भारतीय ऋषि भृगु की ख्याति एक ऐसे कालातीत भविष्यवक्ता के रूप में है जो भूत, भविष्य और वर्तमान पर समान दृष्टि रखते थे। वह समय की मोटी दीवार के आर-पार ऐसे देख सकते थे जैसे किसी पारदर्षी कांच में से देख रहे हांे। भृगु संहिता को भारतीय ज्योतिष का आदि ग्रंथ माना जाता है। ज्योतिष में रुचि रखने वाले सभी लोग इस ग्रंथ को अपार श्रद्धा की दृष्टि से देखते हैं। संक्षेप में भृगु संहिता को ज्योतिषियोें का धर्म-ग्रंथ कहा जा सकता है। इसके विपरीत ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है जो भृगु संहिता तो दूर भृगु नाम के किसी व्यक्ति के अस्तित्व तक को स्वीकार करना नहीं चाहते। उनका मानना है कि तथाकथित भृगु संहिता अंध विष्वासी जनता को ठगने के लिए लूटने खसोटने की कला में दक्ष ज्योतिषियों के एक समूह द्वारा एक सुनियोजित षड्यंत्र के तहत गढ़ा हुआ एक कपोल कल्पित तरीका है।
इसके फल से न केवल तत्कालीन ज्योतिषियांे ने खाया कमाया अपितु आज तक इस ग्रंथ के माध्यम से उनकी संततियां भी सुखी हंै। भृगु संहिता की रचना से एक पौराणिक आख्यान जुड़ा हुआ है जिसकी कथा पुराणों में कुछ इस प्रकार से उल्लिखित है। देवताओं में एक बार भीषण विवाद शुरू हुआ कि ब्रह्मा, विष्णु और देवाधिदेव महादेव इन तीनों में कौन श्रेष्ठ हैं। इस बात का फैसला करना भी कोई सहज काम नहीं था। अंततः इन्द्रादि सभी देवतागण महर्षि भृगु के पास गए। परंतु महर्षि भृगु के सामने भी एक समस्या थी। उन्होंने कहा- ”इस विषय पर किसी भी प्रकार का मत उचित नहीं है। अतः हे देवगण ! मैं स्वयं इस विषय पर मनन करके देखूंगा और तब यदि किसी निष्कर्ष पर पहुंचा तो मैं आपको इनमें से किसी भी एक की श्रेष्ठता का परिचय दूंगा।“ महर्षि भृगु ने परमपिता ब्रह्मा और भगवान षिव को आसानी से क्रोध दिला दिया। फिर वह भगवान पालनहार श्री हरि विष्णु की परीक्षा लेनेे गए। उन्होंने वहां पहुंचकर देखा कि वह शेषनाग पर निद्रामग्न थे और माता लक्ष्मी उनके पांव दबा रही थीं।
कुछ देर खड़े रहने के बाद भृगु को एक तरकीब सूझी। उन्हांेने सोते हुए भगवान विष्णु के सीने पर कस कर एक लात मारी। भगवान विष्णु की आंख खुली और वह हड़बड़ा कर उठ बैठे। फिर बिना क्रुद्ध हुए बोले- ”हे महर्षि भृगु! मेरी छाती तो वज्र की भांति कठोर है। कहीं आपके पैर में चोट तो नहीं आई।“ इस पर भृगु ने कहा- ”हे भगवान श्री हरि विष्णु! त्रिमूर्ति में आप सर्वश्रेष्ठ हैं।“ भृगु के पाद प्रहार को भगवान श्री हरि विष्णु तो हंसते हुए झेल गए परंतु माता लक्ष्मी जी से अपने पति का यह अपमान सहन न हुआ। क्षुब्ध होकर माता लक्ष्मी ने भृगु को शाप दिया-”ऐ घमंडी ब्राह्मण! भविष्य में सभी ब्राह्मण समृद्धि से वंचित ही रहेंगे, स्वयं तुम भी।“ महर्षि भृगु उस समय तक अपना ग्रंथ ”ज्योतिष-संहिता“ पूर्ण कर चुके थे। उनमें जो गणनाएं थीं उनका फल आने वाले हजारों वर्षों तक के लिए निष्चित किया जा चुका था। महर्षि भृगु ने माता लक्ष्मी से कहा- ”मेरा हाथ जिस घर पर भी होगा, वहां लक्ष्मी की वर्षा होगी और स्थिर लक्ष्मी का वास होगा।“ महर्षि भृगु के इस कथन पर माता लक्ष्मी और भी क्रुद्ध हो गईं और बोलीं- ”तो सुनो! जिस ज्योतिष संहिता ग्रंथ पर तुम्हें इतना अभिमान है, उसका फल कभी सही और पूर्ण नहीं आएगा।“ इस पर क्षुब्ध व क्रुद्ध होकर महर्षि भृगु माता लक्ष्मी को शाप देने ही वाले थे कि भगवान श्री हरि विष्णु ने कहा- ”हे महर्षि! आप दुखी और परेषान न हांे, मैं आपको दिव्य दृष्टि देता हूं।
आप पुनः एक संहिता ग्रंथ लिखें, मेरा वरदान है कि उसका फल कभी निष्फल नहीं होगा। माना जाता है कि श्री हरि विष्णु के वरदान के फलस्वरूप भृगु संहिता की रचना हुई। महर्षि पराषर के 700 ई. में लिखित ग्रंथ बृहत्पाराषरहोराषास्त्र में एक श्लोक में ज्योतिष शास्त्र के आदि प्रवर्तकों के नामांे का उल्लेख है। इनमें एक नाम महर्षि भृगु का भी है। इससे स्पष्ट हो जाता है कि भृगु नामक एक प्रकांड ज्योतिषी हुए हैं। इस तरह भृगु ऐसे भविष्यवक्ता और त्रिकालज्ञ थे जिनकी किसी से भी तुलना नहीं की जा सकती है।
उनके द्वारा विरचित भृगु संहिता एक असाधारण ग्रंथ है और इसमें विचित्र शब्दावली का इतना व्यापक प्रयोग है कि बुद्धि चकरा जाती है। खास बात यह है कि संसार के जितने भी ज्योतिषी हुए हैं वे वर्तमान और भविष्य के गर्भ में जाकर बताते हैं परंतु भृगु संहिता त्रिकाल अर्थात् भूत, भविष्य और वर्तमान तीनों का समान रूप से प्रामाणिक ब्योरा देती है। भृगु संहिता महर्षि भृगु और उनके पुत्र शुक्राचार्य के बीच संपन्न हुए वार्तालाप के रूप में एक दुर्लभ ग्रंथ है। उसकी भाषा षैली गीता में भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन के मध्य हुए संवाद जैसी है। हर बार आचार्य शुक्र एक ही सवाल पूछते हैं- ”वद् नाथ दयासिंधो जन्मलग्नषुभाषुभम् । येन विज्ञानमात्रेण त्रिकालज्ञो भविष्यति ।।
भृगु संहिता में दृषेत शब्द बहुत बार आया है और संस्कृत के इस शब्द का अर्थ या प्रयोग देखने, दिखाई देने और दर्षित होने के संदर्भ में किया जाता है। इससे लगता है कि महर्षि भृगु को भूत और भविष्य स्पष्ट दिखाई देता था। इसमें पूर्वजन्म का विवरण भी है। एक जगह पर आचार्य शुक्र महर्षि भृगु से पूछते हैं- ”पूर्वजन्मकृतं पापं कीदृक्चैव तपोबल । तद् वदस्य दयासिंधो येन भूयत्रिकालज्ञः ।।
अधिकांष स्थलों पर पूर्वजन्म, वर्तमान जन्म तथा आने वाले जन्म का हाल भी दिया गया है। कुछ मामलों में यहां तक कहा गया है कि कोई व्यक्ति भृगु संहिता कब, कहां, किस प्रयोजन से विष्वास या अविष्वास के साथ सुनेगा। पत्नी की कुंडली के बिना ही सिर्फ पति की कुंडली के आधार पर पत्नी के बारे में व्यापक विवेचन व उसके सही होने की पुष्टि अनेक विद्वानों ने की है। भृगु संहिता में गणनाओं का उल्लेख करते समय वर्ष, महिने और दिन का भी जिक्र आता है। कुछ कुंडलियों में प्रष्नकाल के आधार भी पर गणनाएं हंै। कहीं-कहीं प्रष्नकर्ता के जन्म स्थान, निवास स्थान, पिता तथा उनके नामों के पहले अक्षरों का भी विवरण मिलता है। आधुनिक युग के कई ऐसे संदर्भ इस ग्रंथ में हंै जिन पर कुछ भी बताना आम तौर पर असंभव होता है।
उदाहरण के लिए विधायक, जनकल्याण, सचिवालय, न्यायाधीष, स्थानांतरण, बीमा, हवाई जहाज, आॅंपरेषन, एक्सरे तथा अन्य चिकित्सकीय यंत्र, इंटरव्यू, कुलपति, काॅंमर्स, मेटल डिटेक्टर, कंपनी, मजिस्ट्रेट, जिलाधिकारी, आयुक्त, वेतन, पेंशन, हृदयाघात, इंजीनियरिंग, मोटर, दुपहिया वाहन, वकील, फाइनैंस कंपनी आदि से संबंधित तमाम कुंडलियां भृगु संहिता में भरी पड़ी हैं। कुछ लोग भृगु संहिता को 500 या 600 पृष्ठों की पुस्तक समझते हैं। उनकी भ्रांति को दूर करने के लिए एक श्लोक प्रस्तुत है- ”पितृव्यष्च सुखं पूर्ण नागत्रिंषतषत कवेः। सम्यक् ब्रूमि फलं तत्र पितृव्यष्च महतरम् ।।
यह अनुमान लगाना असंभव है कि भृगु संहिता कितने पृष्ठों की है और इसका आकार क्या है। यह दुर्लभ ग्रंथ हजारों वर्ष पहले भृगु ऋषि द्वारा भोजपत्र पर लिखा गया था। प्राचीन अनमोल ग्रंथों को नालंदा विष्वविद्यालय में जला दिया गया था। जो शेष बचा वह हिमालय पर सिद्धाश्रम स्वामी सच्चिदानंद जी के पास मौजूद है। यह स्थान बद्रीनाथ धाम से आगे अलकापुरी और सतोपंथ तीर्थ के बीच है। दुर्लभ हस्तलिखित प्राचीन ग्रंथों में भृगु संहिता, षंख संहिता, सुश्रुत संहिता, चरक संहिता, रावण संहिता आदि अनेक ग्रंथ गुफाओं में सुरक्षित हैं जिनमें भृगु संहिता इतनी विशाल है कि उसे उठाना भी कठिन है।