प्रायः कहा जाता है कि स्त्रियों को हनुमान जी की पूजा नहीं करनी चाहिए क्योंकि हनुमान जी ने जानकी जी को माता माना है। किंतु यह मान्यता तर्कसंगत नहीं है, न ही शास्त्रों में इसका कोई निषेध है। यदि स्त्रियों को हनुमान उपासना नहीं करनी चाहिए तो पुरुषों को भी लक्ष्मी की पूजा नहीं करनी चाहिए। किंतु ऐसी कोई वर्जना नहीं है और पुरूष लक्ष्मी की पूजा करते हैं। फिर स्त्रियों को हनुमान उपासना से क्यों रोका जाए, वह भी तब जब शास्त्रों में इस तरह की कोई वर्जना नहीं है जैसा कि ऊपर कहा गया है।
अतः स्त्रियां भी पुरुषों की तरह हनुमान जी की पूजा उपासना कर सकती हैं तथा मंदिर जाकर प्रसाद भी चढ़ा सकती हैं। केवल लंबे अनुष्ठान करने में प्राकृतिक बाधा आती है। उनके रजस्वला होने से अनुष्ठान खंडित हो जाता है।
दूसरे पारिवारिक उत्तरदायित्व भी उनके लंबे अनुष्ठान में विघ्न डालते हैं।
अतः वे हनुमान चालीसा के प्रतिदिन 5 या 10 पाठ कर 20 या 10 दिन में 100 पाठ का अनुष्ठान कर सकती हैं (जो सतबार पाठ कर कोई। छूटहि बंदि महासुख होई।।) अथवा अपने कष्ट/संकट संबंधी ‘हनुमान चालीसा’ की चैपाई के 100 माला जप कर यथोचित लाभ उठा सकती हैं। इसकी हर चैपाई और दोहा सिद्ध है। उदाहरणार्थ, संकट निवारण के लिए ‘संकट कटे मिटे सब पीरा। जो सुमिरे हनुमत बलबीरा।।
’’ या ‘‘संकट से हनुमान छुड़ावे। मन क्रम वचन ध्यान जो लावे।।’’ भूत-प्रेत बाधा या बुरे स्वप्न से निवृत्ति के लिए ‘‘भूत पिशाच निकट नहीं आवे। महावीर जब नाम सुनावे।।’’ का जप रामबाण है। इसी प्रकार रोग निवारण के लिए। ‘नासे रोग हरे सब पीरा। जपत निरंतर हनुमत बीरा।।’’ के निष्ठापूर्वक जप को अमोघ माना गया है। ऐसे जप पुरुष भी कर सकते हैं।