ज्योतिष को भारत के विश्वविद्यालयों में, एक वैकल्पिक विषय के रूप में, शुरू किया गया है। इसका श्रेय भारत सरकार के मानव संसाधन एवं शिक्षामंत्री श्री मुरली मनोहर जोशी जी को जाता है। इसको उन्होंने विज्ञान का एक विषय मान कर शुरू किया था। लेकिन कुछ वैज्ञानिकों के हस्तक्षेप के कारण इसको कला का एक विषय बना दिया गया।
वैज्ञानिकों को अब भी संतुष्टि नहीं है और वे अब यह सवाल उठा रहे हैं कि ज्योतिष को विश्वविद्यालय में क्यों पढ़ाया जा रहा है? इससे जनता का पैसा बर्बाद किया जा रहा है। पढ़ाई का भगवाकरण किया जा रहा है। उन्होंने हैदराबाद उच्च न्यायालय में याचिका भी दायर की, लेकिन वहां उनकी याचिका रद्द् कर दी गयी। अब उन्होंने यह याचिका सर्वोच्च न्यायालय में डाली है। वैज्ञानिकों के मन में ज्योतिष के बारे में कुछ प्रश्न हैं, जिनके कारण उन्हें ज्योतिष पर संदेह है कि ज्योतिष कुछ है भी, या यह केवल ज्योतिषियों की दिमागी उपज है? उनके प्रश्न क्या हंै और ज्योतिषियों के क्या उत्तर हैं, आइए देखें:
प्रश्न: ग्रहों का हमारे जीवन के विभिन्न पहलुओं, जैसे शिक्षा, विवाह, व्यवसाय पर कैसे प्रभाव पड़ सकता है?
उत्तर: ग्रहों का मनुष्य के जीवन पर असर कैसे पड़ता है, यह देखा, या नापा तो नहीं जा सकता, लेकिन महसूस अवश्य किया जा सकता है। यदि गणितीय विश्लेषण किया जाए, तो यह साफ मालूम पड़ता है कि ग्रह की स्थिति का जीवन की घटनाओं से सीधा संबंध है।
प्रश्न: ज्योतिष द्वारा हम निश्चयता से भविष्यवाणी क्यों नहीं कर पाते?
उत्तर: पिछले हजारों वर्षों में ज्योतिषीय सूत्रों में उतनी सूक्ष्मता नहीं रह पायी है, जितनी वैदिक काल में थी। ज्योतिष को शोध द्वारा पुनः सटीक बनाने की आवश्यकता है।
प्रश्न: एक ही जन्मकुंडली पर दो ज्योतिषी एक जैसी भविष्यवाणी क्यों नहीं करते?
उत्तर: आज ज्योतिष ज्योतिषी के अनुभव पर अधिक चल रहा है। यहीं पर अंतर आ जाता है। फिर भी दो ज्योतिषियों का मुख्य फल एक जैसा ही रहता है।
प्रश्न: यदि ज्योतिष गणना है, तो ज्योतिषी को दैविक शक्ति किस लिए चाहिए?
उत्तर: अच्छे ज्योतिषी को दैविक शक्ति नहीं चाहिए। यदि दैविक शक्ति से कोई भविष्यवाणी की गयी है, तो वह ज्योतिष नहीं है। कभी-कभी ज्योतिषी के ज्ञान की पूर्णता के कारण, उसके तुरंत सही उत्तर दे देने को दैविक शक्ति मान लिया जाता है।
प्रश्न: यदि सब कुछ पूर्वलिखित है, जिनकी हम ज्योतिष द्वारा गणना करते हैं, तो हम उपाय किस लिए बताते हैं?
उत्तर: भाग्य एवं कर्म दोनों को मिला कर ही सफलता प्राप्त होती है। अतः कर्म आवश्यक है।
प्रश्न: पत्र-पत्रिकाओं में मेष से मीन तक की भविष्यवाणियां दे कर पूरी मानवता को 12 भागों में बांट देना कहां तक सही है?
उत्तर: मासिक भविष्यफल ज्योतिष विज्ञान का एक बहुत ही स्थूल रूप है। इसमें ज्योतिष की महक मात्र है। यह गलत तो नहीं है, लेकिन इसको ज्योतिष भी नहीं कहा जा सकता।
प्रश्न: जुड़वें बच्चों की पत्रियां एक सी होती हैं, तो भी उनका जीवन भिन्न-भिन्न होता है। ऐसा क्यों?
उत्तर: एक जैसी दो जन्मपत्रियों में जातक का भविष्यफल एक जैसा ही पाया जाता है। उनके भविष्य में अंतर तो होता है, लेकिन फिर भी उतार-चढ़ाव की प्रक्रिया एक जैसी ही देखने को मिलती है।
- शोध विषय का चुनाव: विषय केंद्रित और लक्षित होने चाहिएं, जैसे डाक्टर बनने के क्या योग हैं, न कि व्यवसाय का चयन कैसे हो?
- शास्त्रों में विषय विशेष पर प्राप्त नियमों का संकलन।
- संबंधित एवं असंबंधित जन्मपत्रियों का संकलन। ये जितने अधिक हों, उतना अच्छा है। लेकिन 200 से 500 तक अवश्य हों।
- शास्त्रों से प्राप्त नियमों का आंकड़ों पर प्रयोग कर, नियम एवं फल का संबंध ज्ञात करना एवं नये नियम प्रस्तावित करना।
- शोध पत्र लिखना एवं शोध कार्य का फल चाहे सूत्रों को सही बताता हो, या गलत, पत्रिकाओं में छपवा कर जनसाधारण तक पहुंचाना।
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इस प्रकार किया गया शोध कार्य समय एवं ऊर्जा अवश्य लेगा। लेकिन यह वैज्ञानिकों को भी अवश्य मान्य होगा। इसके द्वारा हम ज्योतिष शास्त्र की वैज्ञानिकता को भी सिद्ध कर पाएंगे।
वैज्ञानिकों द्वारा खगोल शास्त्र पर उठाय गये प्रश्नों पर विचार करते हैं:
प्रश्न: सूर्य एक तारा है, चंद्रमा उपग्रह है, राहु-केतु केवल बिंदु हैं, तो ये ग्रह कैसे कहलाये?
उत्तर: ज्योतिष मंे ग्रह की परिभाषा भिन्न है। ग्रह वह पिंड, या बिंदु है, जिसका मानव पर असर देखा जा सकता है। यह आवश्यक नहीं है कि वह सूर्य के चक्कर लगाता हो।
प्रश्न: शनि के बाद यूरेनस, नेप्च्यून, प्लूटो तथा अन्य नये खोज हुए ग्रहों का प्रभाव तो ज्योतिष में है ही नहीं। अतः यह अधूरी है।
उत्तर: शनि से अगले ग्रह यूरेनस का, शनि के मुकाबले, केवल 4 प्रतिशत असर होता है, जिसकी निम्न सूत्र से गणना की जा सकती है।
प्रतिशत फल
यूरेनस का भार / शनि का भार (शनि की दूरी)2/ यूरेनस की दूरी)2
= 15/95 x (9.53)2/(19.1)2
= 3.93 प्रतिशत
यूरेनस, नेप्च्यून, प्लूटो आदि के असर बहुत कम होने एवं उनकी परिक्रमा की अवधि मनुष्य की आयु से भी लंबी होने के कारण उनका विचार नहीं किया जाता है।
प्रश्न: हम जानते हैं कि ग्रह सूर्य के चारों और परिक्रमा लगा रहे हैं एवं ज्योतिष में हम ग्रहों को पृथ्वी के चारों और परिक्रमा लगाते हुए मानते हैं, जो गलत है। फिर ज्योतिष कैसे सही हो सकता है?
उत्तर: ज्योतिष में हम ग्रहों का मानव के ऊपर असर देखते हैं। इसलिए ग्रहों की गणना पृथ्वी के संदर्भ में करते हैं। यह गणना हम यह जानते हुए करते हैं कि ग्रह सूर्य के चारों ओर घूम रहे हैं।
प्रश्न: सौर मंडल भी ब्रह्मांड के चारों ओर चक्कर लगा रहा है। ऐसा ज्योतिष में कहा गया है।
उत्तर: सौर मंडल भी ब्रह्मांड के चक्कर लगा रहा है। इसकी गणना ज्योतिष में अयनांश द्वारा की जाती है। आसमान में भी ग्रह निरयण पद्धति के आधार पर की गयी गणना के अनुरूप ही दृश्य होते हैं। यही गणना पंचांगो में दी जाती है। वैज्ञानिकों का यह मानना है कि ज्योतिष केवल अंधविश्वास है एवं डर ही इसका आधार है। क्योंकि हर मनुष्य किसी न किसी से डरा रहता है। अतः ज्योतिष पूर्ण विश्व में व्याप्त है। ज्योतिषी इसी का लाभ उठाते हैं। इसको यदि विश्वविद्यालयों में पढ़ाना शुरू कर दिया जाए, तो इसका मानव की मानसिकता पर कुप्रभाव पड़ सकता है एवं ज्योतिष मानव को भीरू बना सकता है।
इसके विरूद्ध ज्योतिर्विदों का मानना है कि ज्ञान ही शक्ति है एवं भविष्य के पूर्वानुमान से मनुष्य पहले से संभल सकता है। डाक्टर रोग होने के बाद इलाज करते हैं। ज्योतिष से हम रोग होने से पहले जान सकते हैं कि जातक को कौनसी बीमारी की आशंका हो सकती है। सूखा, बाढ़ या भूकंप आदि दैविक आपदाओं का वर्षों पूर्व अनुमान केवल ज्योतिष द्वारा ही लगाया जा सकता है। भारत तो वैदिक काल से ही इस ज्ञान का भंडार रहा है। पूर्ण विश्व इस बात के लिए भारत को गुरु मानता है; अन्यथा भी विज्ञान के द्वारा जनित मानसिक परेशानियों से मानव को शांति दिलाने के लिए ज्योतिष ज्ञान का सहारा लेना आवश्यक है।
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