वह है, जो पूर्व योजना के अनुसार देखा जाए। आर्थिक शकुन - वह है जो यात्रा के समय बायें या दायें अचानक उपस्थित हो जाए। आगन्तुक शकुन: वह है, जो यात्रा के समय अपने आप ही उपस्थित हो जाए। क्षैत्रिक शकुन, हमेशा राजा-महाराजाओं की यात्रा में पूर्व योजना के अनुसार उपस्थित किए जाते थे। संत कवि तुलसीदासजी ने तीनों प्रकार के शकुनों को उपस्थित किया है। ये तीनों प्रकार के शकुन श्रीराम की यात्रा में भी उपस्थित हुए थे। भगवान श्रीराम की बारात चलने को थी और ये तीनों प्रकार के शकुन अपने आप उपस्थित हुए थे। संत कवि तुलसीदास ने तीनों शकुनों को एक ही स्थल पर दिया है, कुछ इस प्रकार से - बनइ न बरनत बनी बराता। होइ सगुन सुंदर शुभदाता।। चारा चाषु बाम दिसि लेई। मनहु सकल मंगल कहि, देई।। दाहिन काग सुखेत सुहावा। नकुल दरसु सब काहू पावा।। सानुकूल बह त्रिविध बयारी। सघट सबाल आव नर नारी।। लोवा फिरि फिरि दरस दिखावा। सुरभी सनमुख सिसुहि पिआवा।। मृगमाला दाहिन दिसि आई। मंगल गन जनु दीन्ह दिखाई। छेम करि कंह छेम विसेषी।। स्यामा नाम सुतरू पर देखी। सनमुख आयउ दधि अरु मीना।। कर पुस्तक दुइ विप्र प्रवीना। मंगलमय कल्याण मय, अभिमत फल दातार। जनु सब साचे होन हित भये सगुन एक बार।।’’ अतः महाकवि तुलसीदासजी ने एक ही बार समस्त प्रकार के शकुनों को एक ही स्थान पर उपस्थित कर दिया। इस प्रकार महाकवि तुलसीदासजी के अनुसार यहां पर तीनों प्रकार के शकुन आ जाते हैं।