काल सर्प योग की शांति के उपाय
काल सर्प योग की शांति के उपाय

काल सर्प योग की शांति के उपाय  

आभा बंसल
व्यूस : 1045 | नवेम्बर 2004

काल सर्प योग अपने आपमें एक ऐसा योग है, जो पितृ दोष से संबंधित होता है। अतः जिस कुंडली में काल सर्प योग होगा, उस व्यक्ति के जीवन से कहीं न कहीं पितृ दोष अवश्य जुड़ा होगा। इस योग के प्रभाव से व्यक्ति के जीवन में, हर स्तर पर, संघर्ष और तनाव बढ़ते ही रहते हैं, बाधाएं आती हैं। जन्मकुंडली में जिस भाव से काल सर्प की सृष्टि होगी, उस भाव से संबंधित कठिनाइयों एवं संघर्षों की भी बहुतायत होगी। अतः काल सर्प योग के निदान के लिए मनोयोग से प्रयत्न करना चाहिए।

सर्वप्रथम भारतवर्ष में जिन स्थानों में काल सर्प योग की शांति होती है, उनका विवेचन प्रस्तुत है

दक्षिण भारत के विश्व प्रसिद्ध तिरुपति मंदिर के पास, लगभग पचास किलोमीटर पर, काल हस्ती शिव मंदिर में काल सर्प योग की शांति का उपाय विधि-विधान से किया जाता है। वहां लगभग एक घंटे की पूजा-अर्चना के साथ मंदिर प्रांगण में ही पुरोहित वैदिक रीति से शांति कराते हैं। मंदिर प्रवेश के साथ ही इस पूजा के फल, कुछ दक्षिणा देने से, प्राप्त हो जाते हैं। तदुपरांत पूजा-अर्चना करायी जाती है।


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केदारनाथजी जाते समय त्रियुगोनारायण के मंदिर प्रांगण में चांदी, तांबा एवं स्वर्ण के नाग के जोड़े छोड़ने से, काल सर्प की शांति हो जाती है। नासिक के पास त्रयंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग पर भी काल सर्प की शांति का विधान है। त्रयंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग पर भी अभिषेक और पूजा-अर्चना करा कर, नाग-नागिन के जोड़े छोड़ने से, काल सर्प योग की शांति हो जाती है। इलाहाबाद में संगम पर भी, काल सर्प की शांति हेतु, नाग-नागिन की विधिवत प्राण प्रतिष्ठा करा कर, पूजन कर के, दूध के साथ संगम में प्रवाहित करना चाहिए। तीर्थराज प्रयाग में काल सर्प योग की शांति के लिए संगम में तर्पण, श्राद्ध भी कर लेना चाहिए।

वैसे तो काल सर्प योग की शांति भिन्न-भिन्न इष्ट देवों की कृपा से हो जाती है, परंतु काल सर्प योग की शंाति का मुख्य संबंध आशुतोष भगवान् शिव से है। क्योंकि सर्प भगवान शिव के गले का हार है, अतः शिवजी के सम्मुख यत्न से, काल सर्प योग की शांति का विधान करना चाहिए।

सर्वप्रथम पारद शिव लिंग का निर्माण कराएं। कम से कम पांच सौ ग्राम का शिव लिंग बनाना चाहिए। यदि परिवार में एकाधिक व्यक्तियों पर काल सर्प योग का प्रभाव हो, तो सवा किलो या ढाई किलो पारद का शिव लिंग बनवा कर, प्राण प्रतिष्ठा करा कर, विधिवत् रुद्राभिषेक करना चाहिए। रुद्राभिषेक के साथ ही चांदी के अष्ट नागों का पूजन करना चाहिए।


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इसी क्रम में कलश स्थापन कर, वरुण का आवाहन कर, कलश पर ही स्वर्ण और रजत का सांप स्थापित कर के, सर्प का पंचोपचार से पूजन कर, निम्न सर्प के वैदिक मंत्र का जाप करना, या ब्राह्मण द्वारा कराना चाहिए:

ऊं नमोस्तु सर्पेभ्यो ये के च पृथिवीमनु। ये अंतरिक्षे ये दिवितेभ्यः सर्पेभ्यो नमः स्वाहा।।

जाप कम से कम 31000 हो। वैसे कलि युग में सवा लाख जाप का ही विधान है। जप के बाद दशांश होम कर के यज्ञ की पूर्णाहुति कर देनी चाहिए। उसके बाद उस सर्प को, श्रद्धा सहित, यमुना, संगम या समुद्र में प्रवाहित कर देना चाहिए। श्रद्धा-भक्ति के साथ तत्परता से छोड़ने पर निश्चय ही काल सर्प योग की शांति हो जाती है। ध्यान रहे, काल सर्प से संबंधित सभी पूजन चंदन से करें; रोली, कुंकुम, सिंदूर से नहीं।

श्री हनुमान जी की कृपा से भी काल सर्प योग की शांति होती है। श्री राम-लक्ष्मण जब नाग पाश से बंधे, तो श्री हनुमान जी ने ही उन्हें मुक्त कराया। अतः नित्य प्रति श्री हनुमान चालीसा और मंगलवार, शनिवार को श्री रामचरित मानस में सुंदर कांड के पाठ कर लेने से शांति प्राप्त होती है। जो लोग हनुमान भक्त हैं, वे मंगलवार, शनिवार को श्री हनुमान जी का सिंदूर, चमेली के तेल से चोला चढ़ा कर भोग लगाएं एवं यथाशक्ति ‘‘ऊं हं हनुमते रुद्रात्मकाय हुंग फट्’’ इस मंत्र का जाप करें। निश्चित ही काल सर्प योग की शांति होगी।

जिन व्यक्तियों के जीवन में काल सर्प योग है, उन्हें प्रत्येक वर्ष श्रावण मास में रुद्राभिषेक अवश्य कराना चाहिए और शिवजी पर नाग-नागिन का एक चांदी का जोड़ा चढ़ा देना चाहिए। नित्य महामृत्युंजय मंत्र की एक माला का जाप भी करते रहने से काल सर्प का प्रभाव क्षीण हो जाता है।

घर के मंदिर में मोरपंखी मुकुट पहने श्री कृष्ण भगवान की मूर्ति, चाहे बालरूप की ही हो, स्थापित कर पूजन करें। श्री कृष्ण परब्रह्म परमात्मा हैं। उनका नित्यार्चन तथा यथाशक्ति ‘‘ऊं नमो वासुदेवाय’’ मंत्र का जाप करने से काल सर्प योग की शांति हो जाती है। स्मरणीय है कि भगवान श्री कृष्ण ने कालीदह पर कालिया नाग के फण पर त्रिलोकों का भार ले कर नृत्य किया तथा उसको वरदान दे कर रमणकदीप को भेज दिया। श्रीमदभागवत के दशम स्कंध के षोड़श अध्याय के 108 पाठ कराने से नाग दोष से शांति मिलती है।

एकाक्षी नारियल राहुरूप है। अतः 108 नारियलों पर गंध (चंदन) पुष्प से पूजन कर, ‘‘ऊं भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवे नमः’’ मंत्र का 108 बार जाप कर, काल सर्प योग से ग्रसित व्यक्ति के ऊपर से सात बार उतार कर, बुधवार के दिन यमुनाजी में प्रवाहित कर देना चाहिए। इन उपायों के करने से निश्चित लाभ प्राप्त होगा, ऐसा विश्वास है।


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