काल सर्प योग रहस्य: जैसे-जैसे हम अपनी वैदिक परंपरा से दूर जा रहे हैं वैसे वैसे काल सर्प योग का प्रभाव हमारे समाज पर बढ़ता जा रहा है। पुरूषार्थ चतुष्टय (धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष) की पूर्ति हेतु नीर छीर के विवेक से निर्णय की आवश्यकता होती है। ईष्र्या, धोखा देना, नाम, क्रोध, लोभ, मोह जिसके संवाहक है और इसी के वशीभूत होकर हम इस परमात्मा जगत की सत्ता के इस ग्रह जनित दंड विधान के इस (काल सर्पयोग) से प्रभावित होता है। काल सर्पयोग शांती: यद्यपि काल सर्प योग की शांती हेतु विद्वान लोग अनेकों प्रकार के परामर्श देते हैं किंतु समस्त सनातन धर्मावलंबी बंधुओं ध्यान देने की आवश्यकता है कि हमारे जितने तीर्थ हैं वह विशेष वैज्ञानिक और भौगोलिक परिस्थिति पर विराजमान है जिसके कारण उस स्थान विशेष प्राण उर्जा का संचार है जैसे हम उस स्थान विशेष पर जाकर ग्रहण करते हैं विशेष कष्ट से निवारण प्राप्त करते हैं।
जिसको भौतिक जगत में सिद्ध करते हुए अखिल विश्व ब्रह्मांड के आध्यात्मिक जगद गुरू भारतवर्ष की आत्मा तीर्थराज, प्रयाग (इलाहाबाद) स्थित अति प्राचीन पुराण वर्णित प्रयाग मण्डल के दक्षिणी ध्रुव पृथ्वी को कुण्डलनी (मणिपूरक चक्र) श्री तक्षकेश्वर नाथ मंदिर तक्षक तीर्थ मत्स्य पुराण के सातवे अध्याय से स्पष्ट है तक्षक संपूर्ण सर्पजाति के स्वामी नियुक्त किये गए प्रथम सृष्टी के अधिपत्या निशेचन के समय और कलयुग में श्री तक्षक ही प्रमुख है और पद्म पुराण पाताल खण्ड के प्रयाग महात्म सताध्यायी के 82वें अध्याय में प्राप्त महात्म श्री तक्षक तीर्थ के धार्मिक और अध्यात्मिक महत्व को स्पष्ट करता है स्कंध पुराण में स्पष्ट कहा गया है कि नाग तीर्थ में पिंड दान करने से पितृ यदि किसी भी योनि में भटक रहे है तो उनको मुक्ति की प्राप्ति होती है ध्यान रखने की बात है कि प्रत्येक तीर्थ जिन स्थानों पर पिंड दान या श्राद्ध कर्म का विधान शास्त्रों में दिया गया है सभी का अलग-अलग फल प्रतिफल है यद्यपि कि अज्ञानता वश लोगों के परामर्श से लोग अपने निवास स्थान व अन्य कहीं शांति विधान करवाते जरूर है किंतु उसका परिणाम सार्थक कम व निरर्थक अधिक होता है।
अन्य स्थान पर भी लोग काल सर्पयोग की शांति करवाते हैं किंतु वो स्थान भगवान शिव के ज्योर्तिलिंग स्थान है न कि नागों का स्थान है। संपूर्ण सर्प जाति के स्वामी श्री तक्षक का आदिकालीन स्थान धर्म की राजधानी तीर्थराज प्रयाग में स्थित है जो कि काल सर्पयोग शांति, राहु की महादशा, नागदोष एवं विष बाधा से मुक्ति का मुख्य स्थान है। शास्त्रों में भी स्पष्ट कहा गया है कि श्री तक्षक तीर्थ के अतिरिक्त काल सर्पयोग शांति विधान करवाना ही व्यर्थ है।