भविष्य में होने वाली घटनाओं को जानने की जिज्ञासा सभी की होती है। कौन सी घटना कब घटेगी यदि इसका सही समय पता लग जाए तो समयचक्र की गति से व्यक्ति का तादात्म्य बन जाए। इस बार के जिज्ञासा समाधान में घटना काल निर्धारण के महत्वपूर्ण बिंदुओं पर प्रकाश डाला जा रहा है...
प्रश्न: क्या ज्योतिष किसी घटना के समय को जानने में सहायक हो सकता है?
उत्तर: यदि कुंडली का अध्ययन ज्योतिषीय नियमों के आधार पर किया जाए, तो ज्योतिष से जातक के जीवन में होने वाली हर घटना के समय को जाना जा सकता है।
प्रश्न: ऐसे कौन से ज्योतिषीय नियम हैं जो घटना के समय को जानने में सहायक होते हैं?
उत्तर: घटना के समय को जानने के लिए इन बिंदुओं पर ध्यान दें- घटना का संबंध किस भाव से है, भाव का कारक ग्रह कौन है, स्वामी ग्रह कौन है, भाव में स्थित ग्रह, युति एवं भाव पर ग्रह की दृष्टि। कौन सी महादशा अंतर्दशा, प्रत्यंतर्दशा, सूक्ष्म एवं प्राण दशा चल रही है। भाव को प्रभावित करने वाले ग्रहों की गोचर स्थिति। इन सभी का ध्यानपूर्वक अध्ययन करने पर किसी भी घटना का समय जाना जा सकता है।
प्रश्न: किसी जातक की शादी के समय को जानने के लिए कुंडली का अध्ययन कैसे करें?
उत्तर: विवाह-शादी का संबंध कुंडली में सप्तम भाव के होता है। इसलिए सप्तम भाव के स्वामी, स्प्तम भाव के कारक अर्थात विवाह के कारक (स्त्री के लिए गुरु और पुरुष क े लिए शुक्र), सप्तम भाव म ंे बैठ े ग्रह, सप्तम भाव पर दृष्टि रखने वाले ग्रह, इन सभी के अंशों तक अध्ययन करें अर्थात सप्तम भाव मध्य कितने अंशों पर है। सप्तम भाव में बैठे ग्रह अष्टम भाव मध्य के कितने करीब हैं। सप्तम भाव और सप्तम भाव में बैठे ग्रह पर किस ग्रह की दृष्टि कितने अंशों तक है।
सप्तम भाव मध्य अंशों के जो ग्रह करीब होता है वही विवाह करवाने में सहायक होता है- यदि वह ग्रह शुभ हो। यदि सप्तम भाव में कोई ग्रह नहीं है तो उस पर ग्रहों की दृष्टि देखें। जो ग्रह भाव मध्य के अंशों पर दृष्टि डालेगा वह विवाह में सहायक होगा। यदि सप्तम भाव पर किसी ग्रह की दृष्टि न हो तो सप्तमेश की स्थिति देखें।
सप्तमेश किस भाव में कितने अंशों पर है और सप्तमेश पर किस-किस ग्रह की दृष्टि है। यदि सप्तमेश पर शुभ ग्रहों की दृष्टि होगी और सप्तमेश सप्तम भाव मध्य के अंश बराबर या करीब-करीब बराबर हो तो सप्तमेश विवाह करवाने में सहायक होता है।
जो भी ग्रह विवाह करवाने में सहायक हो यदि उसकी महादशा या अंतर्दशा चल रही हो तो उसी दशा में विवाह होगा लेकिन दशा स्वामी की गोचर स्थिति विवाह का समय बताएगी गोचर में दशा स्वामी सप्तम भाव मध्य पर गोचर करे या पूर्ण दृष्टि डाले तब विवाह होगा। अर्थात विवाह का समय विवाह में सहायक ग्रह, उसकी दशांतर्दशा एवं गोचर पर निर्भर करता है।
प्रश्न: जिन जातकों का विवाह नहीं होता क्या उनके लिए कोई ग्रह सहायक नहीं होता?
उत्तर: कोई न कोई ग्रह तो विवाह में अवश्य सहायक होता है। सर्वदा विवाह के लिए सप्तमेश सहायक होता ही है। लेकिन जब तक संबंधित ग्रह की दशा अंतर्दशादि न आए और गोचर में ग्रह सप्तम भाव को प्रभावित न करें, तब तक विवाह नहीं होता अर्थात जब दशा-अंतर्दशा चल रही हो और गोचर प्रतिकूल हो, तो विवाह नहीं होता और यदि गोचर अनुकूल हो और दशा-अंतर्दशा संबंधित ग्रह की चल रही हो तो भी विवाह नहीं होता है। संबंधित ग्रह की दशा-अंतर्दशा और गोचर जब दोनों प्रतिकूल होंगे। विवाह तभी होगा अन्यथा नहीं। ऐसी स्थिति कभी-कभी बड़ी आयु में भी आती है तो बड़ी आयु में विवाह घटित होता है। यदि ऐसी स्थिति जीवन में नहीं आती तो विवाह घटित होता ही नहीं। सूक्ष्मता से अध्ययन करें तो यह सब जाना जा सकता है।
प्रश्न: क्या किसी जातक के साथ होने वाली दुर्घटना का पूर्व समय बताया जा सकता है?
उत्तर: हां, ठीक उसी तरह जिस तरह विवाह घटित होने का समय बताया जा सकता है। दुर्घटना का संबंध लग्न और लग्नेश से विशेष रहता है क्योंकि लग्न जातक के स्वयं का नेतृत्व करता है। कष्ट जातक को होगा जब भी दुर्घटना घटित होगी। इसलिए लग्नेश को अधिक महत्व देते हैं। लग्न में स्थित शुभ ग्रह लग्न की सुरक्षा करते हैं। अशुभ ग्रह हानि पहुंचाते हैं। इसी प्रकार लग्नेश के साथ स्थित और दृष्टि देने वाले शुभ ग्रह लग्नेश की करते हैं सुरक्षा और अशुभ ग्रह हानि पहुंचाते हैं। लग्न और लग्नेश की स्थिति जातक के व्यक्तिगत रूप को निश्चित करती है। अकारक ग्रह या मारक ग्रह जब भी लग्न या लग्नेश पर गोचर करता है और इन्हीं की यदि दशा-अंतर्दशा चल रही हो, तो जातक को शारीरिक कष्ट होता है। जिससे जीवन समाप्त भी हो सकता है। लेकिन यदि यह ग्रह मंगल से भी प्रभावित हो तो जातक को दुर्घटना में अधिक चोट आती या रक्त भी बहता है। दुर्घटना का समय संबंधित ग्रहों के अंशों पर निर्भर करता है। जब ग्रह का गोचर उतने ही अंशों पर आए जितने अंशों पर ग्रह या लग्न है वही समय दुर्घटना घटित होने का होता है। इसी तरह जातक पर आने वाली विपदा का पूर्व अनुमान लगाया जा सकता है।
प्रश्न: मकान, जमीन जायदाद आदि सुखों की प्राप्ति का समय कैसे जानें?
उत्तर: मकान, जमीन-जायदाद और अन्य सभी प्रकार के भौतिक सुखों को चतुर्थ भाव से देखा जाता है। चतुर्थ भाव का स्वामी, कारक ग्रह, चतुर्थ भाव में स्थिती ग्रह, चतुर्थ भाव पर पड़ने वाली दृष्टियां यह सब इस बात का निर्णय करते हंै कि जातक को मकान, जमीन-जायदाद का सुख प्राप्त होगा या नहीं। चतुर्थ भाव में स्थित ग्रह यदि शुभ हो और उस पर शुभ ग्रहों की दृष्टियां भी हों अर्थात हर प्रकार से चतुर्थ भाव और चतुर्थेश शुभ प्रभाव में हों, तो जातक को सभी भौतिक सुख प्राप्त होते हैं - लेकिन समय आने पर। जो ग्रह चतुर्थ भाव पर शुभ प्रभाव डालते हैं उन्हीं की दशा-अंतर्दशा और गोचर चतुर्थ भाव पर जिस समय प्रभाव डालते हैं उस समय जातक को मकान, जमीन जायदाद और अन्य भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है। भौतिक सुख का रूप दशा अंतर्दशा और गोचर पर निर्भर करता है क्योंकि सुखों में कुछ अचल और कुछ चल होते हैं। शनि, मंगल आदि का गोचर और दशा अंतर्दशा से प्रभावित चतुर्थ भाव अचल संपत्ति देता है और शुक्र, चंद्र चल सुख जैसे वाहन इत्यादि। इसलिए ग्रह के स्वभाव के अनुसार सुख के रूप को जाना जाता है।
प्रश्न: संतान प्राप्ति के समय को जानने के लिए किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर: संतान प्राप्ति के समय को जानने के लिए पंचम भाव, पंचमेश अर्थात पंचम भाव का स्वामी, पंचम कारक गुरु, पंचमेश, पंचम भाव में स्थित ग्रह और पंचम भाव और पंचमेश पर दृष्टियों पर विशेष ध्यान रखना चाहिए। पंचम भाव संतान का ही नहीं बल्कि विद्या का भाव भी है इसलिए जातक की आयु को ध्यान में रखते हुए फल का समय निर्धारण करें। वैसे तो किसी भी आयु में संतान और विद्या प्राप्त हो सकती है, फिर भी यदि जातक का विवाह हो चुका हो और संतान अभी तक नहीं हुई हो या विवाह से पूर्व भी संतान का समय निकाला जा सकता है। पंचम भाव जिन शुभ ग्रहों से प्रभावित हो उन ग्रहों की दशा-अंतर्दशा और गोचर के शुभ रहते संतान की प्राप्ति अवश्य होती है। गोचर में जब ग्रह पंचम भाव पर या पंचमेश पर या पंचम भाव में बैठे ग्रहों के भावों पर गोचर करता है तब संतान सुख की प्राप्ति का समय होता है।
प्रश्न: पुत्र और पुत्री प्राप्ति का समय कैसे जानें?
उत्तर: संतान प्राप्ति के समय के निर्धारण में यह भी जाना जा सकता है कि पुत्र की प्राप्ति होगी या पुत्री की। यह ग्रह महादशा, अंतर्दशा और गोचर पर निर्भर करता है। यदि पंचम भाव को प्रभावित करने वाले ग्रह पुरुष कारक हों तो संतान पुत्र और यदि स्त्री कारक हों तो पुत्री होगी।
प्रश्न: क्या मृत्यु का समय भी जाना जा सकता है?
उत्तर: मृत्यु का समय भी कुंडली के अध्ययन से जाना जा सकता है। कुंडली का अष्टम भाव मृत्यु का भाव होता है। इस भाव का स्वामी, कारक शनि, अष्टम भाव में स्थित ग्रह, अष्टम भाव पर ग्रहों की दृष्टियां, अष्टमेश की स्थिति और इन सब का लग्न या लग्नेश से संबंध ये सारी स्थितियां मृत्यु की कारक बनती हैं। द्वितीयेश और सप्तमेश को भी मारकेश माना जाता है। कुछ विद्व ान तृतीयेश को भी मारकेश मानते हैं क्योंकि तृतीय भाव अष्टम भाव से अष्टम होता है। अष्टमेश, द्वितीयेश, तृतीयेश और सप्तमेश में जो ग्रह अशुभ और बलवान होकर लग्न या लग्नेश को प्रभावित करता है, वह मृत्यु का कारण बनता है। इसी ग्रह की दशा-अंतर्दशादि और गोचर जब लग्न या लग्नेश को प्रभावित करते हैं तो जातक को मृत्यु का सामना करना पड़ता है। अष्टम भाव में बैठे ग्रह की दशा-अंतर्दशादि और गोचर भी जब लग्न या लग्नेश को प्रभावित करते हैं तो जातक को मृत्यु का सामना करना पड़ता है।
प्रश्न: कभी-कभी ऐसा भी देखा गया है कि लग्नेश की महादशा में जातक की मृत्यु होती है जबकि लग्नेश तो शुभ ग्रह ही माना जाता है। ऐसा क्यों?
उत्तर: हां, कई बार ऐसा देखने में आता है कि जातक की मृत्यु लग्नेश की दशा में होती है। जब भी मृत्यु होती है, अशुभ ग्रह के बलवान होकर लग्नेश को प्रभावित करने के कारण होती है, क्योंकि लग्न और लग्नेश ही जातक का प्रतिनिधित्व करते हैं। इसलिए जब जन्म समय लग्नेश, द्वि तीयेश, तृतीयेश, सप्तमेश, अष्टमेश और अकारक ग्रह के प्रभाव में रहता है और जब गोचर में भी द्वितीयेश, तृतीयेश, सप्तमेश, अष्टमेश और अकारक ग्रह से युत या दृष्टि संबंध स्थापित करता है तो जातक की मृत्यु लग्नेश की दशा में होती है।
प्रश्न: क्या दिन भर में घटित होने वाली छोटी-छोटी घटनाओं को भी जाना जा सकता है?
उत्तर: छोटी-छोटी घटनाएं तो जीवन का हिस्सा हैं इसलिए दिन में भी घटती रहती हैं जिन्हें हम गंभीरता से नहीं लेते। हां, जहां तक घटना को जानने का सवाल है तो जाना जा सकता है ठीक उसी तरह जैसे किसी बड़ी घटना को जाना जा सकता है।
प्रश्न: व्यक्ति विशेष के अतिरिक्त विश्व भर में घटित होने वाली घटनाओं के समय को भी जाना जा सकता है?
उत्तर: हां, मेदिनीय ज्योतिष के आधार पर व्यक्ति विशेष के अतिरिक्त विश्व भर में होने वाली घटनाओं के समय का निर्धारण भी किया जा सकता है।
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