शताश्वमेधेन् कृतेन पुण्यं, गोकोटिभिः स्वर्ण सहस्त्र दानात्
नृणां भवेत्सूतक दर्शनेन्, यत्सर्वतीर्थेषु कृता भिषेकात्।।
अर्थात् 100 अश्वमेघ यज्ञ, कोटि गायों के दान, अनेक स्वर्ण मुद्राओं के दान तथा चार धाम की यात्रा व तीर्थ स्नान
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