भारत के ज्योतिष जगत में काल सर्प योग हर आम एवं खास व्यक्ति की जुबान पर है। इस योग के पक्षधर विद्वानों के अनुसार यह योग जिस जातक की कुंडली में होता है, उसके जीवन में पग-पग पर बाधाएं आती हैं। विशेष कर राहु एवं केतु की दशा/अंतर्दशा के समय में जातक आर्थिक, व्यावसायिक एवं मानसिक उलझनों से निकल नहीं पाता बहुधा दीनता या हीनता का शिकार हो जाता है।
इस प्रकार व्यक्ति की कुंडली में राहु एवं केतु के मध्य सभी ग्रहों की स्थितिवश बनने वाले इस काल सर्प योग का एक चैतरफा हौआ बना हुआ है। कुछ विचारणीय तथ्य इस योग से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण तथ्य यहां प्रस्तुत हैं। वैदिक ज्योतिष के प्रायः सभी शास्त्रीय ग्रंथों का अध्ययन करने से जो तथ्य सामने आये, उनमें से कुछ यहां प्रस्तुत हैं।
बृहद् पाराशर होरा शास्त्र, जैमिनी सूत्र, बृहज्जातक, सारावली, जातकाभरण, दैवज्ञाभरण, फलदीपिका, प्रश्न मार्ग, कृष्णीयम्, माधवीयम् एवं मानसागरी जैसे होराशास्त्र के मानक या निबंध ग्रंथों में कालसर्प योग की चर्चा नहीं मिलती। राहु एवं केतु दोनों छाया ग्रह हैं और ये एक दूसरे से सातवें भाव में स्थित होते हैं।
इसलिए यदि सभी ग्रह राहु एवं केतु के मध्य में होंगे, तो किसी न किसी भाव में दो या दो से अधिक ग्रह रहेंगे। इस स्थिति में यदि केंद्र में राहु या केतु त्रिकोणेश के साथ हो अथवा त्रिकोण में स्थित राहु या केतु केन्द्रेश के साथ हो, तो वह महिर्षि पराशर के अनुसार योग कारक होगा।
तब इसी स्थिति में बनने वाले काल सर्प योग का फल क्या होगा? महर्षि पराशर के अलावा होराशास्त्र के अधिकांश आचार्यों न े कडंु ली क े भाव 3, 6 एव ं 11 मंे राहु को अरिष्ट नाशक बतलाया है। इस स्थिति में इन भावों में स्थित राहु से बनने वाला यह काल सर्प योग अरिष्टनाशक होगा या अरिष्टदायक? गत वर्ष दिनांक 15 नवंबर 2006 से दिनांक 28 नवंबर 2006 तक सभी ग्रह गोचर क्रम से राहु एवं केतु के मध्य स्थित थे।
इन 14 दिनों में उत्पन्न सभी बालकों की कुंडली में यह योग मिलता है। क्या इन सभी बालकों पर इस योग का दुष्प्रभाव पड़ेगा। क्या राहु एवं केतु के मध्य स्थित ग्रह अपना शुभ या अशुभ प्रभाव देंगे अथवा उनका प्रभाव एवं फल लुप्त हो जाएगा? वह कौन सा कारण है जिसने काल सर्प योग होने पर भी पंडित जवाहर लाल नेहरू, लता मंगेशकर, सचिन तेंदुलकर एवं अभिजित सावंत जैसे लोगों को जीवन में अपने क्षेत्र में नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया।
काल सर्प योग की शांति वस्तुतः आज जैसी भ्रमपूर्ण स्थिति काल सर्प योग की है, लगभग वैसी ही स्थिति इसकी शांति के विधि-विधान की भी है। ज्योतिष एवं धर्म शास्त्र के ग्रंथों के अनुसार किसी ग्रह या ग्रहों के योग की शांति के लिए उस ग्रह तथा उसके अधिदेवता एवं प्रत्यधिदेवता का पूजन, हवन तथा उसके मंत्र का जप किया जाता है जबकि काल सर्प की शांति के प्रचलित सभी विधानों में ऐसा न होकर नाग एवं भगवान शिव की पूजा की जाती है।
काल सर्प शांति का मंत्र काल सर्प योग की शांति का मंत्र इस प्रकार है। मंत्र:
ॐ क्रों नमो अस्तु सर्पेभ्यो काल सर्प शांतिं कुरु ;कुरुद्ध स्वाहा।
विनियोग अस्य श्री काल सर्प शांति मंत्रास्य कण्वट्टषिः बृहतीछन्द,
श्री महाकालोदेवता क्रों बीजं, स्वाहा शक्तिः, ममाभीष्टसि(ये जपे विनियोगः।
द्दष्यादिन्यास कण्वाय ट्टषये नमः, शिरसि।
बृहती छन्दसे नमः, मुखे।
महाकाल देवतायै नमः, हृदि।
क्रों बीजाय नमः, गुह्ये। स्वाहा शक्तये नमः पादयोः।
करन्यास क्रों अंगुष्ठाभ्यां नमः।
नमो अस्तु तर्जनीभ्यां नमः।
सर्पेभ्यो मध्यमाभ्यां नमः।
काल सर्प शांतिं अनामिकाभ्यां नमः।
कुरु कुरु कनिष्ठिकाभ्यां नम।
स्वाहा करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः।
अंगन्यास क्रों हृदयाय नमः।
नमो अस्तु शिरसे स्वाहा।
सर्पेभ्यो शिखायै वषट्।
काल सर्प शांतिं कवचाय हुम्। कुरु कुरु नेत्रात्रायाय वौषट्।
स्वाहा अस्त्राय पफट्।
ध्यान:
कैलासाचलसं िस् थ् ातं त्रि ानयनं पंचास्यमम्बायुतं,
नीलग्रीवमहीश भूषण धरं व्याघ्रत्वचा प्रावृतम्।
अक्षस्रग्वरकुण्डिका भयकरं चान्द्रीं कलां बिभ्रतं,
गंगाभ्यो विलसज्जं दशभुजं वन्दे महेशं परम्।।
विधि: शुभ मुहूर्त में नित्य नियम से निवृत्त हो शुद्ध/रेशमी वस्त्र धारण कर भस्म का त्रिपुंड लगाकर आसन पर पूर्वाभिमुख बैठकर मार्जन, आचमन एवं प्राणायाम कर विधिवत विनियोग, न्यास एवं ध्यान कर भोजपत्र पर चमेली की कलम एवं अष्टगंध से काल सर्प यंत्र लिखकर उस पर भगवान महाकाल का पंचोपचार या षोडशोपचार से पूजन कर उक्त मंत्र का सवा लाख जप करना चाहिए।
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