विवाह के विषय में जानना इतना आसान नहीं क्योंकि विवाह हमारे सोलह संस्कारों में एक मुख्य संस्कार है। हमारे ज्योतिष शास्त्र में विवाह के विषय में अनेक ग्रन्थ मिलते है। ज्योतिष शास्त्र ऐसा शास्त्र है जिससे हर विषय की सटीक जानकारियां उपलब्ध होती हैं। हमारे ज्योतिष में 27 नक्षत्र, 9 ग्रह एवं 12 राशियां अपने समय के अनुसार अच्छा एवं बुरा फल देने में समर्थ होते हैं।
आजकल प्रत्येक नौजवान युवक युवतियों में विवाह को लेकर आशाएं होती हैं कि हमारा विवाह सही जगह में होगा तथा जीवन सुखमय व्यतीत होगा। परन्तु इसके विपरीत होने से सारे सपने टूट जाते हैं। वर्तमान समय में लड़के लड़कियां उच्च शिक्षा एवं अच्छा करियर बनाने के चक्कर में विवाह योगों को दरकिनार कर देते हैं जिससे विवाह में बहुत ही विलम्ब हो जाता है एवं माता-पिता एवं परिवार की चिन्ता का कारण बनता है और विवाह सही जगह नहीं हो पाता है। अगर होता भी है तो हमने जो सपने देखे थे पूरे नहीं होते। इसके लिए हमें ज्योतिष के द्वारा बने योगों का सदुपयोग करके जीवन को सार्थक बनाना चाहिए क्योंकि जीवनसाथी के द्वारा ही सुख दुःख का अनुभव कर सकते हैं।
ज्योतिष के द्वारा विवाह योग जानने के लिए सबसे पहले समझें कौन से भाव से विवाह होता है और किस भाव से विवाह योग बनते-बिगड़ते हैं-
- सप्तम भाव से पति/पत्नी का विचार करना चाहिए।
- अगर कुण्डली का सप्तम भाव क्षीण हो या कमजोर हो तो एकांगी जीवन का द्योतक है।
- विचार करने से पहले कुण्डली का गहन अध्ययन अवश्य करें-
सप्तम भाव (विवाह भाव)
सप्तम भाव में बैठे ग्रह
सप्तम भाव में ग्रहों की दृष्टियां
सप्तम भाव का स्वामी जहां बैठा हो उस जगह की स्थिति को समझें
सप्तम एवं सप्तमेश की स्थिति-
सप्तमेश और अन्य ग्रहों का आपसी सम्बन्ध सप्तमेश ग्रह की दशा अन्तर्दशा प्रत्यन्तर्दशा आदि का विशेष सावधानी से अध्ययन करने के पश्चात विवाह आदि का निर्णय करना सही होगा।
सप्तम भाव से विचार-
प्रायः सप्तम भाव से पत्नी या पति का विचार किया जाता है। मुख्यतः पत्नी का स्वभाव, सच्चरित्रता, पति व्रत, पत्नी आयु, एक विवाह या बहु विवाह योग, पति पत्नी का सम्बन्ध, ससुराल से धन प्राप्ति योग, यात्रा या विदेश यात्रा का योग, पुत्रों के माता से सम्बन्ध रखने वाला तथा मारकेश का विचार किया जाता है।
सप्तम भाव में राशियों का फल-
1. सप्तम भाव में मेष राशि हो तो व्यक्ति क्रोधी, हठी तथा अपना काम बनाने वाला होता है तथा पति-पत्नी आदि में कलह होता है।
2. वृष राशि सप्तम भाव में हो तो व्यक्ति की पत्नी सुन्दर-सुशील एवं धैर्यशील, अपने में अभिमान करने वाली होती है।
3. मिथुन राशि सप्तम भाव में हो तो उसकी पत्नी मध्यम, उत्तम विचार वाली एवं मनमोहक होती है।
4. कर्क राशि सप्तम में हो तो स्त्री अत्यन्त सुन्दर, मधुर स्वभाव, सहज एवं सब का मन मोह लेने वाली अत्यन्त भावुक होती है।
5. सिंह राशि सप्तम भाव में हो तो क्रोधी स्वभाव की पत्नी साथ ही तनाव देने वाली तथा अपनी बातो को मनवाने वाली, क्रोधी, कलह करने वाली होती है, परन्तु मस्तिष्क की बहुत तेज एवं बुद्धिमान होती है।
6. कन्या राशि सप्तम भाव में हो तो सुन्दर-सुशील, लज्जाशील, मधुरभाषी , सौभाग्य युक्त और सम्पत्ति को बढ़ाने वाली पत्नी प्राप्त होती है। सन्तान पक्ष को लेकर चिन्ता रहती है। लेकिन चिन्ताओं से मुक्त होकर अपने पति को मार्ग दिखाने वाली होती है।
7. जिसकी कुण्डली के सप्तम भाव में तुला राशि हो उसे सुन्दर-सुशील, उच्च शिक्षा युक्त, धार्मिक कार्यों में रुचि रखने वाली, साहसी, सौन्दर्य प्रिय तथा आभूषण प्रिय पत्नी प्राप्त होती है तथा उसे सजावट एवं साफ-सुथरा अत्यन्त प्रिय होता है साथ ही वह उदारवादी प्रवृत्ति की भी होती है।
8. जिसकी कुण्डली के सप्तम भाव में वृश्चिक राशि हो तो वह अधूरी शिक्षा, भाग्यहीनता, बाल्यावस्था से ही कठोर परिश्रम, हर क्षेत्र में असफलता, ससुराल पक्ष कमजोर, हीन भावना आदि से ग्रसित होता है।
9. जिसकी कुण्डली के सप्तम भाव में धनु राशि हो तो वह अहंकारी, सम्मान पाने के लिए कुछ भी करने वाली, सुन्दर तथा अल्प शिक्षा से युक्त परन्तु कला आदि में रुचि रखने वाली होती है और उसे ससुराल पक्ष से जीवन में सहयोग प्राप्त होता है।
10. जिसकी कुण्डली में सप्तम भाव में मकर राशि हो उसकी स्त्री अल्प शिक्षित, शृंगार आदि में समय व्यर्थ करने वाली, क्रोधी, तंत्र-मंत्र टोटके आदि में विश्वास रखने वाली, किसी भी प्रकार का व्यंग्य न सहने वाली,अपनी बातें दूसरों के ऊपर थोपने वाली होती है तथा वह ईष्र्या करने में भी पीछे नहीं रहती।
11. जिसकी कुण्डली के सप्तम भाव में कुम्भ राशि हो तो स्त्री संघर्ष करते हुए विपत्तियों से लड़ने वाली, दृढ़ता से हर कार्य करने वाली, ईश्वर में आस्था रखने वाली, पुण्य कार्यों में रुचि रखने वाली परन्तु अंहकार की भावना रखने वाली होती है और अपने यश एवं प्रतिष्ठा के लिए प्रयत्न करती रहती है। उसको चाहिए कि लोग उसकी बड़ाई व प्रशंसा करते रहें। ऐसे व्यक्ति झूठी शान में जीवन यापन करते रहते हैं।
12. जिसकी कुण्डली में सप्तम भाव में मीन राशि हो तो स्त्री धर्म से युक्त, दान-पुण्य देने में विश्वास रखने वाली, भगवान में अटूट श्रद्धा रखने वाली, जीवन में अनेक कठिनाइयों से लड़ने वाली, चंचल स्वभाव तथा तुरन्त उत्तर देने में सक्षम होती है।
अभी ऊपर आपने विभिन्न राशियों में सप्तम भाव को समझा और फल कथन की प्रक्रिया देखी। अक्सर देखा गया है कि सप्तम भाव में विवाह में बाधा अत्यधिक देखी जाती है क्योंकि विवाह समय से न होने पर हमें बाधा (कष्टों) का सामना करना पड़ता है।
अब हम कुछ योगों के बारे में चर्चा करेंगे जो सप्तम भाव में विवाह में बाधा उत्पन्न करते हैं-
- सप्तम भाव, सप्तमेश और वर्तमान दशा इन विषयों का हमें अवश्य अध्ययन करना चाहिए।
- यदि सप्तम भाव में राहु है तो विवाह सुख कमजोर होता है।
- यदि सप्तम भाव में पूर्ण शनि की दृष्टि हो तो विवाह ही कठिनाइयों के बाद होता है और दाम्पत्य जीवन बहुत ही क्लेश पूर्ण रहता है।
- यदि सप्तम भाव में मंगल की दृष्टि हो तो स्त्री क्रोधी तथा दोनों का जीवन परस्पर बिखरा हुआ होता है।
- राहु, मंगल, शनि, विच्छेद कारक ग्रह हैं। इन ग्रहों की जहां भी दृष्टि होती है उस जगह/भाव, व्यक्ति को विच्छेद प्रदान करते हैं।
- मंगल अग्निकारक ग्रह है इसकी दृष्टि जहां भी होगी वहां सब कुछ समाप्त होने की सम्भावना होती है। मंगल का अग्नि तत्व प्रभाव सप्तम भाव में दृष्टिगत होना दोनों के दाम्पत्य एवं विवाह में बाधक हैं तथा दाम्पत्य जीवन कलह पूर्ण होता है।
- यदि सप्तम भाव में अकेला शुक्र हो तो उस व्यक्ति का गृहस्थ जीवन सुखी नहीं रहता और पति-पत्नी में परस्पर अनबन रहती है।
- यदि मंगल चतुर्थ, सप्तम एवं दशम भाव में हो ता उसका दाम्पत्य जीवन कलहपूर्ण होता है।
- यदि शनि एवं राहु सप्तम भाव में बैठे हों तो पति-पत्नी में विच्छेद होने की सम्भावना रहती है।
उदाहरण 1 कुछ जातकों की कुण्डली का अध्ययन किया गया जिनका दाम्पत्य जीवन दुःखमय एवं कांटों से भरा रहा। उनकी कुण्डलियां निम्न प्रेषित की गईं हैं-
वर्तमान महादशा- वर्तमान में शनि की महादशा चल रही है जो कि 19.04.2006 से 19.04.2025 तक रहेगी। उपर्युक्त जन्म कुण्डली का अध्ययन किया जो एक महिला जातक की है। लग्न में कर्क राशि तथा सप्तम भाव में मकर राशि का होना एवं सप्तम भाव में राहु का होना विवाह में अनेक बाधा दर्शाता है तथा कई जगह से धोखे भी दर्शाता है परन्तु जातक अपनी बात रखने में भी सक्षम है।
मकर राशि का सप्तम भाव में होना, शनि का सप्तमेश होना तथा अग्नि तत्व ग्रह मंगल के साथ एकादश भाव में युति होना दर्शाता है कि जातिका अत्यन्त क्रोधी एवं हठी स्वभाव की होने के कारण विवाह में बार-बार बाधा उत्पन्न करती होगी क्योंकि राहु भ्रमित करता है जिससे रिश्ते पसंद नहीं आते और लव मैरिज भी कामयाब नहीं होने देते हैं। गुरु पर मंगल की दृष्टि षष्ठ भाव में पड़ रही है।
जातक की कुण्डली में नवांश में चन्द्र के सूर्य के होने से नीच होने से तथा सप्तम भाव में अलगाववादी ग्रह विवाह तो विलम्ब से हुआ साथ ही दाम्पत्य जीवन भी सफल नहीं रहा। इसके बाद दूसरा विवाह हुआ उसमें भी कलह पूर्ण जीवन व्यतीत करना पड़ रहा है अतः हमें पूर्ण अध्ययन के बाद ही विवाह का निर्णय करना चाहिए।
उदाहरण 2 अब हम पुरुष की कुण्डली का अध्ययन कर रहे हैं। वर्तमान दशा शनि की चल रही है जो कि 1.12.2007 से 19.05.2024 तक है।
कुण्डली मेष लग्न की है जिसमें स्वयं शनि बैठा है और सप्तम भाव में पूर्ण सातवीं दृष्टि डाल रहा है तथा सातवें भाव में तुला राशि है जिसका स्वामी शुक्र है। सप्तमेश शुक्र लाभ स्थान में चन्द्र के साथ बैठा है।
शनि का लग्न में ही नीच का होना।
सप्तम भाव में पूर्ण दृष्टि होना।
सप्तमेश का शनि की राशि में होना।
कर्मेश एकादशेश पर शनि का आधिपत्य होना।
अपने भाव को शनि का देखना।
नवांश कुण्डली में भी शनि का लग्न में होना।
लग्न से सप्तम भाव को देखना।
सप्तमेश शुक्र का द्वादश भाव में बैठना।
वृष राशि का सप्तम भाव में होना। सूर्य + राहु का योग होना।
शनि द्वारा विवाह भाव का खराब होना तथा विवाह कारक ग्रह शुक्र पर दृष्टि होने से जातक को दाम्पत्य जीवन में अत्यन्त संघर्ष करना पड़ा। विवाह विलम्ब से हुआ। कई रिश्ते देखने के बाद हुआ। पत्नी द्वारा सारे घर का वातावरण खराब होना, माता-पिता को प्रताड़ना देना, स्वयं सारा दिन क्लेश में जीवन व्यतीत करना, यहां तक कि दहेज उत्पीड़न के झूठे केस के कारण जेल भी जाना पड़ा। न तो तलाक हो पा रहा है और न ही दाम्पत्य जीवन का सुख मिल रहा है।
दोनों अगल-अलग रह रहे हैं। इस तरह हमें दोनों कुण्डलियों का अध्ययन करने से पता चला कि विवाह में सप्तम का प्रभाव अत्यन्त महत्वपूर्ण है जो कि हम अनदेखा नहीं कर सकते क्योंकि सप्तम भाव से हमारे जीवन में सांसारिक सुखों की प्राप्ति होती है। अब हम सप्तम भाव में कौन ग्रह कौन सा फल देगा जानने की कोशिश करते हैं।
- अगर सप्तम भाव में सूर्य बैठा हो तो स्त्रियों द्वारा तिरस्कार और स्त्री इसको नजर से भी नहीं देखना चाहती क्योंकि स्त्री इसको घृणा की दृष्टि से देखती है
आचार्य वाराहमिहिर जी ने कहा है-
‘‘स्त्रीभिः गतः परिभवं मदगे पतंगे’’
चन्द्र फल सप्तम भाव में-
चन्द्रे तु सप्तमे चाते दुःखी कुष्ठी च वंचकः कृपणो बहु वैरीच जापते परदायकः
उपरोक्त श्लोक के अनुसार यदि सप्तम में चन्द्र हो तो मनुष्य दुःखी, कोढ़ी, ठग, कंजूस, बहुत शत्रुओं से युक्त तथा परस्त्री पर नजर रखने वाला होता है
मंगल फल सप्तम भाव में-
स्त्रियां दार मरणं नीच सेवनं नीच स्त्री संगम। कुजोके सुस्तनर कठिनीहर्व कुचा।।
पराशर जी के अनुसार सप्तम भाव में मंगल हो तो पत्नी की मृत्यु हो जाती है एवं जातक नीच स्त्रियों के साथ काम वासना की तृप्ति करता है।
बुध फल सप्तम भाव में-
बुधो वहु पुत्र युक्तो रूपान्विता जन मनोहर रूपशीलम्। वशिष्ठ जी के अनुसार जिसके सप्तम भाव में बुध हो तो वह सुन्दर एवं सुशील, शीलवान बहुत पुत्रों से युत, परन्तु शारीरिक रूप से पीड़ित होती है।
गुरु फल सप्तम भाव में-
युवति मन्दिरगे सुर याजके नयति भूपति तुल्य सुखंजनः।
अमृत राशि समान वचाः सुधीः मवतिचारुवपुः प्रिय दर्शनः।।
नसागर के अनुसार सप्तम में गुरु बैठा हो तो राजा के समान सुखी, वाणी में मधुरता और सुन्दर, सबसे मिलकर रहने वाला सभी का प्रिय होता है।
शुक्र फलम् सप्तम भाव में-
सप्तमे भृगु पुत्रेच धनी दिव्यांगना युतः।
नीरोग! सुख सम्पन्नों बहु भाग्यः पुजायते।।
काशीनाथ जी के अनुसार सप्तम भाव में शुक्र हो तो जातक धनी, सुन्दरी, उत्तम स्त्री से युत, नीरोग, सुख सम्पन्न, भाग्यशील होती है।
शनि फल सप्तम भाव में-
कामस्थे रबिजे कुदार नीयते, निःस्वोऽहवगो विह्वलः।
मंत्रेश्वर के अनुसार सप्तम भाव का शनि अच्छा नहीं होता है क्योंकि पत्नी सही नहीं होती है
सप्तम भाव में राहु फलम्-
गर्बीजार शिख मणिः फणि पतौ कामस्थितो रोगवान।
वैद्यनाथ के अनुसार सप्तम में राहु हो तो मनुष्य गविष्ठ, व्यभिचारी और रोगी होता है। अपने आप में ही मस्त रहता है। सप्तम का राहु पत्नी का वियोग भी करवाता है और अपनों से दूरियां उत्पन्न कराता है तथा वात आदि रोगों से भी पीड़ित रहता है।
केतु फल सप्तम् भाव में-
शिखी सप्तमे मार्गतः चितवृत्तिं सदा वित्त नाशोऽथवा रातिभूतः।
मवंत् कीटगे सर्वदा लाभकारी कलत्रादि पीड़ा व्ययो व्यग्रताच।।
- ढुण्ढि राज के अनुसार सप्तम में केतु हो तो मनुष्य सदा चिन्तित रहता है। शत्रु द्वारा हमेशा पीड़ा प्राप्त करता है। विवाह के बाद दाम्पत्य जीवन भी सफल नहीं होता और कलह पूर्ण जीवन व्यतीत करना पड़ता है।
इस तरह से हम सप्तम भाव में ग्रहों द्वारा फल को समझ सकते हैं। सप्तम भाव में अनेक प्रकार की भ्रान्तियां पायीं जाती हैं क्योंकि हमारे हर ऋषि का अपना मत है। सप्तम भाव को समझने के लिए और गूढ़ अध्ययन की आवश्यकता है।