संतान सुख के लिए करें षष्ठी देवी का व्रत अशोक शर्मा षष्ठी देवी का व्रत करने से संतान की ही प्राप्ति नहीं होती, अपितु हर प्रकार के कष्ट-संकट, अरिष्ट आदि का भी शमन होता है और सुख-समृद्धि की प्राप्ति भी होती है। वद-पुराणों एवं भारतीय संस्कृति पर लिखी गई पुस्तकों में अनेक व्रत कथाओं और त्यौहारों का वर्णन है। स्कंदपुराण के नारद-नारायण संवाद में संतान प्राप्ति और संतान की पीड़ाओं का शमन करने वाला व्रत- विधान बताया गया है जो शीघ्र फलदायक और शुभत्व प्रदान करने वाला है। यह व्रत विधिपूर्वक करने से संतान की प्राप्ति होती है। यदि संतान को किसी प्रकार का कष्ट, रोग, पीड़ा संकट, घात, अरिष्ट या मनोरोग हो तो यह व्रत विधानपूर्वक करने से उससे बचाव होता है। व्रत कब करें - यह व्रत शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को किया जाता है। वर्ष के किसी भी मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को यह व्रत आरंभ किया जा सकता है। वैसे चैत्र मास की षष्ठी को इस व्रत को आरंभ करने का प्रचलन अधिक है। व्रत के लिए आवश्यक सामग्रियां- भगवान शालिग्राम जी का विग्रह, कार्तिकेय का चित्र, तुलसी का पौधा (गमले में लगा हुआ), तांबे का लोटा, नारियल, पूजा की सामग्री, कुंकुम, अक्षत हल्दी, चंदन, अबीर, गुलाल, दीपक, घी, इत्र, पुष्प, दूध, जल, मौसमी फल, मेवा, मौली, आसन इत्यादि। व्रत का विधान- घर के ईशान कोण में पूर्वाभिमुख या उŸाराभिमुख बैठकर अपने सामने तुलसी के गमले में पीले सूती कपड़े पर शालिग्राम जी की प्रतिमा रखें। तुलसी के पौधे के समीप ही कार्तिकेय का चित्र और तांबे का लोटा पीले कपड़े पर रख दें। लोटे पर नारियल भी रखें। सर्वप्रथम घी डालकर दीपक जला लें। फिर व्रत पूजन तथा मंत्र जप का संकल्प करें। कलश पर गणपति का ध्यान करते हुए ’¬ गं गणपतये नमः’ मंत्र से उनका पूजन करें। फिर शालिग्राम का ‘¬ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र से और ‘¬ श्री विष्णुप्रियायै’ नमः मंत्र से तुलसी के पौधे का पूजन करें। पूजन में समस्त सामग्री सबको पृथक-पृथक चढ़ाएं। अब कार्तिकेय के चित्र का ‘¬ स्कंदाय नमः’ मंत्र से पूजन करें। कलश पर स्थित नारियल पर ‘¬ ह्रीं षष्ठी देव्यै स्वाहा’ मंत्र से षष्ठी देवी का पूजन करें। फल, मिठाई, मेवा, लौंग, इलायची आदि अवश्य चढ़ाएं। षष्ठी देवी के उक्त मंत्र का कम से कम 108 बार जप अवश्य करें। नित्य पूजन करके दीपक जलाएं तथा प्रत्येक षष्ठी का विस्तृत पूजन करें। भगवान नारायण द्वारा बताए गए षष्ठी देव्यास्तोत्रम् का पाठ भी अवश्य करें। इस प्रकार, विधिवत् षष्ठी देवी का पूजन कर मंत्र जप करें तथा उक्त स्तोत्र का नित्य पाठ करें। इस स्तोत्र के नियमित पाठ से पुत्र यशस्वी, विद्यावान, रोग मुक्त और धन लक्ष्मी को प्राप्त करने वाला होता है। इसके प्रभाव से निःसंतान को संतान की प्राप्ति होती है।