प्रश्न: उपाय कौन-कौन से हैं? कौन सा उपाय करें? यह कैसे निर्धारित किया जाए?
उत्तर: ग्रहों के उपायों में रत्न, मंत्र, यंत्र, यज्ञ, व्रत, दान, जल विसर्जन, देव दर्शन, धातु धारण और औषधि स्नान प्रमुख हैं। सभी उपायों को, चार तत्वों के आधार पर, मुख्यतः चार भागों में बांटा जा सकता है- पृथ्वी तत्व, जल तत्व, अग्नि तत्व, या वायु तत्व प्रधान। रत्न, धातु धारण एवं देव दर्शन पृथ्वी तत्व प्रधान हंै। जल विसर्जन, औषधि स्नान एवं रुद्राभिषेक जल तत्व प्रधान हैं। यज्ञ, व्रत, भोजन, अग्नि तत्व प्रधान हैं। मंत्र वायु तत्व प्रधान है। जिस ग्रह का उपाय करना हो, वह जन्मकुंडली में जिस तत्व की राशि में बैठा हो, उसी के उपाय करना श्रेष्ठ है।
प्रश्न: क्या उपाय द्वारा कष्ट निवारण हो सकता है?
उत्तर: उपाय द्वारा निवारण अवश्य होता है। जैसे बुखार है, तो दवाई खाने से राहत मिलती है, या बारिश है, तो छाते से कुछ बचाव अवश्य होता है, उसी प्रकार उपाय से भी कष्टों में न्यूनता अवश्य आती है, लेकिन कितनी, यह उपाय पर निर्भर करता है।
प्रश्न: यदि हमारा भविष्य पूर्व लिखित है, जिसे ग्रहों की स्थिति अनुसार ज्ञात किया जा सकता है, तो उपाय द्वारा भविष्य कैसे बदल सकते हैं?
उत्तर:सर्वविदित है कि राजा परीक्षित को जब ज्ञात हुआ की सात दिन बाद तक्षक सर्प उन्हें डस लेगा, तो उन्होंने शुकदेव जी से भागवत श्रवण किया। उसके बाद भी सर्प ने तो डसा, लेकिन मृत्यु के भय ने उन्हें ग्रसित नहीं किया। इसी प्रकार जब डाॅक्टर शल्य चिकित्सा करते हैं, तो पहले सुन्न कर देते हैं। उसके बाद शरीर को वे काट देते हैं, तो भी उसका कष्ट नहीं होता है। इसी प्रकार से उपायांे द्वारा कष्टों का निवारण तो हो जाता है, लेकिन भाग्य नहीं बदल सकते। लेकिन फिर भी तीव्र कर्म, या संतों का आशीर्वाद भाग्य बदलने में सक्षम है।
प्रश्न: उपाय द्वारा ग्रह को प्रबल बनाया जाता है, या शुभ?
उत्तर:कुछ उपाय ग्रहों को केवल प्रबल बनाते हैं एवं कुछ उपाय उनकी प्रबलता को शांत करते हैं। कुछ उपाय ग्रहों की शुभता को बढ़ाते हैं, तो कुछ अशुभता को कम करते हैं, जैसे रत्न और धातु धारण ग्रहों को प्रबल बनाते हैं। जल विसर्जन, प्रबलता को क्षीण कर, अशुभता को कम करता है। मंत्र और देव दर्शन शुभता को बढ़ाते हैं। अतः उपाय चयन द्वारा शुभ ग्रहों को प्रबल बनाना चाहिए एवं अशुभ को शुभ। अशुभ को निर्बल कर के भी कष्ट निवारण किया जा सकता है।
प्रश्न: तीर्थ विशेष पर किसी उपाय का महत्व क्या अधिक होता है?
उत्तर: तीर्थ विशेष पर ग्रह की रश्मियों को आकृष्ट करने में सुविधा रहती है। अतः उसका महत्व अधिक हो जाता है। जैसे किसी स्थान पर रेडियो की ट्यूनिंग अच्छी होती है और किसी स्थान पर बिल्कुल नहीं होती, इसी प्रकार से कुछ विशेष स्थान पर किसी ग्रह का उपाय अच्छा होता है। उस स्थान पर उस ग्रह की रश्मियों का प्रभाव अधिक रहता है, जैसे शनि मंदिर में शनि का उपाय, शिव मंदिर में चंद्र का उपाय, हनुमान मंदिर में मंगल का उपाय।
प्रश्न: पर्व विशेष पर उपाय करने से क्या लाभ हैं?
उत्तर: पर्व विशेष पर ग्रह की रश्मियां अधिक मात्रा में पृथ्वी पर पहुंचती हैं, जिसके कारण उसका महत्व अधिक हो जाता हैं, जैसे राहु के दोष निवारण के लिए सूर्य, या चंद्र ग्रहण काल, नाग पंचमी तथा शिव रात्रि एवं शनि के दोष निवारण के लिए शनिश्चरी अमावस्या का विशेष महत्व है।
प्रश्न: दीपावली पर विशेष क्या करना चाहिए?
उत्तर: दीपावली लक्ष्मी जी का पर्व है एवं आज के युग में लक्ष्मी का महत्व सर्वाधिक है। अतः यह पर्व विशेष हो जाता है। इस दिन लक्ष्मी जी के लिए की गयी पूजा-अर्चना का महत्व अनेक गुणा अधिक हो जाता है। वर्ष भर लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने के लिए इस दिन लक्ष्मी एवं श्री यंत्र आदि सिद्ध कर स्थापित कर लेने चाहिएं। सातमुखी रुद्राक्ष, दक्षिणावर्ती शंख एवं एकाक्षी नारियल में भी महालक्ष्मी का वास होता है एवं इनकी स्थापना भी लक्ष्मीवर्द्धक है। कर्जे से मुक्ति के लिए भी गजेंद्र मोक्ष का पाठ विशेष प्रभावी रहता है। घर में सुख-समृद्धि एवं निरोग रहने के लिए कुबेर मंत्र का जाप, कनक धारा स्तोत्र का पाठ एवं श्री सूक्त, लक्ष्मी सूक्त एवं लक्ष्मी स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।
प्रश्न: लक्ष्मी प्राप्त करने के लिए किस महामंत्र का जाप करें?
उत्तर: निम्न किसी एक मंत्र का जाप कमल गट्टे, स्फटिक, या लाल चंदन की माला पर करना श्रेष्ठ है। प्रतिदिन एक माला जाप लक्ष्मी दोष को सर्वदा के लिए दूर करने में सक्षम है।
ऊँ श्री श्री महालक्ष्म्यै नमः।
ऊँ श्री श्री ललिता महात्रिपुरसुन्दर्यै श्री महालक्ष्म्यै नमः।।
ऊँ श्रीं Âीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं हीं श्रीं ऊँ महालक्ष्म्यै नमः।।
महालक्ष्म्यै च विùहे विष्णुपत्न्यै च धीमहि तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात्।
या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मीरुपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमोनमः।।
प्रश्न: दीपावली पूजन किस समय और कैसे करना चाहिए?
उत्तर: दीपावली पूजन स्थिर लग्न में ही करना चाहिए, जिससे लक्ष्मी जी घर में स्थिरता से वास करे। दीपावली पर स्थिर लग्न संध्या काल में वृष एवं सिंह लग्न होते हैं। पूजन के लिए लक्ष्मी-गणेश जी के चित्र, या मूर्ति लेने चाहिएं। स्फटिक, रजत, या स्वर्ण की मूर्तियों की विशेष महिमा है। साथ ही कोई श्री यंत्र आदि भी स्थापित करना लक्ष्मी वास के लिए उत्तम माना गया है। इन सबका पूजन कर श्री सूक्त, या लक्ष्मी सूक्त आदि का पाठ, धन की कमी को दूर कर, स्थिर लक्ष्मी का वास देता है।