पापाकुंशा एकादशी यह व्रत आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को किया जाता है। व्रती प्रातःकाल नित्य कर्मों, स्नानादि से निवृŸा होकर भगवान् विष्णु का भक्ति भाव से पूजन आदि करके भोग लगाते हैं। फिर यथासंभव ब्राह्मण को भोजन करा कर दान व दक्षिणा देते हैं। इस दिन किसी भी एक समय फलाहार किया जाता है। कथा है कि प्राचीन समय में विंध्य पर्वत पर क्रोधन नामक एक बहेलिया रहता था। वह बड़ा क्रूर था। उसका सारा जीवन पाप कर्मों में बीता। जब उसका अंत समय आया, तो वह मृत्यु-भय से कांपता हुआ महर्षि अंगिरा के आश्रम में पहुंचकर याचना करने लगा- ‘‘हे ऋषिवर ! मैंने जीवन भर पाप कर्म ही किए हैं। कृपा कर मुझे कोई ऐसा उपाय बताएं जिससे मेरे सारे पाप मिट जाएं और मोक्ष की प्राप्ति हो जाए।’’ उसके निवेदन पर महर्षि अंगिरा ने उसे पापांकुशा एकादशी का व्रत करके प्रभु कृपा प्राप्त करने की सलाह दी। तत्पश्चात उसने पूर्ण श्रद्धा के साथ यह व्रत किया, और किए गए सारे पापों से छुटकारा पा लिया।