विजया एकादशी कहा जाता है कि इसी एकादशी का व्रत करके श्रीराम समुद्र पर सेतु निर्माण करा पाने में सक्षम हुए थे और इसी के प्रभाव से उन्होंने रावण पर विजय प्राप्त की थी। यह व्रत फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को रखा जाता है। इस दिन प्रातःकाल नित्य क्रिया एवं स्नानादि से निवृŸा होकर संध्या वंदना कर लें। फिर भूमि पर सात प्रकार के अन्न रखकर उसके ऊपर मिट्टी का कलश स्थापित करें। एक पात्र में जौ भरें और उसे भी कलश पर स्थापित कर दें। जौ के बर्तन में श्रीलक्ष्मीनारायण की स्थापना करके विधिपूर्वक उनकी पूजा आरती करें। अगली सुबह घड़े को किसी तालाब या नदी के पास ले जाकर रखें तथा पूजा करें। फिर उस घड़े को मूर्ति सहित किसी ब्राह्मण को दान कर दें। फिर अन्न अर्पित करें। कथा है कि जब श्रीराम सीताहरण के पश्चात् हनुमान, सुग्रीव आदि के साथ समुद्र तट पर श्रीलंका पर विजय प्राप्त करने की जुगत में थे, तो उन्होंने वहीं निवास करने वाले मुनिराज बकदालभ्य के पास जाकर समुद्र पार कर लंका पर विजय प्राप्त करने का उपाय पूछा। तब मुनिराज ने उन्हें विजय एकादशी नामक यह व्रत करने को कहा। तत्पश्चात् श्रीराम ने मुनि के निर्देशानुसार उपर्युक्त विधि-विधान से यह व्रत किया और लंका पर विजय प्राप्त करके सीता को मुक्त कराया।