आयुष्य चिंतन

आयुष्य चिंतन

रामप्रवेश मिश्र

शांति-अशांति और जीवन-मृत्यु एक सिक्के के दो पहलू हैं। जब आयु सीमा समाप्त होती है तब मृत्यु का दरवाजा खुल जाता है। मृत्यु चिंता का विषय नहीं है, क्योंकि ‘जातस्य ध्रुवं मृत्यु’ं गीता का प्रवचन है। इस भूतल पर मृत्यु ही एक सत्य है। फि... और पढ़ें

अध्यात्म, धर्म आदि

जनवरी 2005

व्यूस: 8135

मंत्र और अध्यात्म

मंत्र और अध्यात्म

पुनीत कुमार

भारतीय वांङ्गमय अध्यात्म, मंत्र, तंत्र और यंत्र साहित्य से परिपूर्ण है। अध्यात्म भारतीय ऋषियों का मौलिक चिंतन है। उन्होंने स्वयं मंत्र का साक्षात्कार किया और तब ही उसे लोगों के सम्मुख प्रस्तुत किया।... और पढ़ें

उपायवशीकरणअध्यात्म, धर्म आदिमंत्र

नवेम्बर 2010

व्यूस: 8510

भागवत कथा

भागवत कथा

ब्रजकिशोर शर्मा ‘ब्रजवासी’

पांडवों के महाप्रयाण के पश्चात् भगवान के परम भक्त राजा परीक्षित श्रेष्ठ ब्राह्मणों की शिक्षानुसार पृथ्वी का शासन करने लगे। उन्होंने उत्तर की पुत्री ‘इरावती’ से विवाह किया। उससे जन्मेजय आदि चार पुत्रों की प्राप्ति हुई... और पढ़ें

अध्यात्म, धर्म आदिविविध

आगस्त 2014

व्यूस: 8946

क्यों

क्यों

यशकरन शर्मा

अनादि काल से ही हिंदू धर्म में अनेक प्रकार की मान्यताओं का समावेश रहा है। विचारों की प्रखरता एवं विद्वानों के निरंतर चिंतन से मान्यताओं व आस्थाओं में भी परिवर्तन हुआ। क्या इन मान्यताओं व आस्थाओं का कुछ वैज्ञानिक आधार भी है? ... और पढ़ें

अध्यात्म, धर्म आदिविविध

जुलाई 2014

व्यूस: 10625

लघु कथाएं

लघु कथाएं

फ्यूचर पाॅइन्ट

जब मुख्य मुख्य देवता और दानव अमृत की प्राप्ति के लिए क्षीरसागर को मथ रहे थे, तब भगवान् ने कच्छप के रूप में अपनी पीठपर मंदराचल धारण किया। उस समय पर्वत के घूमने कारण उसकी रगड़ से उनकी पीठ की खुजलाहट थोड़ी मिट गयी, जिससे वे कुछ क्षणो... और पढ़ें

अध्यात्म, धर्म आदिविविध

फ़रवरी 2013

व्यूस: 8864

अन्त्येष्टि संस्कार

अन्त्येष्टि संस्कार

विजय प्रकाश शास्त्री

यदि मरण-वेला का पहले आभास हो जाए तो- आसन्नमृत्यु व्यक्ति को चाहिए कि वह समस्त बाह्य पदार्थों और कुटुंब मित्रादिकों से चित्त हटाकर परब्रह्म का ध्यान करे। गीता में कहा है- ओमित्येकाक्षरं ब्रह्म व्याहरन् मामनुस्मरन्।... और पढ़ें

अध्यात्म, धर्म आदिविविध

जुलाई 2015

व्यूस: 10128

विवाहिता की मांग में सिंदूर लगाना अनिवार्य

विवाह संस्कार के समय ही वर वधू की मांग में सिंदूर लगाता है। मस्तक पर जिस स्थान पर सिंदूर लगाया जाता है, वह स्थान ब्रह्मरंध्र और अधिप नामक मर्म के ठीक ऊपर का भाग है। स्त्री जातक के शरीर में यह भाग, पुरुष की अपेक्षा, अधिक कोमल होता ... और पढ़ें

अध्यात्म, धर्म आदि

अप्रैल 2004

व्यूस: 8477

समावर्तन संस्कार

समावर्तन संस्कार

विजय प्रकाश शास्त्री

समावर्तन का तात्पर्य है वापिस लौटना। गुरु के पास रहकर पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए स्नातक अपने पूज्य गुरु की आज्ञा प्राप्त करके वापिस अपने घर लौटता है। यह समावर्तन संस्कार व्यक्ति का विद्याध्ययन पूर्ण करके वापिस अपने घ... और पढ़ें

अध्यात्म, धर्म आदिविविध

अप्रैल 2015

व्यूस: 10676

बीज मंत्रो से रोगों का निदान

बीज मंत्रों से अनेक रोगों का निदान सफल है। आवश्यकता केवल अपने अनुकूल प्रभावशाली मंत्र चुनने और उसका शुद्ध उच्चारण से मनन-गुनन करने की है।... और पढ़ें

अध्यात्म, धर्म आदिमंत्रअन्य पराविद्याएं

अकतूबर 2014

व्यूस: 6942

कर्णवेधन संस्कार

कर्णवेधन संस्कार

विजय प्रकाश शास्त्री

अन्य संस्कारों के समान कर्णवेध संस्कार का भी बहुत अधिक महत्त्व माना गया है। इस संस्कार के अंतर्गत बालक एवं बालिका के कानों को छिदवाया जाता है। बालिकाओं का कान छिदवाने के साथ-साथ नाक भी छिदवाया जाता है। पुरुष को पूर्ण पुरुषत... और पढ़ें

अध्यात्म, धर्म आदिविविध

दिसम्बर 2014

व्यूस: 10991

जातकर्म संस्कार

जातकर्म संस्कार

विजय प्रकाश शास्त्री

16 संस्कारों में जातकर्म संस्कार का विशेष महत्व है। यह संस्कार शिशु के जन्म लेने के पश्चात किया जाता है- जातमात्रस्य वेदोक्तं कर्म जातकर्म अर्थात् शिशु के उत्पन्न होते ही जो वेदोक्त कर्म किया जाता है, वह जातकर्म संस्का... और पढ़ें

अध्यात्म, धर्म आदिविविध

जुलाई 2014

व्यूस: 10323

रुद्राक्ष: उद्भव एवं उत्पत्ति

रुद्राक्ष: उद्भव एवं उत्पत्ति

राजेंद्र शर्मा ‘राजेश्वर’

‘‘रुद्राक्ष’’ शब्द को अनेक भावार्थों में विवेचित किया गया है। सामान्यतः रुद्राक्ष को रुद्र$अक्ष अर्थात भगवान रुद्र (शिव) के आंसुओं से उत्पन्न एक प्रकार का कसैला, खारा फल माना गया है। रुद्र शब्द का निर्माण ‘रुत्’ से हुआ है, जिस... और पढ़ें

उपायरूद्राक्षराशिअध्यात्म, धर्म आदिमुहूर्तमंत्र

मई 2014

व्यूस: 11178

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